Tuesday 29 December 2015

पत्नी की ईयर एंडर पाती...


(घर से दूर रहकर नौकरी कर रहे पति को पत्नी ने अद्भुत ईयर एंडर (वर्ष 2015 समापन) पाती भेजी है। पेश है उस पाती के अद्भुत अंश...।)

प्रिय प्राणनाथ,

सादर चरण स्पर्श

मैं ठीक-ठाक हूं, उम्मीद करती हूं आप भी ठीक होंगे। मैने सोचा यह साल जाते-जाते आपको कुछ याद दिला दूं। इस दिवाली अपने पड़ोसी शर्मा जी नई कार ले आए। शर्माइन वो कार दिखाकर अब मुझे जलाने लगीं हैं। परसो घर के पड़ोस में रहने वालीं वर्माइन घर आई थीं। उनके पति को प्रमोशन मिला है और तनख्वाह भी काफी बढ़ गई है। अब उनका पैकेज तीन लाख रुपए से बढ़कर पांच लाख रुपए सालाना हो गया है। उन्होंने मुझसे पूछा कि आपकी तनख्वाह कितनी बढ़ी है और प्रमोशन हुआ है कि नहीं। मैंने उनसे झूठ बोल दिया है कि बॉस तो आपकी तनख्वाह बढ़ाने के लिए हमेशा परेशान रहते हैं। आपको दो बार प्रमोट भी कर चुके हैं और तीसरे की तैयारी है। मैंने उन्हें नहीं बताया कि बीते तीन साल में एक धेला भी आपकी तनख्वाह में नहीं बढ़ा है। आप तीन साल पहले जो कुर्सी तोड़ रहे थे, आज भी वहीं कुर्सी घिस रहे हैं। आगे भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। कल अपना बच्चा चुन्नू साइकिल के लिए जिद कर रहा था, कह रहा था मम्मा इस साल तो मैं साइकिल लेकर ही मानूंगा। मैंने उसे दस रुपए की प्लास्टिक वाली साइकिल का खिलौना दिलाकर मना लिया है।
मैंने कहा है कि बेटा पापा जब आएंगे तो तुम्हें बहुत अच्छी साइकिल दिलाएंगे। दस साल पहले मेरे दहेज में जो स्कूटर मिली थी अब वह काफी टूट गई है। परसो उसका हैंडल टूटकर गिर गया। आपने एक बार भी उसकी मरम्मत कराना मुनासिब नहीं समझा। हर बार आप कम तनख्वाह और महंगाई का ताना देकर मुझे शांत करा देते हो। आखिर मेरे मायके की चीजों को कब आप गंभीरता से संभालना सीखोगे। इस बार आना तो उसकी मरम्मत जरूर  करा लेना। आपके कहे अनुसार हमने दो सौ रुपए किलो की अरहर दाल खाना बंद कर दिया है। अब हम सब्जी और अन्य चीजों से काम चला रहे हैं। और हां, आज बैंक का रिकवरी एजेंट आया था। बहुत गुस्से में था, कह रहा था जब लोन लेना था, तब अच्छे दिन आएंगे, लोन जल्द चुकाएंगे का जुमला कहकर मिश्राजी दो लाख रुपए का लोन तो पास करवा ले गए। अब किश्त भरने में नानी याद आ रही है। 
उनसे कह देना जल्दी से जल्दी किश्त भर दें वरना खैर नहीं। आपके कहे अनुसार मैंने घर के हर खर्च में कटौती करनी शुरू  कर दी है। और हां...अपने मोहल्ले के लाला पंसारी ने उधार देने से मना कर दिया है। उसका कहना है कि तीन महीने से पांच हजार रुपए बकाया हैं, मिश्रा जी हर बार मूर्ख बनाकर निकल जाते हैं। अब नकद दो तभी सामान मिलेगा। आप जो हर महीने अपनी 15 हजार रुपए की तनख्वाह में दस हजार रुपए भेज रहे हैं, उससे घर चलाना मुश्किल हो रहा है, महंगाई देखिए कहां से कहां पहुंच गई है...20 रुपए किलो वाला प्याज 40-50 और पांच रुपए किलो वाला आलू 20 रुपए में बिक रहा है। आप कोशिश करके साइकिल ले लीजिए और अपने रोज के यात्रा खर्च को हमारे खर्च में जोड़कर भेज दीजिए। मैं जैसे-तैसे काम चला लूंगी। ...और हां आपके छोटे साढ़ू की किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई है। उन्हें सिंगापुर का फैमिली ट्रिप मिला है। वो जनवरी में जा रहे हैं। हमने 31 दिसंबर को वो जो हरिद्वार चलने का प्लान बनाया था, इस बार भी लगता है उसे कैंसिल करना पड़ेगा। क्या करें पैसे ही नहीं बचे हैं। आपने वो जो 1000 रुपए की साड़ी दिलाई थी, वो पहली धुलाई में ही तार-तार हो गई है। मेरी सहेली गीता हाल में ही 25000 की साड़ी लाई है...। बहुत अच्छी साड़ी हैं।  मुझसे वो मेरा साड़ियों का कलेक्शन दिखाने के लिए कह रही थी, मैंने कह दिया कि मेरे सारे कलेक्शन आपके पास हैं। जब आप आएंगे तो मंगवा लूंगी।
घर की छत टूट गई है, बारिश में पानी रिसता है। बिजली का बिल ज्यादा बकाया होने से मीटर कटने की नौबत आ गई है। देवर जी कैसे-तैसे बिजली वालों को घूस देकर काम चला रहे हैं। बाबू जी टूटी छड़ी में कीलिया ठोंक-ठोक कर हार गए हैं। बेचारे हर बार आपके आने के बारे में पूछते हैं। माता जी की मोतियाबिंद का आपरेशन इस बार कराना ही पड़ेगा उन्हें दिखना बंद हो गया है। मेरे प्रिय पतिदेव बीता वर्ष नो छुट्टी, नो इंक्रीमेंट और नो प्रमोशन से गुजर गया। ईश्वर करे 2016 में ऐसा न हो। आप तरक्की की नई सीढ़ियां चढ़े और मुझको ऐसी पाती लिखने की जरूरत  न पड़े।

