Saturday 28 February 2015

हिच्च...इस बजट ने कन्फ्यूज कर दिया भाई


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब आम बजट पेश किया तो तुरंत ही चैनलों पर उसका पोस्टमार्टम शुरू हो गया। विशेषज्ञों ने फॉरेंसिक एक्सपर्टों की तरह अपनी रायशुमारी की बारिश कर दी। किसी ने बजट को बहुत अच्छा तो किसी ने औसत तो किसी ने बहुत खराब बताया। इन रायचंदों के चक्रव्यूह में फंसकर बेचारे दर्शक इतने कन्फ्यूज हो गए कि उन्हें समझ में आया ही नहीं कि आखिर बजट में उनके लिए क्या अच्छा और क्या खराब है। टीवी देखते-देखते जब मैं कन्फ्यूज हो गया तो घर से बाहर निकल आया। बाहर मुझे पड़ोसी खन्ना जी सिर खुजाते हुए मिल गए। मैंने बजट में उनका नजरिया जानना चाहा तो बोले भाई बहुत कन्फ्यूजन है। मैंने पैदा होने से लेकर अभी तक जो भी बजट देखे हैं उनमें परंपरागत इनकम टैक्स में छूट, टैक्स दरों में रियायत, एसी, टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रानिक आइटम का सस्ता होना, तंबाकू-सिगरेट का महंगा होना और आम आदमी का नाम का ढोल पीटकर नई योजनाओं के ऐलान ही सुने हैं। सच कहूं तो हर बार बजट से पहले ही हम मान लेते हैं कि कम से कम ये तो होगा ही। यार लेकिन इस बार तंबाकू-सिगरेट वाले ऐलान को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। मैंने पहला चैनल लगाया तो उसमें एक विशेषज्ञ चीखता हुआ बोला कि ये बजट आम आदमी का है। अच्छे दिन लाने वाला है। भले ही इस बार आयकर में छूट का दायरा न बढ़ा हो, टीवी, फ्रिज और मोबाइल सस्ते न हुए हो लेकिन सरकार ने अपनी दूरदर्शी नीतियों से साबित कर दिया है कि वो बहुत दूर का सोच रही है। कई साल आगे तक की योजनाएं अभी से उतार दी गई है। अब बताओ भाई जरूरत अभी है और बात पांच साल बाद की कही जा रही है। इसे मैं कैसे अच्छा मान लूं। अरे यार जो कुछ करना है अभी करो इतना आगे क्यों जा रहे हो भाई। मैंने जब दूसरा चैनल बदला तो एक बहुत बूढ़ा सा समीक्षक टीचर वाले अंदाज में बजट पर चर्चा कर रहा था। उसके हिसाब से ये बजट औसत दर्जे का है। वह कह रहे थे पेंशन, बीमा, दुर्घटना बीमा और इपीएफ स्कीम के अलावा इस बजट में कुछ भी अच्छा नहीं है। बाकी चीजें औसत दर्जे की है। मैंने घबरा कर दूसरा चैनल बदला तो वहां एक तेजतर्रार नौजवान एंकर चीख-चीख कर कह रहा था कि इस बजट ने आपकी जेब का बोझ बढ़ा दिया है। सरकार ने सर्विस टैक्स 12.36 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया है। इससे रेस्टोरेंट में खाना, होटल में रहना और सर्विस टैक्स से जुड़ी सभी सेवाएं महंगी हो जाएगी। लुट जाएगी आपकी जेब....फिर आएगी महंगाई। सरकारी कर्मचारियों को भी राहत नहीं मिली है। मैं ये सुनकर डर गया भाई। ऐसा लगा मानों कई साल बाद दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। मैंने हड़बड़ाहट में चैनल बदला तो एक सुंदर सी एंकर कह रही थी...घबराइए नहीं सरकार डेबिट-क्रेडिट कार्ड से लेनदेन को बढ़ावा देगी। अब आप अपने सोने को बैंक में जमा कर ब्याज भी पा सकेंगे। युवाओं को रोजगार के लिए दक्ष बनाया जाएगा। मनेरगा बंद नहीं होगी...पैसा मिलता रहेगा। जीएसटी 2016 में लागू हो जाएगा। वगैरह-वगैरह...। फिर वह बोली अच्छा होता यदि इनकम टैक्स छूट का दायरा बढ़ाकर तीन लाख कर दिया जाता। खैर मैं इस बजट को दस में छह नंबर दूंगी। मैं सुनकर चौंक गया यार इतनी खूबियां गिनाने के बाद सिर्फ पासिंग नंबर वाली प्रथम श्रेणी। जरूर कॉपी चेंकिग में गड़बड़ी हुई है। मैं टीवी बंद करके बाहर आ गया। तुम ही बताओ तुम्हारे हिसाब से बजट कैसा है। मैं बोला जब आप जैसा उम्रदराज बीते कई बसंत से बजट देखने वाला कन्फ्यूज है तो फिर मेरी बिसात क्या है। सहीं मायने में मैं भी इस बजट को अच्छा या फिर खराब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं। हिच्च बड़ा कन्फ्यूज है भाई...।

Wednesday 25 February 2015

यात्रीगण कृपया ध्यान दें...