पुनश्चः सादर चरण स्पर्श
                                                                                                                               आपकी प्रिय पत्नी

Monday 28 December 2015

तो ये हैं दुनिया की सबसे बोरिंग नौकरियां...





क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कुछ नौकरियां ऐसी भी है जिन्हें काफी बोरिंग माना जाता है। बोरिंग का पैमाना काम की एकरूपता  और कुछ भी नया न होना है। ऐसे लोग सिर्फ एक ही काम बार-बार करते हैं और बोर हो जाते हैं। कुछ वेबसाइटों के अवलोकन के बाद पेश है दुनिया की चुनिंदा बोरिंग नौकरियां...।

 ट्रक चालक

किड केयरिंग

रेस्टोरेंट में बर्तनधोने का काम

ट्रैफिक सिपाही

प्रोडक्ट मैनेजर

सीनियर वेब डेवलपर

टेक्निकल स्पेशलिस्ट

इलेक्ट्रानिक तकनीशियन

क्लर्क

टेक्निकल सर्पोट एनालिस्ट

सीएनसी आपेटर (कंप्यूटर न्यूमेरिकल काउंटिंग आपरेटर)

मार्केटिंग मैनेजर

Sunday 27 December 2015

वैदिक गणित का जादू




ये फॉर्मूला आपको हैरत में डाल देगा

  259 X आपकी उम्र X 39 = ?

 कुछ बहुत ही इंटरेस्टिंग उत्तर मिलेगा आपको, ट्राई कीजिए!

विश्व के इन महान कथनों ने बदल दी दुनिया...