यात्रीगण कृपया ध्यान दें...। इस वक्त आप सपनों के प्लेटफॉर्म पर खड़े हुए हैं। उम्मीद से भरी सपनों वाली एक्सप्रेस चलेगी या नहीं ये तो प्रभु ही जाने...। चंद घंटे में ही प्रभु की लीला का मंचन होगा, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। स्टेशन में घुसते वक्त आप अहसास करिए कि दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक सेवा का आप हिस्सा बनने जा रहे हैं। टिकट के लिए कृपया हष्ट-पुष्ट आदमी ही लाइन में लगें, कमजोर आदमी किनारे खड़े होकर सामान ताके ताकि धक्कामुक्की में कोई नुकसान न पहुंचे। टिकट खरीदने से पहले कुछ छुट्टे पैसे साथ में जरूर रख लें वरना टिकट बाबू आपको भगा देगा और फिर से आपको इकन्ना एक दोनी दो...पढ़ना पड़ेगा। यदि आप ट्रेन के बारे में जानकारी करने के लिए पूछताछ केंद्र की सहायता लेने जा रहे हैं तो कृपया अपना रूट डाइवर्ट कर लें क्योंकि आपको वहां से कोई भी जानकारी नहीं मिलेगी। पूछताछ केंद्र के बाबुओं को अक्सर गायब रहने की बीमारी होती है। पूछने पर पता चलता है कि साहब लंच पर गए हैं, पान खाने गए हैं, लघुशंका को गए हैं थोड़ी देर में आते ही होंगे...वगैरह..वगैरह। आप भगवान का नाम लेकर प्लेटफॉर्म पर पहुंचिए। यहां आकर आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। क्योंकि कब कौन सी ट्रेन कौन से प्लेटफॉर्म पर आएगी ये तो प्रभु ही जाने...। यदि अचानक प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा होती है तो मैराथन के धावक की तरह आप दौड़ लगाइए और बताए गए प्लेटफॉर्म पर पहुंच जाइए। यहां आकर भी आप शुक्र न मनाइगा क्योंकि संभव है कि यह दौड़ आपको कई बार लगानी पड़े। बेहतर होगा कि आप घर से घुटनों की मालिश वाला तेल लेकर चलें ताकि कष्ट के समय कोई तो आपके दर्द को कम कर सके। अब पता करिए की ट्रेन कितने बजे प्लेटफॉर्म पर आएगी। यदि ट्रेन का समय आधा घंटा बताया जा रहा तो मान लीजिए कि कम से कम चार-पांच घंटे लगेंगे। क्योंकि हमारी ट्रेनों ने लेटलतीफी में जितने विश्व रिकॉर्ड रचे हैं उतना दुनिया की कोई भी ट्रेन नहीं रच सकी है। इस भाग-दौड़ में आपको प्यास लगी होगी। यदि आप प्लेटफॉर्म पर एक अदद नल तलाश रहे हैं तो रिस्क न उठाएं क्योंकि ज्यादातर प्लेटफॉर्मों के नल बरसों से पानी को तरस रहे हैं। वो नल कभी अपनी तो कभी अपने स्थापनाकर्ता की किस्मत को रोते हैं। आप अपने पास अवैध वेंडरों को मंडराते हुए देख रहे होंगे...। चौंकिए मत क्योंकि यहां पुलिस की कृपा से उनकी रोजी रोटी चल रही हैं। बैठने के लिए स्थान तलाश रहे हैं...वो तो आपको मिलने से रहा। बेहतर होगा कि आप प्लेटफॉर्म की जमीन पर बैठकर सुस्ता लें क्योंकि आपको सिर्फ ये स्थान ही मिल सकता है। आप अपने आसपास भारी भीड़ का अहसास कर रहे होंगे समझ लीजिए आपकी ट्रेन चंद पलों में आने वाली होगी। कृपया खुद में और साथ के यात्रियों में आप ऊर्जा का संचार करिए ताकि भीड़ के धक्के सहते हुए आप ट्रेन की बोगी में घुसने में सफल हो सके। लगता है आप ट्रेन के भीतर पहुंच चुके हैं। अब अपनी सीट तलाशिए..। ये क्या आपकी सीट पर तो कोई दूसरा बैठा हुआ है...। लड़ने की कोशिश मत करिएगा वरना आप बोगी से भी बाहर हो जाएंगे। टीटी की मदद लेने जा रहे हैं तो ये उम्मीद न रखे कि आपको सीट मिल ही जाएगी। यदि आपके पास चार सीटों के टिकट हैं तो उसके बदले आपको दो सीटें ही मिलेंगी। दबकर बैठिए और अपने गंतव्य तक जल्द से जल्द पहुंचने की प्रार्थना प्रभु से करिए। गंतव्य स्टेशन आने से पहले ही सामान लेकर खड़े हो जाइए...। यदि ट्रेन रुकने पर खड़े होंगे तो अगले स्टेशन पर ही उतर पाएंगे। खुद बाहर निकलने का प्रयास न करिए, भीड़ आपको खुद ब खुद बाहर पहुंचा देगी। स्टेशन पर आवारा जानवरों से बचते हुए निकलिए...। व्यवस्था को मत कोसिए...बल्कि खुद को उसके हिसाब से बदल लीजिए। धक्के खाते हुए आप स्टेशन से बाहर आ चुके हैं। हाथ जोड़कर प्रभु को धन्यवाद दीजिए और गंतव्य को निकल लीजिए। यह प्रक्रिया हर सफर में दोहराइए...आपकी यात्रा मंगलमय होगी। यात्रीगण कृपया ध्यान दें...।

Monday 23 February 2015

जरा कम पी मेरी रानी, महंगा है इराक का पानी...


हाल में ही मैं किसी कार्यवश कानपुर से हरदोई गया था। सड़क पर बाइक चलाते वक्त अचानक एक लोडर मेरे बगल से लहराते हुए आगे निकल गया। मैं गुस्से से चिल्लाने ही वाला था कि तभी उसके पीछे लिखे एक स्लोगन से मेरी हंसी छूट गई। उस पर लिखा था घूर क्या रहे हो, मैं वहीं हूं...। मौके की नजाकत के हिसाब से गजब का स्लोगन था। गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी। उसी दौरान मेरे खुराफाती दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने तय किया कि क्यों न इन विरले स्लोगनों पर एक रिसर्च की जाए। मैंने तय किया कि अब जब भी कोई आकर्षक स्लोगन दिखेगा उसे तुरंत लिख लूंगा। मैंने पाया कि स्लोगनों की यह दुनिया जबर्दस्त रचनात्मक लोगों से भरी हुई है। इन लोगों की सोचने की क्षमता बड़ी गजब की है। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक मुझे ट्रकों के स्लोगन मिले। घूर मत पगली प्यार हो जाएगा, पलट कर देख ले जालिम, तमन्ना हम भी रखते हैं, अगर तू 70 पर चलता है तो हम भी 80 पर चलते हैं, समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, सावधान आगे वाला कभी भी खड़ा हो सकता है, बुरी नजर वाले तू सौ-सौ साल जिए, तेरे बच्चे ...पिए, जहर खा लो पर लड़कियों पर भरोसा मत करो, कुंवारा स्टॉफ, दुश्मनों के दिल की धड़कन, आएंगे दिन बहार के, ये नीम का पेड़ चंदन से कम नहीं, हमारा लखनऊ लंदन से कम नहीं, दम है तो क्रास कर नहीं तो बर्दाश्त कर, धीरे चलाने से बार-बार मिलेंगे, तेज चलाने से हरिद्वार मिलेंगे जैसे स्लोगनों ने मेरे मन में इनके रचयिताओं के लिए आस्था पैदा कर दी। मेरे हिसाब से कलियुग में कलम की इन धुआंधार प्रतिभाओं ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि एड बनाने वाले कैसे एक एड के लिए रचानात्मक लोगों को लाखों-करोड़ों रुपए देते हैं। उनके साथ सभी तरह के आधुनिक संसाधन होते हैं। कई माह और सालों की मशक्कत के बाद जाकर वो एक हिट एड बना पाते हैं। ये ट्रक चलाने वाले संसाधन विहीन लोग तो बिना किसी की मदद के ऐसा सुंदर रचते हैं कि पढ़ने वाला मेरी तरह सोचने को मजबूर हो जाए। मेरी निगाह में ये लोग धरती के सबसे बड़े लेखक हैं। मेरी रिसर्च का दूसरा पड़ाव पहुंचा छोटे लोडरों पर। वहां तो मुझे और भी बढ़िया स्लोगन मिले। मैं भी बड़ा होकर ट्रक बनूंगा, पापा जी की अमानत, ऐ मालिक क्यों बनाया गाड़ी बनाने वाले को, घर से बेघर कर दिया गाड़ी चलाने वाले को, दुश्मनों के दिल की धड़कन, जरा कम पी मेरी रानी, महंगा है ईराक का पानी, बॉय फ्रैंड को भइया कहना मना है, राम युग में दूध मिला, कृष्ण युग में घी, इस युग में दारु मिली खूब दबाकर पी, हम गुंडों से नहीं शादीशुदा से डरते हैं, या खुदा मेरे दुश्मन को महफूज रखना, वरना मेरे मरने की दुआ कौन करेगा और बजा हौरन, निकल फौरन जैसे स्लोगनों ने तो मुझे निरा अंगूठाछाप साबित कर दिया। न जाने इन रचनाकारों में कितने अनपढ़ होंगे लेकिन एक बात तो मानने वाली है कि इन लोगों में कबीर बनने का जबर्दस्त माद्दा है। मैंने तय किया कि अब मैं दुनिया की इस सबसे बड़ी रिसर्च के सबसे छोटे वर्जन यानी आटो तक जाऊंगा। मैंने जासूस करमचंद्र वाली स्टाइल में पड़ताल की तो वहां भी मुझे सुंदर टाइटल मिले। समय से पहले भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता, मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, चलती है रोड पर बनकर हसीना,  हार्न धीरे से बजाए हमारा देश सो रहा है जैसे स्लोगनों ने मेरे दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी। खैर मेरी रिसर्च अभी भी जारी है। रोज नए स्लोगन मिलते हैं और मैं उन्हें कागज के किसी कोने में उतराता रहता हूं। मेरा दावा है कि देश में इस वक्त इतने स्लोगन सड़क पर घूम रहे हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी किताब के पन्ने भी उन्हें लिखने के लिए कम पड़ जाए। देश-दुनिया, समाज, अच्छाई और बुराई की सीख देने वाले इन स्लोगनों पर अब जब कभी आपकी नजर जाए तो उन पर गौर जरूर फरमाइगा...।