1- मेरी मां ने मुझसे कहा था यदि तुम सैनिक बने तो तुम जनरल बनोगे,  यदि तुम संत बने तो आगे चलकर पोप बनोगे। लेकिन...मैं  तो पेंटर था....और  मैं पिकासो बन गया।  (पाब्लो पिकासो - 1881-1973)

2-समस्याओं के बीच में ही संभावनाएं  जन्म लेतीं हैं।
(अलबर्ट आईंस्टीन- 1879-1955)

3-जब तक आप खुद को मूर्ख जताते रहेंगे तब तक आप महान नहीं बन सकते हैं।
(चेर-सिंगर, 1946)

4- यदि आप किसी के चरित्र को समझना चाहते हैं तो उसे ताकत दे दीजिए।
( अब्राह्म लिंकन, पूर्व राष्ट्रपति, अमेरिका)

5- मेरे नौ हजार से ज्यादा शॉट बेकार गए। मैं तीन सौ से ज्यादा मैच हार गया। 26 बार मैंने मैच विनिंग शॉट मिस कर दिए। इसके बावजूद आज मैं सफल हूं...पता है क्यों...। (माइकल जॉर्डन, महान बॉस्केटबाल खिलाड़ी, अमेरिका)

6- कुछ नहीं करने से बेहतर है कुछ करते रहिए। (कन्फयूशियस, महान दार्शनिक)

7- कल्पनाशीलता दुनिया पर राज कराती है। (नेपोलियन  बोनापार्ट-1769-1821)

8-  लगातार हारने वाला ही सबसे बड़ा विजेता बनता है क्योंकि वो जीतने तक गेम में टिका रहता है। (टैरी पॉलसन-वैज्ञानिक)

9-  आप नहीं आपका काम बोलना चाहिए। ( हेनरी जे केसर, उद्योगपति)

10-   एक झूठा मित्र और आपकी छाया केवल सूर्य की रोशनी तक ही आपके साथ रहती हैं। (बेंजामिन फ्रेकलिन, पहले करोड़पति, अमेरिका)

इस अजब सवाल का जवाब है आपके पास...



आज मैं एक बच्चेसे मिला उसने मुझसे कहा अंकल...मेरे एक सवाल का आप जवाब दो तो मैं जान जाऊं कि आप कितने इंटलीजेंट हो। मैंने कहा बेटा पूछो...।

बच्चा बोला- मैंने अपने स्कूल में पांच टीचरों से सेल का मतलब पूछा। उसके जवाब मुझे इस तरह मिले।

बॉयलाजी टीचर- सेल का मतलब कोशिका ...

अंग्रेजी टीचर- सेल का मतलब मोबाइल...

कॉमर्स टीचर- सेल का मतलब बिक्री...

फिजिक्स टीचर- सेल का मतलब बैटरी...

हिस्ट्री टीचर- सेल का मतलब जेल...

अब बताइए मेरा जवाब क्या होगा।

बच्चे का जवाब था यार एक शब्द को लेकर जब पांच टीचर एकमत नहीं है तो फिर ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा...।