Sunday 22 February 2015

नाथूराम जी, मुच्छ नहीं तो कुच्छ नहीं...


बचपन में मैंने जब फिल्म शराबी देखी थी तब उसके एक डॉयलॉग ने मेरे दिमाग पर बड़ा असर डाला था। उस डॉयलॉग में अमिताभ बच्चन नाथूराम की मूछों की तारीफ करते हुए कहते हैं कि भाई मूछे हो तो नाथूराम जैसी...। यह डॉयलॉग समाज में एक जुमले के रूप में बड़ी तेजी से बदल गया। किसी की भी शानदार घनी और चमचमाती मोटी मूछों को देखकर मेरे मुंह से बरबस निकल जाता था कि भाई मूछों हो तो नाथूराम जैसी...। मुझे पता चला कि हमारे देश के राजा-रजवाड़े अपनी मूछों के लालन पालन में बहुत गंभीर रहते थे। शत्रु उनकी मूछों को चुनौती देता तो वे  पूरे फौज़-फाटे के साथ मूछे ऐंठते हुए युद्ध के मैदान में कूद जाते थे। न जाने कितने युद्ध मूछ को लेकर लड़े गए इसके अभी कोई प्रमाण नहीं मिल सके हैं हां एक बात जरूर पता चली है कि भारत में जितने भी युद्ध हुए उनमें कहीं न कहीं मूछ बचाने की ललक थी। मैंने पहली बार मूछों के साथ फिल्म में जिसे देखा था वो थे पृथ्वीराज कपूर। शहजादे सलीम को हड़काते वक्त उनकी मूछों का रौंब कुछ और ही अंदाज बयां करता था। फिल्म शोले में ठाकुर, गब्बर, असरानी, हरिराम नाई और सूरमा भोपाली की मूछों ने तो मेरा दिल ही जीत लिया था। इसके बाद मुझे किसी की फिल्म में मुछे अच्छी लगी तो वो थी अपने जैकी भाई यानी जैकी श्राफ की। क्या शानदार और गहरी मूछ थी उस जमाने में उनकी। उन्हे मैं मूछों की यूनिविसिर्टी का डीन मानता हूं. भारी-भरकम मूछों को तलाशने के बाद मैंने दुनिया की सबसे छोटी मूछों पर अपनी रिसर्च शुरू की तो पता चला कि हिटलर और चार्ली चैपलिन से छोटी मूछ आज तक इस दुनिया में कोई नहीं रख सका है. उनका यह रिकार्ड अभी तक सुरक्षित है. अब कोई एक बाल उगाकर ही ये रिकार्ड तोड़ सकता है।  जब भारतीय मूछों से अन्य देशों की तुलना की तो पता चला कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मुच्छड़ तो हमारी ही धरती पर पाए जाते हैं। हमारी रौबीली, चमकदार, मोटी, ऊपर की ओर ऐठी हुई मूछों का आज भी दुनिया में कोई सानी नहीं हैं। सबसे आश्चर्यजनक मूछे मुझे चाइना वालों की लगी। बीच की मुछे गायब और किनारे की मुछे जमीन की ओर बढ़ती हुई। इसके पीछे मुझे लगा कि हमारे मुच्छड़ आकाश छूने को बेताब नजर आते हैं और चाइना वाले धरती। रुचि के हिसाब से उन्होंने अपनी मूछो का रूट डाइवर्ट कर रखा है। विश्वकप में भारत और साउथ अफ्रीका का मैच देखते हुए मेरी निगाहें अचानक शिखर धवन की रौबीली मूछों पर चली गई। शिखर को लेकर मेरे मन में श्रद्धाभाव बढ़ गया। क्या शानदार मूछे हैं। पतली, नुकीली, चमकदार और ऐंठी हुई। बोले तो एकदम झक्कास...। जब मैंने सोशल मीडिया पर मूछों की पड़ताल की तो पता चला कि शिखर ने नाथूराम की मूछों को रिपलेस कर दिया है। इस समय मुच्छड़ों की दुनिया में शिखर से बड़ा कोई ब्रांड अंबेसडर नहीं है। क्या युवा क्या बूढ़े हर कोई शिखर का दीवाना है। मैं तो उन्हें कपिल देव का सच्चा उत्तराधिकारी मानता हूं। मैं जब सन् 1983 के विश्व कप का रीकैप देखता था तो मुझे लाडर्स के मैदान में विश्वकप की चमचमाती ट्रॉफी और चमकदार मूछों के साथ चमकता हुआ कपिल देव का चेहरा काफी भाता था। उनके बाद मुझे अजहर और सौरव गांगुली की मूछे उतना प्रभावित नहीं कर सकी। दो दशक के बाद अब मुझे शिखर की मुछे भायी हैं...मै तो उसकी मूछो का दीवाना हो गया हूं। वाकई मूछों के लिए क्या-क्या त्याग और तपस्या नहीं की है लोगों ने। मुझे तो अब मुछ में ही सारी दुनिया का सार नजर आता है. किसी ने सही कहा है मुच्छ नहीं तो कुच्छ नहीं...।