Saturday 26 December 2015

चश्मे पर दिखेंगे फेसबुक और व्हाट्स एप मैसेज


तकनीक  की दुनिया तेजी से बदल रही है। सोशल मीडिया  के युग में नित नई तकनीक हमें हैरत में डाल रही है। भविष्य की कुछ ऐसी ही तकनीक  पर काम करने में जुटा हुआ है गूगल। जानकारों  का कहना है कि गूगल ने एक ऐसा चश्मा बना लिया है जिसे लगाकर सोशल मीडिया  की हर अपडेट पर नजर रखी जा सकेगी। इसके साथ ही गूगल मैप के जरिए रास्ता भी खोजा जा सकेगा। इसके अलावा जीपीएस से भी जुड़ा जा सकेगा और तो और मनचाही फोटो भी चश्मे पर लगा एक बटन दबाते हुए खिच जाएगी। इस चश्मे में हर अपडेट को न केवल देखा जा सकेगा बल्कि उसको लाइक और अनलाइक भी किया जा सकेगा। इस तकनीक का नाम गूगल ने रखा है गूगल ग्लास। इस जादुई चश्मे का टेस्ट भी किया जा चुका है। जानकारों  का कहना है कि इस तकनीक का स्काई डाइवर्स पर सफल परीक्षण किया जा चुका है। अभी इसकी लागत करीब 1500 डालर बताई जा रही है। इसकी कीमत कम करने के लिए गूगल की रिसर्च टीम जुटी हुई है। इसे लोगों के लिए और सुविधाजनक  बनाने पर काम चल रहा है। 2016 तक यह तकनीक बाजार में आने की उम्मीद जताई जा रही है।

Friday 25 December 2015

एक रुपए में साधना ने की थी पहली फिल्म



 
मशहूर अभिनेत्री साधना शिवदासानी का निधन शुक्रवार को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में हो गया। वह ट्यूमर के कैंसर से पीड़ित थी। साधना का जन्म दो सितंबर 1941 में पाकिस्तान के सिंध में हुआ था। उनके पिता हरी शिवदासानी ने साधना का नामकरण अपनी पसंदीदा अभिनेत्री साधोना बोस के नाम पर किया था। आठ साल तक साधना की पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई। 15 साल की उम्र में उनकी खोज कुछ फिल्म निर्माताओं ने कर ली थी। उन्हें 1960 में भारत की पहली सिंधी फिल्म अबाणा में काम मिला। उस फिल्म में साधना ने अभिनेत्री की छोटी बहन का किरदार निभाया। इसके लिए उन्हें टोकन के रूप में एक रुपए मिला था। यह फिल्म काफी हिट हुई और फिल्मी पत्रिकाओं में साधना का अभिनय सुखिर्यों में छा गया। उस दौर के जाने-माने फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी की नजर उन पर पड़ी तो उन्होंने झट से उन्हें अपनी फिल्म लव इन शिमला (1959) में उन्हें मुख्य किरदार दे दिया। उनके साथ अभिनेता थे सुबोध के बेटे ज्वाय मुखर्जी। यह फिल्म उस दौर में काफी हिट हो गई। साधना रातों-रात बड़ी अभिनेत्री बन गई। कहा जाता है कि 1960 के दौर में वह सबसे बड़ी अभिनेत्री थी। मेरे महबूब, हम दोनो और असली नकली जैसी फिल्मों ने उन्हें रातोंरात बड़ा स्टार बना दिया। साधना को उनके सशक्त अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था।

...तो अरब मुल्कों में भी चलता था भारतीय रुपया



आपको जानकर हैरत होगी कि भारत विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है जहाँ सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। जानकारों की माने तो करीब 6वीं सदी ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा' से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चांदी। संस्कृत में 'रूप्यकम्' का अर्थ है 'चाँदी का सिक्का'। रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच शेरशाह सूरी की ओर जारी किए गए चांदी के सिक्के के लिए उपयोग में लाया गया था। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल में भी उपयोग में लाया जाता रहा। बीसवीं सदी में फारस की खाड़ी के देशों तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित था। इसे मुद्रा के रूप में मान्यता थी। सोने की तस्करी बढ़ने पर रिजर्व बैंक ने एहतियातन 1959 में गल्फ रूपी का विपणन किया। साठ के दशक में कुवैत तथा बहरीन ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी ख़ुद की मुद्रा प्रयोग में लानी शुरू की तथा 1966 में भारतीय रुपये में हुए अवमूल्यन से बचने के लिए क़तर ने भी अपनी मुद्रा शुरू कर दी ।

Monday 21 December 2015

बिकाऊ है शादी की शेरवानी, सेहरा...


बतोलेबाज ननकऊ को लंबी-लंबी छोड़ने का बड़ा शौक था। अक्सर वो किसी की शादी में जाता था तो कहता था, अमां पूरा मूड खराब हो गया...। इससे बढ़िया खाना तो मेरे घर में बनता है। (मुंह पिचकाकर)...शाही पनीर से पनीर गायब थी, तंदूर की रोटियां ऐसी मानो रबर काट रहे हो।...वो तो जिसकी शादी थी वो मेरा करीबी न होता तो मैं झांकने न जाता...। दोस्त समझाते नहीं यार किसी के इंतजाम का ऐसा मजाक नहीं उड़ाते लेकिन वह नहीं मानता। वह दावा करता था कि देखना जब मेरी शादी होगी तो तुम लोग कई बरसों तक याद रखोगे। मक्कारी में पीएचडी कर चुके ननकऊ का जीवन अजगर करै न चाकरी, पंक्षी करै न काज वाले सिद्धांत पर चल रहा है। उसका मानना है कि आपको काम तलाशने की आवश्यकता नहीं है, काम आप तक खुद चलकर आएगा। ननकऊ के लिए रिश्ता खोज-खोजकर पिता चिंतामणि रिटायर्ड हर्ट हो गए लेकिन एक भी रिश्ता नहीं मिला। लड़की वालों का तर्क था बेरोजगार दामाद को ढोया जा सकता है लेकिन नक्शेबाज को किसी भी कीमत पर नहीं। अचानक एक दिन पंडित जी घर आए और चीखे... मिल गई...अपनी ननकऊ की बहुरिया मिल गई। चिंतामणि लड्डू और दक्षिणा लेकर पंडित जी के पास ऐसे पहुंचे और पूछा कहां मिली। पंडित जी बोले, सात कोस पर एक गांव है बंजारापुरवा। वहां रहने वाले चौधरी साहब अपनी बिटिया के लिए लड़का तलाशते-तलाशते थक गए हैं। अब वो कह रहे हैं कोई भी पकड़ लाओ... बस इसके हाथ पीले करने हैं। चिंतामणि ने पूछा उम्र कितनी है....। यही कोई 45-46 साल। अरे उम्र छोड़िए साहब, मैंने तो 50-50 साल में जोड़ों की शादी करवाई है। पढ़ी कितना है...। पांचवी पांच बार फेल...। इसके बाद स्कूल छोड़ दिया। खाना पका लेती है। पंडित जी बोले, घर में पांच-छह नौकर होने के कारण कभी खाना बनाने की जरूरत  नहीं पड़ी। अच्छा कुछ दान दहेज मिलेगा। देख भाई लड़की का पिता दहेज विरोधी संस्था का अध्यक्ष है। गलती से उसका नाम भी मत लेना वरना शादी एक तरफ हो जाएगी। कटोरे के लड्डू झोले में भरते हुए पंडित जी बोले..सोच का रहे हो...इससे बढ़िया रिश्ता नहीं मिलेगा। हां करो वरना मैं दूसरी जगह बात करूं...।  मजबूरी में चिंतामणि को हां कहना पड़ा। एक महीने बाद ब्याह पक्का हो गया। ननकऊ को बड़े घर में शादी तय होने की बात मालूम पड़ी तो वह फूले नहीं समाया। लोगों के सामने लंबी-चौड़ी छोड़ने लगा। उसने शादी की खरीदारी के लिए पिता से पैसे मांगे तो उन्होंने साफ मना कर दिया। बेटा शादी से मना न कर दे इसलिए पिता ने दहेजविरोधी वाली बात नहीं बताई।  