Sunday 15 February 2015

कमेंट्री में भी मझे खिलाड़ी हैं बिग बी


भारत-पाक मैच की कमेंट्री के लिए बिग बी यानी अमिताभ बच्चन का नाम जब चर्चा में आया तो जेहन में अलग तरह का रोमांच छा गया। कुछ दिन पहले तक उनका एक एड टीवी में चर्चा का विषय बना रहा। उस एड में अमिताभ बच्चन माइक पर क्रिकेट का ककहरा यानी आन साइड, आफ साइड जैसे तकनीकी शब्दों को समझते हुए नजर आए। कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि ये काम बिग बी के बस का नहीं हैं। भला एक अभिनेता कमेंट्री कैसे कर पाएगा। क्रिकेट के तकनीकी शब्द और खेल को समझना उनके बस की बात नहीं। रविवार को सुबह टीम इंडिया के टॉस जीतने का उद्घोष जब बिग बी ने किया तो मुझे काफी अच्छा लगा। जब रोहित शर्मा और शिखर धवन की सलामी जोड़ी मैदान में दाखिल हुई तो बिग बी मझे हुए कमेंट्रेटर की तरह रोहित शर्मा की बॉडी लैंग्वेज पढ़ते हुए नजर आए। उन्होंने कहा कि आज रोहित कुछ नर्वस नजर आ रहे हैं जबकि विराट में काफी आत्मविश्वास दिख रहा है। ये सुनकर मैं तो एकदम चौंक गया। ये क्या बिग बी को क्रिकेट का इतना बारीक ज्ञान है। कमेंट्रेरी बॉक्स में उनके साथ आकाश चोपड़ा और शोएब अख्तर मौजूद थे। शिखर धवन और रोहित शर्मा की सलामी जोड़ी ने संभलकर खेलना शुरू किया। इस बीच अचानक रोहित शर्मा ने एक गेंद ड्रॉप की तो बिग बी बोले रोहित ने आफ साइड में कमर से ऊपर जाती हुई गेंद को ड्राप करके अच्छा काम किया है। ऐसी गेंदे अक्सर खतरनाक हो जाती है। इंडिया को इस वक्त विकेट बचाकर खेलने की जरूरत है। फिर वे पाकिस्तान के सात फुट के गेंदबाज इरफान के बारे में चर्चा करने लगे। बोले लंबे बॉलर काफी खतरनाक होते हैं। इरफान को इंडिया को संभलकर खेलना चाहिए। यह सुनकर मैं तो और सन्न रह गया। यार जो आदमी कुछ दिन पहले तक एड में क्रिकेट सीखता हुआ नजर आ रहा था वो आखिर इतनी मंझी हुई कमेंट्री कैसे कर रहा है। अचानक रोहित ने लेग साइड में एक खूबसूरत शॉट मार दिया। बिग बी उस शाट की खासियत और मारने के अंदाज के बारे में चर्चा करने लगे। थोड़ी देर बाद कपिल देव उनके साथ शामिल हो गए। आते ही कपिल ने कहा कि आज मैं कुछ नहीं बोलूंगा जो कुछ बोलेंगे बिग बी बोलेंगे। बिग बी ने मुस्कुराकर कमेंट्री करते रहे। हर ओवर में रन और बल्लेबाजों के खेले गए शॉट के बार में दर्शकों को बताते रहे। इस बीच शोएब अख्तर ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों के बारे में चर्चा छेड़कर बिग बी से राय मांगी तो उन्होंने कहा कि आज तो वो बस इंडिया को ही जीतते हुए देखना चाहते हैं। वह ओवरों के बीच-बीच में हर्ष भोगले की तरह रन औसत के बारे में भी बताते रहे। कपिल देव बोले आपका तो क्रिकेट ज्ञान काफी अच्छा है। कपिल ने उनसे काम के पहले की जाने वाली तैयारी के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़ी ही सहजता से कहा कि हम कलाकारो से ज्यादा तो आप लोगों को मेहनत करनी पड़ती है। खिलाड़ियों को काफी परिश्रम करना पड़ता है। इस बातचीत के दौरान ही रोहित शर्मा का विकेट गिर जाता है। बिग बी साथियों के साथ उनके आउट होने पर चर्चा में व्यस्त हो जाते हैं। थोड़ी देर बाद कोहली लेग साइड में एक शॉट सभलकर लगाते हैं तो बिग बी कहते हैं कि रोहित और विराट में ये ही अंतर है। यदि रोहित अपनी आक्रमकता पर थोड़ा कंट्रोल रखते तो वो अपना विकेट नहीं खोते। फिर वह बोले अब मैं यहां से खिसक लूं तो ही बेहतर होगा । फिर वो बोले जब-जब मैंने इंडिया को पूरा मैच देखा है तब-तब इंडिया हार गई है। आज के दिन वे इंडिया को किसी भी हाल में हारते हुए नहीं देखना चाहते। अंत में वह कमेंट्री के लिए न्यौते पर गर्व करने की बात कहकर कमेंट्री बॉक्स से चले जाते हैं। और छोड़ जाते हैं करोड़ों दर्शकों के दिलों पर अपनी कमेंट्री की अमिट छाप। उसमें मैं भी एक हूं। बिग बी ए ग्रेट सैल्यूट टू यू...।

Saturday 14 February 2015

इंडिया-पाक मैच और अनोखे टोटके



विश्व कप में इंडिया और पाकिस्तान का मैच हो और भला रोमांच न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। भारत में टीम इंडिया को जिताने के लिए क्या-क्या जतन नहीं होते। हवन, पूजन, प्रार्थना और टोटके। मुझे सन् 1992 का विश्व कप में भारत और पाक का वो मुकाबला अभी भी याद है जब इरफान खान की धुरंधर टीम को हमारे रणबांकुरों ने जबर्दस्त टक्कर दी थी। सही कहूं तो उस दौरान मैंने पहली बार टोटकों का मर्म समझा था। उस दिन मैच के लिए मेरे टीचर ने यह कहकर छुट्टी ले ली कि यदि मैं पढ़ाऊंगा तो टीम इंडिया हार जाएगी। ये मेरा टोटका है। इसको प्रमाणित करने के लिए उन्होंने मेरे पिताजी को पुराने मैचों के कई अनुभव गिना दिए। मेरे पिताजी ने कहा टीम इंडिया नहीं हारनी चाहिए आप मौज करो गुरुजी। मैच शुरू होने के पहले ही मैं, मेरे पिताजी, भाई सभी एक स्थान पर बैठ गए। सिडनी किक्रेट ग्राउंड पर अजय जडेजा और श्रीकांत की जोड़ी पहले बैटिंग करने उतरी। पिताजी ने कहा कोई भी अपनी जगह से नहीं उठेगा। इरफान खान की कहर बरपाती गेंदों ने हमारी टेंशन बढ़ा दी। अभी मैं खड़ा ही हुआ था कि अचानक श्रीकांत का विकेट गिर गया। इससे गुस्साए पिताजी ने मुझे जमकर डांटा। कहा कि क्यों खड़ा हुआ था देखा विकेट गिर गया। अब अपनी जगह से हिलना मत। ये टोटका है। मो. अजहर और विनोद कांबली भी उस मैच में कुछ खास नहीं कर सके। सचिन ने संभल कर खेलना शुरू किया। मेरे छोटे भाई ने जैसे ही एक गिलास पानी पिया सचिन ने चौंका मार दिया। ये देख मेरे पिताजी बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा शाबास बेटा ये वाला टोटका फिट है। पानी पीते रहो। मेरे भाई को जबरन पांच-छह गिलास पानी पिला दिया गया। संयोगवश उस मैच में सचिन ने 57 रन की पारी खेली। पिताजी ने इसका श्रेय मेरे छोटे भाई और टोटके को दिया। उस मैच में इंडिया ने पहले खेलते हुए 49 ओवर में सात विकेट पर 216 रन बनाए थे। अब बारी पाकिस्तान की बल्लेबाजी की आई। आमिर सोहेल और इंजमामुल हक की सलामी जोड़ी खेलने उतरी। मैं किचेन से थोड़े बिस्कुट लेकर आया तभी इंजमाम दो रन बनाकर आउट हो गया। पिता जी ने मेरी पीठ थपथपाई और कहा शाबास ये वाला टोटका फिट है। जाओ और बिस्कुट लाओ और पूरी टीम को निपटाओ। फिर क्या था मैं बिस्कुट लाने में जुट गया। उस मैच में आमिर सोहेल ने शानदार खेल दिखाते हुए 62 रन ठोक डाले थे। उसे आउट कराने के लिए कभी हम आपस में जगह बदलते तो कभी छत पर जाते तो कभी थोड़ी देर के लिए टीवी बंद कर देते। आखिर में वो मेरे छोटे भाई के सोने के बाद आउट हुआ। पिताजी बोले इसे किसी भी हाल में मत जगाना वरना टीम इंडिया हार जाएगी। अंत में मुश्ताक अहमद के रन आउट होते ही हम खुशी में झूम उठे। टीम इंडिया की जीत का जश्न मनाने लगे। पिताजी बोले देखा टोटकों का कमाल...आज अगर ये सब न करते तो हमारी टीम न जीत पाती। सन् 1996 के विश्व कप में टीम इंडिया की भिडंत पाकिस्तान से बैंगलुरू के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई थी। मैच वाले दिन मेरे घर के बगल में रहने वाले खन्ना जी सुबह-सुबह ही मंदिर से लौटकर लोगों को पेड़े खिलाने लगे। मुझे भी एक पेड़ा दिया। मैंने पूछा आज क्या है...वो बोले बेटा मैं जब पेड़ा बांटता हूं तो टीम इंडिया जरूर जीतती है। इसलिए इसे चाहे तुम टोटका मानो या कुछ और मैं अपनी टीम की जीत के लिए प्रार्थना करके आया हूं। मेरा दोस्त राजेश मेरे घर आया और बोला यार आज मैंने नीली कमीज पहनी है। जानते हो क्यों। मैंने पूछा क्यों...। वो बोला ये मेरा टोटका है। ये कमीज जब मैं पहनता हूं तो मुझे अच्छी खबर सुनने को मिलती है। आज अपनी टीम का मैच पाकिस्तान से है। इसिलए लकी शर्ट पहनी है। वो मैच देखने के लिए मैं अपने दोस्त के घर गया तो देखा कि पूजा घर के बगल में ही टीवी रख दिया गया है। मैंने दोस्त से पूछा ऐसो क्यों तो वो बोला भगवान के बगल का स्थान शुभ होता है। आज शुभ खबर सुननी है इसलिए टीवी लगा वहां लगा दिया है। मैं हैरत में पड़ गया। उस मैच में सिद् और तेंदुलकर की जोड़ी पहले बल्लेबाजी करने उतरी तो हम दोस्त खुशी में उछल पड़े। मेरे दोस्त ने एक तकिया उठाकर गोद में रखा तभी सिद् ने चौंका मार दिया। हम सभी चीख पड़े हटाना मत बेटा...ये आज का टोटका है। संयोगवश उस मैच में सिद्धू ने 93 रन ठोक दिए थे। टीम इंडिया ने आठ विकेट पर 257 रन बनाए थे और पाकिस्तान को 248 में रोक दिया था। हमने जमकर जश्न मनाया था। इसी तरह 1999, 2003, 2007 और 2011 में भारत और पाक के मैच के दौरान हम टोटके ट्राई करते रहे और हमारी टीम जीतती रही। ये टोटके भले ही काम के हो या न हो लेकिन इनसे एक चीज जरूर जानने को मिली हमारे देशवासी अपने देश को बहुत प्यार करते हैं। वो उसे हारता हुआ कभी नहीं देख सकते हैं। शायद इसे टोटकों का असर कहें या फिर करोड़ों लोगों की दुआओं का नतीजा जो विश्व कप में हमारी टीम पाकिस्तान से शायद ही कभी हारी हो। 2015 के विश्व कप में भारत-पाक मैच के लिए हम फिर टोटके आजमाने को तैयार हैं...अरे भाई टीम इंडिया को जिताना जो है..।

Friday 13 February 2015

चाचा चौधरी और नागराज कहां हो...