इज्जत बचाने के लिए ननकऊ ने गांव के गोगा पहलवान से शादी के नाम पर लंबा चौड़ा कर्जा ले लिया। पहलवान ने अमानत मांगी तो कहा दहेज में जो मिलेगा वो सब तुझे दे दूंगा। तेरा कर्जा भी निपट जाएगा और मेरी लाज भी बच जाएगी। लंबे चौड़े बैंड, कारों के काफिले, आतिशबाजों की फौज संग राजसी शेरवानी और सेहरे से सजे संवेरे ननकऊ की बारात जब चौधरी के दरवाजे पर पहुंची तो लोग देखते ही रह गए। सभी कह रहे थे गुरु आजतक ऐसी बारात न देखी।  द्वारचार के बाद दूल्हा स्टेज पर पहुंचा तभी कुछ बाराती शिकायत लेकर पहुंचे। यार यहां तो पंगत में बैठाकर खिला रहे हैं। ये कोई इंतजाम है...। खाना लग रहा है एक दिन पहले बना हो...। बासी आक थू...। ननकऊ हंसकर टालने की कोशिश करता तो बाराती कहते गुरु तुम भी तो बहुत कमी गिनाते थे। आज ननकऊ को बड़ा दुख  हो रहा था। रात में फेरे हुए तो ननकऊ को एक रुपए की दक्षिणा नहीं मिली। बेचारे ने सोचा चलो कलेवा से पहलवान को देने के लिए पैसे निकल आएंगे। कलेवा में मात्र लड़की की मां आई और ननकऊ का मुंह मीठा कराकर जाने लगी। ननकऊ ने बड़ी उम्मीद से देखा तो बोलीं बेटा बुरा मत मानना, कल्लो के पिता जी ने आज तक कहीं कोई व्यवहार नहीं किया इसलिए कोई व्यवहार नहीं आया। वे दहेज विरोधी हैं। ये सुनते ही ननकऊ की आंखों के सामने अंधेरा छा गया...। एक डलवा पूड़ी, आधा डलवा लड्डू और पांच-पांच किलो आटा, दाल, चावल के साथ ननकऊ विदा किए गए।  विदाई के दौरान दुल्हन तो कम रोई पर ननकऊ फूट-फूट कर रोया। जिसने भी देखा तो उसकी आंख नम हो गई। सभी कहने लगे भाई चौधरी किस्मती है लड़की से ज्यादा दामाद दुखी है। बारात गांव लौट आई...। हर तरफ ननकऊ की थू-थू हो रही थी। मारे शरम के वह घर से बाहर नहीं निकला। दूसरे दिन गोगा पहलवान घर आया तो शादी में मिले गिफ्ट को देखकर उसका पारा चढ़ गया। गुस्से में बोला ...इससे अच्छा दहेज तो हमारे गांव के बटाईदारों को मिलता है। तू धर...इसको। ये बता मेरा पैसा मुझे कैसे वापस मिलेगा। मजबूरी में ननकऊ को शादी की शेरवानी, जूती और सेहरा पहलवान को कर्ज की पेशगी की रूप  में देना पड़ा। गोगा पहलवान ने अपने अखाड़े के बाहर बोर्ड लगाया बिकाऊ है शादी की सेरवानी और सेहरा...। सुना है कर्जा चुकाने के लिए ननकऊ को पहलवाने के तबेले में काम करना पड़ रहा है। लोग चुटकी लेते हुए कहते हैं, भइया बढ़िया हुआ सेर को सवा सेर मिल गया...। अब ननकऊ जिस किसी भी शादी में जाते हैं तो तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं...।