बचपन के झरोखे से रह-रहकर बीती यादों की हवा मन को झुमाया करती है। कुछ दिन पहले मैं एक बुक स्टॉल के सामने से गुजर रहा था, तभी मुझे वहां दो-तीन कॉमिक्सें टंगी हुईं नजर आईं। उन पर नजर पड़ते ही मेरी बीती यादों का एलबम खुल गया। मुझे ये तो याद नहीं की मैंने कॉमिक्स पढ़ना कबसे शुरू किया लेकिन हां ये जरूर याद है कि मेरे मनपसंद कार्टून कैरेक्टर चाचा चौधरी, नागराज, कैप्टन ध्रुव, तौसी, बांकेलाल, मोटू-पतलू, कैप्टन बांड, फैंटम, पिंकी, बिल्लू, रमन, डोंगा जैसे पात्र थे। चाचा चौधरी को उस दौर में हम सुपर कंप्यूटर का पिताजी मानते थे। क्योंकि उनका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता था। चाचा चौधरी का साथी है साबू, जो जूपिटर ग्रह का निवासी है और जिसका शरीर दैत्याकार है। इसी तरह, "जब 'साबू' को गुस्सा आता है तो जुपिटर पे कोई ज्वालामुखी फटता है। चाचा चौधरी की बीवी का नाम बिनी चाची है। इनके कोई बच्चे नहीं हैं पर इसी कॉमिक दुनिया के पात्र, 'बिल्लू' और 'पिंकी' चाचा चौधरी के बच्चों सामान ही हैं। चाचा का कुत्ता राकेट भी अपने आप में उम्दा पात्र है। खासकर उसकी स्लर्प-स्लर्प कर दूध पीने की स्टाइल भूली नहीं जाती। चाचा का ट्रक डगमग भी अपने आप में खास तरह का वाहन है।  गोबर सिंह और राका जैसे विलेन हमेशा चाचा से मात खा जाते हैं। खासकर गोबर सिंह की योजना को चाचा बड़ी ही चालाकी से धराशायी कर देते हैं और साबू जमकर धुनाई करता है। उसके मुक्कों की ढिशुम-ढिशुम की आवाज एक अलग तरह का रोमांच मन में पैदा कर देती थी। इन्हीं कैरेक्टरों में दूसरा नाम आता है नागराज का। मैं कई महीने तक नागराज की उत्पत्ति वाली कॉमिक्स पढ़ने के लिए बुक स्टॉलों की खाक छानता रहा। आखिर एक दिन मुझे नागराज के जन्म की कॉमिक्स हाथ लग गई। मुझे पता चला कि नागराज राजा तक्षकराज और रानी ललिता का बेटा है। अपने अमर और विलेन चाचा नागपाश, प्रोफ़ेसर नागमणि, थोडंगा, नागदंत, टुटन खामेन, मिस किलर, नगीना, विषंधर, जादूगर शकूरा, गुरुदेव, केंटुकी, पोल्का, ज़ुलू, सपेरा, करणवशी, पारदर्शी, विष-अमृत को नागराज ने अपनी खास स्टाइल से हमेशा धूल चटाई। सम्मोहन में मॉस्टर नागराज जब हाथों से सांप छोड़ता था तो बड़े-बड़ों के छक्के छूट जाते थे। मुझे उसकी वो स्टाइल बहुत भाती थी। कैप्टन क्रुकबांड और मोटू की कार मैं अभी तक नहीं भूला हूं। जमीन, पानी और हवा में चलने वाली वो कार मुझे आज भी याद है। पतला दुबला कैप्टन और भारी-भरकम मोटू के हर किस्से मेरी जुबां पर रटे हुए थे। मुझे कॉमिक्स में यदि कोई पात्र सबसे ज्यादा हंसोड़ा लगा तो वो था बांकेलाल। सपने देखने वाला बांकेलाल एक ऋषि के श्राप के चलते हमेशा अपने राजा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता था लेकिन होनी उसे अच्छे में बदल देती थी। हमेशा राजा की गद्दी हथियाने में लगे रहने वाला बांकेलाल को कभी भी सफलता नहीं मिली। इसके अलावा मुझे बिल्लू के बाल कभी नहीं भूलते। हमेशा आंखों तक ढके रहने वाले वे बाल उसे एकदम खास बना देते थे। पिंकी की चालाकी और हंसी ने भी मेरे मन पर गहरा प्रभाव डाला था। इसके अलाव कैप्टन ध्रुव की बाइक और डोंगा की मशीनगन और उसके खास किस्म का चेहरा जेहन में अजीब तरह की सरसराहट पैदा कर देता था। इन पात्रों ने हमेशा मुझे बुराई से लड़ने और अच्छाई के रास्ते पर चलने की सीख दी। आधुनिकता के इस दौर में न तो अब ऐसे पात्र रह गए और न उनकी बहादुरी की मिसालें। काश ऐसे पात्र हकीकत में हमारे देश में आ जाएं तो कॉमिक्स बने हमारे देश की दशा सुधर जाए...।

Wednesday 11 February 2015

आओ, फिर से कंचे खेले...