Friday 18 December 2015

सुखी दांपत्य जीवन के लिए तलाकशुदा के टिप्स


सुखीराम की कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से शादी हुई थी। जनातियों ने बारातियों के स्वागत के लिए शानदार इंतजाम किए थे। लेकिन अफसोस इतना सम्मान पाकर हमेशा की तरह इस बार भी बारातियों का दिमाग फिर गया। फिर उन्होंने वो किया जिसने जता दिया कि हां यहां जरूर  बाराती आए होंगे। फटे गद्दे, टूटी कुर्सियां, गायब प्लेट और चम्मच, पान मसाले की चित्रकारी से रंगी चादरें, जगह-जगह बिखरा खाना और मदिरा की खाली बोतलें चीख-चीख कर अपनी आप बीती सुना रहे थे। जनातियों ने कैसे-तैसे कलेजे पर पत्थर रखकर  बारात को विदा किया। अभी शादी के एक-दो माह ही बीते थे, अचानक पता चला कि सुखीराम का तलाक हो गया। तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं। कोई बोला, बहुरिया बहुत बदमाश राहै, कोई बोला लागत है सुखीराम मा ही कउनो कमी हुइए...। कुछ लोगों ने सुखीराम से पूछने की कोशिश की तो वह हंसकर टाल देता। करीब दो माह बाद सुखीराम की एक किताब प्रकाशित हुई। उस किताब का शीर्षक था सुखी दांपत्य जीवन के लिए तलाकशुदा के टिप्स...। लोग यह शीर्षक पढ़कर चौंक गए। उत्सुकतावश लोगों ने यह किताब खरीदनी शुरू  कर दी। एक जिज्ञासु भी किताब खरीदकर लाया और पढ़ने में जुट गया। किताब के पहले पन्ने पर लिखा था...मेरी प्यारी पूर्व पत्नी कल्लो को समर्पित...। प्रस्तावना में सुखीराम ने लिखा कि शादी के बाद हमारे में बीच में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसकी वजह तलाक बन सके। हम हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन अचानक मैंने अपनी पत्नी से तलाक लेने का फैसला ले लिया। इसकी वजह मैं यहां स्पष्ट नहीं करना चाहूंगा। चलिए अब मैं आपको बताता हूं कि आखिर कैसे एक सुखी जीवन व्यतीत किया जाए...।