बचपन में मैं लाल, नीले, पीले, हरे कंचों को जीतने के लिए बुरी तरह से पागल रहता था। मुझे जब भी मौका लगता था मैं कंचा मैदान में महारथियों को चुनौती देने के लिए उतर जाता था। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं कोई और मेडल तो नहीं जीत सका लेकिन बचपन में मेरे जीते हुए ढेरों कंचे मुझे आज भी ओलंपिक के मेडल के रूप में लगते हैं। रोज मेरी मां मुझे सुबह स्कूल के लिए बड़े प्यार से तैयार करके भेजती थी। रास्ते में मुझे मेरी कंचा मित्र मंडली हाईजैक कर लेती थी। उस मंडली में बड़े-बड़े दिग्गज कंचा चैंपियन थे। मेरा दावा है कि उस दौर के ओलंपिक में यदि बच्चा कंचा गेम होता तो मेरी मंडली भारत के चरणों में मेडलों का ढेर लगा देती। हमारी मंडली में कंचों की संख्या के हिसाब से हैसियत तय की जाती थी। उस वक्त मैं कक्षा सात में पढ़ता था। मेरी मंडली का सबसे सीनियर खिलाड़ी इंटर का छात्र था। उसने छोटे-बड़े कंचे मिलाकर करीब 200 से ज्यादा कंचे विरोधियों से जीते थे। उसे हम लोगों ने प्यार से कंचू गुरु का खिताब दिया था। हमारे बीच में कंचू की रिस्पेक्ट बहुत थी। हम सभी उस दौर में कंचू जैसा बनने का सपना देखते थे। हालत ये थी कि यदि उस दौर में भगवान सपने में आते और पूछते कि बेटा क्या वरदान मांगोंगे तो यही मांगते हमे कंचू से बढ़िया खिलाड़ी बना दो। मैं जब कभी अपने जीते हुए 10-12 कंचों को देखता था तो मुझे कंचू के संघर्ष की याद आ जाती थी। सोचता था कैसे उसने इतने कंचे जीते होंगे। कितना त्याग किया होगा...वाकई कितना बड़ा खिलाड़ी है यार। उस दौर में मुझे उससे बड़ा स्टार और कोई नजर नहीं आता था। मुझे अपनी पढ़ाई से ज्यादा कंचू गुरु के टिप्स याद थे। पिच्चुक (गड्ढा) में कैसे कंचा पहुंचाना है। बिलस्ता (हाथ के पंजे से नापना) से कैसे विरोधी को हराना है. अंटी में कंचे कैसे रखने हैं, तिरक्षी उंगली से कैसे कंचों को टीप उड़ाई जा सकती है। उंगुलियों को कैसे लचीला बनाया जाए तो जीत हासिल होगी, वगैरह...वगैरह। एक बार मैं कंचू गुरु के साथ एक मैदान में कंचे खेल रहा था। तभी सामने विरोधी टीम का लल्लन आया और हमकों शोले के गब्बर की तरह ललकार कर बोला हिम्मत हो तो मुकाबला करो। हमारे अंदर भी जय-वीरू की तरह जोश भर गया और बोले बेटा दम हो तो आ जाओ...। मैदान में एक साफ सुथरा स्थान देखा गया और वहां पिच्चुक बनाया गया। कंचों के जरिए हमने तय किया कि कौन कैसे खेलेगा। हमारी टीम में छह लोग थे। कंचू गुरु का पांचवा और मेरा छठा नंबर था। हमारे पास जमा पूंजी के रूप में कुल दस कंचे थे। बेईमानी न हो इसलिए हमने बगल में कंचा खेल रहे सीनियर कंचा खिलाड़ी को अंपायर के रूप में बुला लिया। हमारी टीम के खिलाड़ी ने शुरूआत में दो कंचे जीते तो हम लगान टीम की तरह शर्ट हवा में लहराकर अंगऱेजों के विकेट उखड़ने का जश्न मनाने लगे। अभी हम पूरा जश्न मना भी नहीं पाए थे कि हमारे खिलाड़ी हारने लगे। जीत के दो कंचों के साथ अंटी के छह कंचे भी चले गए। मैंने अपने मित्र कंचू से कहा यार अब तुम जाओ वरना हम बर्बाद हो जाएंगे। कंचू के खेल से विरोधी टीम भी डरती थी। इसलिए उसने भी अपने खिलाड़ियों में फेरबदल किया। कंचू ने जैसे ही खेलना शुरू किया हम ताली बजाकर कंचा जीतने की फिराक में लग गए। मैंने देखा कंचू कुछ देर में ही तीन कंचे हार गया। अचानक वो मेरे पास आया और बोला यार तुम जाओ...आज मेरा दिन नहीं है। मैंने कहा कंचू भाई तुम्हारे जैसा दिग्गज हार गया है, भला मेरी क्या बिसात। यार ये वाला आखिरी खेल भी तुमही खेल लो। लगता है आज हार हमारे नसीब में है। कंचू मुस्कुरा कर बोला, अपने आप पर क्यों शक करते हो। जानते हो यहां जितने भी खिलाड़ी खड़े हैं उन सबमें सबसे बेहतर तुम हो। आज तुम्हारा दिन है। जाओ और इस एक कंचे के दम पर इन विरोधियों को धूल चटा दो। याद रखो इस वक्त तुम जो खेल खेलोगे वो तुम्हारी जिंदगी का सबसे बेहतरीन खेल होगा। जाओ खुद पर भरोसा करो और ये मानकर उतरो कि आज कुछ भी हो जाए तुम्हे कुछ भी गंवाना नहीं है। तुम्हे बस जीत और सिर्फ जीत के लिए ही खेलना है। पता नहीं कंचू की इन बातों ने मुझ पर कैसा जादू कर दिया। मेरे दिल और दिमाग में बस जीत की ललक ही भर गई। अक्सर मैं डरते हुए खेलने उतरता था पर आज मैं छप्पन इंच की छाती लेकर मैदान में आया। विरोधी बोले शूरमा ढेर हो गए अब बाटी चूरमा आए हैं...निपटाओ भाई इनको भी। पैक करो इनका बोरिया-बिस्तर...। मैंने संभलकर खेलना शुरू किया। धीरे-धीरे मैं जीतने लगा। एक कंचा, दो, तीन...छह । एक कर मैंने अपनी टीम के सभी कंचे जीत लिए और विरोधियों के पांच कंचे भी अपनी अंटी में ले आया। विरोधियों ने खेल बंद करने का ऐलान कर दिया। हमारी टीम जश्न मनाने लगी। मैंने देखा कंचू मैदान से गायब है...। मैं दौड़ता हुआ मैदान के बाहर पहुंचा तो मैंने देखा कि कंचू एक चबूतरे पर आराम से बैठकर अमरूद खा रहा है। मैं दौड़ता हुआ उसके पास पहुंचा और बोला मालूम है कंचू क्या हुआ। कंचू मुझसे बड़े प्यार से बोला बधाई हो आज के चैंपियन। मैंने कहा यार मैं तो तुझे अपनी जीत के बारे में अभी बताने वाला था पर तुझे तो सब मालूम है। आखिर कैसे। चबूतरे से उतरकर कंचू मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोला वो इसिलए कि आज मैंने तेरी आंखों से डर को दूर किया था। तेरे दिल में जीत की भूख और जुनून भरी थी। ये चीजें आज मुझमें नहीं थी। इसलिए मैं हार गया। याद रखना विरोधी को हमेशा जीत हमारा डर ही दिलवाता है। जब हमारे अंदर डर ही नहीं होगा तो भला हमसे कौन जीत पाएगा। आज तू डरा नहीं और जीत ने तेरे कदम चूम लिए। इस फलसफे को पूरी जिंदगी में ढाल लेना...दुनिया की कोई भी बाधा तुझे आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएगी। उस दिन मैंने कंचू के उस गुर को गांठ जैसा बांध लिया। कंचे के खेल ने मुझे बड़ा ज्ञान दे दिया था। वो दिन था और आज का दिन मुझे जीवन में इससे बड़ी सीख और किसी से नहीं मिली। अब भी रह रह कर कंचू की याद आ जाती है। कंचे खेलते बच्चों को देखकर दिल कह उठता है आओ फिर से कंचे खेले...।

 

 

 

 

 

 

  

Tuesday 10 February 2015

बड़ों का श्राप लोगे तो ये ही होगा...


जब मैं छोटा था तब मेरे घर के लोग मुझसे कहते थे बेटा कभी बड़ों का श्राप मत लेना वरना तुम बर्बाद हो जाओगे...। तबसे मैं इस नसीहत का पालन कर रहा हूं। हाल में ही दिल्ली में हुए चुनाव के परिणामों में मुझे इस नसीहत का एक अच्छा उदाहरण नजर आया। वो था भाजपा की शर्मनाक हार...। एक ऐसी हार जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। इस हार का तरह-तरह से पोस्टमार्टम किया जा रहा है। मेरे फेसबुक एकाउंट में एक ऐसी फोटो आई जिसने मुझे अपनी बात कहने का आधार दे दिया। गौर से देखिए इस फोटो को। इसमें आपको मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी बाजपेई नजर आ रहे होंगे। भाजपा में जब नरेंद्र दामोदारदास मोदी का उदय हुआ तो इन बुजुर्गों में अटल जी को छोड़कर शेष दोनों का सूर्य अस्त कर दिया गया। जोशी और आडवाणी को पार्टी से सम्मानजनक तरीके से रुसवा कर दिया गया। मार्गदर्शक मंडल में उन्हें पार्टी को मार्ग दिखाने के लिए छोड़ दिया गया। सोचिए जिन लोगों ने बीजेपी को खड़ा करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया गया हो उन्हें एक झटके में ऐसे निकालकर फेंक दिया गया मानो दूध से मक्खी। जिस वक्त उन्हें किनारे लगाया गया उस वक्त बीजेपी की दिल्ली में 32 सीटें थीं। बेचारे इन बुजुर्गों के दिलों से निकली आहों ने पार्टी की ऐसी गत बनाई कि 32 से दो हट गया और रह गया तो सिर्फ तीन। यानी 67 विरोधियों का मुकाबला करने के लिए बचे सिर्फ तीन शूरमा। अब तो संशय इस बात का है कि डर के मारे कहीं ये विरोधियों को समर्थन न दे दें। पहले जिस पार्टी के विधायक बस में भरकर आते थे उन्हें दिल्ली के चुनाव ने रिक्शा पर भी आने लायक नहीं छोड़ा। अब दबी जुबान में ये चर्चा तेज हो गई है कि बड़े-बूढ़ों की आहें लोगे तो ये ही हश्र होगा...। अभी भी वक्त है सुधर जाओ...आगे मंजिलें और भी हैं...।

 

Monday 9 February 2015

जादुई झाड़ू और राजसिंहासन

बड़ा सुंदर विषय है। तो चलिए इसकी शुरूआत एक हास्य व्यंग से करते हैं। एक दिन घर से निकलते वक्त मुझसे मेरी मां ने एक झाड़ू खरीदकर लाने के लिए कहा। मैंने कहा मां मैं तुम्हे झाड़ू लाने वाले दिखता हूं। मेरी जैसी बुलंद शख्सियत का इंसान तुच्छ झाड़ू को छूकर खुद को अपवित्र नहीं कर सकता...। ...जाओ दुनिया का ये सबसे वाहयात काम किसी और से कराओ। ये कहकर मैं घर से बाहर आ गया। अभी थोड़ी दूर आगे ही बढ़ा था तभी मुझसे मेरे मुहल्ले के बुजुर्ग छोड़ूलाल टकरा गए। हाथों में कई झाड़ुओं का गट्ठर टांगे हुए उन्होंने दीनता के भाव से मेरी ओर देखा। मैंने कहा दादा ये क्या...। मैं एक झाड़ू छूने की हिम्मत नहीं कर सकता और आप इतनी सारी झाड़ू ले आए। आपको शर्म नहीं आ रही। उन्होंने बड़े प्यार से मेरी ओर देखा और बोले अभी तू मूरख है...। मैंने पूछा क्यो...। झाड़ूओं के गट्ठर को जमीन पर रखकर उन्होंने कहा कि ये तो बड़ी पुनीत वस्तु है...। तुझे मालूम है कि इस झाड़ू ने न जाने कितने बिगडैल पतियों के अहंकार और दिमाग को ठिकाने लगा दिए। नशेड़ी, गंजेड़ी, भंगेड़ी समेत दुनिया की सभी तरह के तुच्छ जीवों को सिर्फ ये ही कंट्रोल कर सकी है। ...नशे में बेसुध होकर जब एक नशेड़ी घर को लौटता है तो सिर्फ झाड़ू से पिटाई ही उसे होश में लाती है। अब बेटा झाड़ू का दूसरा गुण सुनो...। तुमने उस किताब का नाम तो सुना ही होगा...अरे वहीं जिसमें एक लड़का जादुई झाड़ू पर उड़कर कहीं भी चला जाता था...। मैंने जवाब दिया हैरी पॉटर...। वो बोले हां वही ससुरा पॉटर..। अब तुम बताओ उस विलायती लेखिका ने झाड़ू को कैसे महिमामंडित कर दुनिया में बड़ा नाम कमा लिया। सभी की जुबान पर उसका और किताब का नाम आ गया। अरे उसकी तो पिक्चर भी बन चुकी है। मैंने कहा हां मैंने देखी है। इस बीच बातचीत के दौरान मोहल्ले में रहने वाले झक्कीलाल सड़क पर झाड़ू लगाते हुए नजर आ गए। छोड़ूलाल ने उनकी ओर इशारा करते हुए कहा की गौर से देखो इस शख्स का। कभी घर मा झाड़ू नहीं लगा ईस...। सड़क पर ऐसे झाड़ू मार रहा है मानो इससे बड़ा स्वच्छता प्रेमी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ। ये अपने आपको ऐसे जताना चाहता है मानो देश में स्वच्छता का अभियान यहीं चला रहा हो। और सुनो अपने देश में जब ऊपरी लेनदेन (घूस) बहुत बढ़ गया था तब कुछ साल पहले मफलर पहने खांसता हुआ एक शख्स इस देश में अवतरित हुआ। झाड़ू लेकर उसने अपने महाभ्रष्ट भाइयों के खिलाफ आंदोलन फूंक दिया। घूसखोरों से त्रस्त जनता भी उसके साथ हो ली। हर तरफ झाड़ू ही झाड़ू नजर आने लगी...। ऐसा लगा पूरा देश झाड़ूस्तान हो गया हो। खुद की फजीहत से बचने के लिए अपने घूसखोर भाई भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। घूसखोरी में आस्कर पाने वाले भी मजबूरी में नीति और ईमानदारी के रास्ते पर चलने लगे। इसी जादुई झाड़ू की बदौलत वो मफलर वाला शख्स राजसिंहासन पर जा विराजा। इस बीच उसे अहसास हुआ कि उसने लोगों से जरूरत से ज्यादा वादे कर दिए हैं जिन्हें पूरा कर पाना उसके बस की बात नहीं है। मौका देखकर उस शख्स ने वो सिंहासन त्याग दिया। देश में हल्ला मचा भगोड़ा है... न जाने क्या-क्या...। लेकिन वो तनिक भी नहीं घबराया। झाड़ू लेकर बस अपनी धुन में लगा रहा। एक बार फिर चुनाव हुए और और उस शख्स की झाड़ू की आंधी ऐसी चली की बड़े-बड़े सूरमा भोपाली उस आंधी में उड़ गए। जिन्होंने सपने में भी कभी हार के बारे में सोंचा नहीं था उन्हें हकीकत में अपनी जमानत तक गंवानी पड़ गई। अब उसी झाड़ू की बदौलत वो शख्स फिर उस सिंहासन पर जा विराजा है। विरोधियों का आलम तो ये है कि पहले जो विरोधी बस में भरकर उसे गरियाने आते थे वो अब एक साइकिल भी आने लायक नहीं बचे। इस वक्त हर तरफ नजर आ रही है तो बस झाड़ू ही झाड़ू...।

मैं दावे से कहता हूं इस वक्त दुनिया में सबसे बड़ा ब्रांड झाड़ू है। हर कोई इसके साथ नजर आना चाहता है...फिर तू क्यों दूर भाग रहा है रे मूरख। मैंने झक्कीलाल से क्षमा मांगी और दौड़ पड़ा ढेर सारी झाड़ू लेने को....।

 

Sunday 8 February 2015

मौजी के िदल से...

िदल की बात िदल से ही कही जा सकती है। िकसके िदल में कब क्या चलता है और क्या पलता है कोई नहीं बता सकता। हां, एक चीज जरूर ऐसी है जो हमारे िदलों में जगह बना देती है...वो है िदल को छूने वाली बात। इस ब्लाग के जरिए मैं ऐसी ही चीजे कहने और िदखाने की कोिशश करूंगा जो आपके िदल को छू जाए। यदि आप वाह या िफर आह कह उठेंगे तो मैं समझूंगा मैं सही रास्ते पर था। हां...एक बात और। इस ब्लाग से जुड़ने के िलए आपको भी अपना िदल थोड़ा मेरे करीब लाना होगा। हम बात सिर्फ वहीं करेंगे जो देखेंग और महसूस करेंगे। ....तो िमत्रों बहुत-बहुत धन्यवाद यह पोस्ट पढ़ने के िलए...। आगे भी इसी तरह अपना प्यार देते रहिएगा...।