1-     अपने जीवनसाथी को पूरा सम्मान दें, उसकी भावनाओं को समझें।

2-    जितना ज्यादा हो घूमते-फिरते और साथ-साथ खाते-पीते रहें इससे प्रेम बढ़ता है।

3-    एक-दूसरे के परिवार को पूरा सम्मान दें, कभी किसी को नीचा मत दिखाएं।

4-    अपने प्रेम का इजहार समय-समय पर करते रहें, ताकि अहसास बना रहें।

5-    हमेशा एक-दूसरे को दुनिया में सबसे बेहतर की दृष्टि से देखें।

6-     एक-दूसरे को घर के हर मामले में दखल देने का अधिकार दें।

7-     छोटी-छोटी बातों को लेकर एक-दूसरे पर जबरन आरोप मढ़े न।

8-     तनाव बढ़ने पर एक शख्स चुप होकर दूसरे की बातों को गौर से सुनें।

9-    घर के मामलों में बार-बार बड़ों को मत बुलाएं, इससे हीन भावना बढ़ती है।

10-  घर के लिए हर नई योजना  पर दोनों  चर्चा करें  और एकमत राय बनाएं।

11- अपनी भावनाओं और विचारों को जबरन दूसरे पर थोपें मत।

12- गलती पर तुरंत क्षमा का भाव रखें।

13-  सबसे बड़ी और खास बात एक-दूसरे पर भरोसा रखें। जबरन शक न करें।

14- सकारात्मक विचारों पर ज्यादा चर्चा करें। 

 
सुखीराम की किताब लोगों को बहुत पसंद आई। किताब उस साल की बेस्ट सेलर बुक बन गई। एक दिन अखबार में एक खबर ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया। खबर का शीर्षक था ...सुखीराम ने पूर्व पत्नी से फिर शादी रचाई। खबर में सुखीराम के हवाले से लिखा था...मेरे और मेरी पत्नी के बीच ऐसा कुछ भी नहीं था...जो हमारे बीच तलाक की वजह बनता। मैं अपने सुखी दांपत्य जीवन से काफी संतुष्ट था। मैंने जितने भी टिप्स किताब में दिए हैं, वे सब हमारे जीवन में लागू थे। हम हंसी-खुशी जीवन गुजार रहे थे। लेकिन आए दिन पती और पत्नी के तलाक और खुदकुशी की खबरें मुझे झकझोरती थी। मैंने सोचा चलो दुनिया में कुछ लोगों का भला किया जाए। यदि सीधे तरीके से मैं अपनी बात कहूंगा तो कोई गौर नहीं करेगा। इसलिए मैंने इस शीर्षक के साथ अपनी किताब प्रकाशित करवाने का फैसला लिया। इसके लिए मैंने पत्नी से तलाक मांगा। जनकल्याण के लिए मेरी पत्नी खुशी-खुशी मुझसे अलग हो गई। अब मेरी किताब प्रकाशित हो चुकी है और मैं बड़ा लेखक बन चुका हूं। इसलिए प्लानिंग के तहत हम फिर एक हो गए हैं। अब मैं जो कहूंगा...ये दुनिया उस पर गौर करेगी।


Wednesday 16 December 2015

इन दो फिल्मों ने दिलीप कुमार को बनाया ट्रेजिडी किंग




हाल में ही पद्म विभूषण से सम्मानित किए गए ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार (मो. युसुफ खान) की अदाकारी का लोहा पूरा देश मानता है। पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे दिलीप कुमार के पिता मुंबई में आ बसे थे। उनकी पहली फिल्म थी ज्वार भाटा। जो सन 1944 में आई थी। वह 1949 में फिल्म अंदाज से चर्चा में आए। इस फिल्म में उन्होंने राजकुमार के साथ काम किया था। 1951 में फिल्म दीदार और 1955 में आई फिल्म देवदास में उनके दुखद किरदार ने जनता का दिल जीत लिया। पूरे देश में उनके अभिनय की तारीफ होने लगी। इन दो फिल्मों में अपने दुखद अभिनय के कारण ही उन्हें ट्रेजिडी किंग का खिताब दिया गया। यह माना गया कि दिलीप कुमार ने जैसा अभिनय इन फिल्मों में किया है वैसा अभिनय किसी अभिनेता के वश की बात नहीं है। ऐसा अभिनय विरला अभिनेता ही कर सकता है। 1960 में आई उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम में जहांगीर का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया। 2004 में इस फिल्म का रंगीन संस्करण आया। 1960 में गंगा-जमुना फिल्म में भी उनका अभिनय सराहा गया।  विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज्जतदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 मे बनी फिल्म किला उनकी आखरी फिल्म थी।

ये झूठ बोलया...हां जी...



सत्यनगर स्थित सत्यभान डिग्री कॉलेज में सत्य के साथी संस्था की ओर से सत्य बड़ा बलवान विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। कॉलेज के प्रिंसिपल सत्यप्रकाश के आग्रह पर जाने-माने विद्वान सत्यवादी जी  गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप  में पहुंचे। गोष्ठी के  शुभारंभ पर अतिथियों का परिचय कराया गया। संयोजक सत्यराम ने कहा कि मित्रों आज हम सत्य की महत्ता जानने के लिए इकट्ठा हुए हैं। सत्य में बड़ी ताकत होती है। चाहे जैसी परिस्थिति हो हमें सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हमारे बीच में जाने-माने विद्वान सत्यवादी मौजूद हैं। अब वे आपके समक्ष अपने विचार रखेंगे। जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सत्यावादी जी माइक संभालते हैं और दार्शनिक वाले अंदाज में कुछ देर ऊपर निहारते हैं। (ताकि लोग सोचे की सत्यवादी जी रूहानी  ताकतों से बात कर रहे हैं) वे कहते हैं मित्रों आज बड़ा ही सुंदर विषय रखा गया है। सत्य बड़ा बलवान...। आहा...(ये कहकर कुछ देर के लिए वह रुक जाते हैं)...वाह। इस दौरान श्रोताओं के बीच से आवाज आती है, अरे आगे भी कुछ कहोगे या फिर ये ही सुनाते रहोगे। इतना टाइम नहीं है...। सभी श्रोता हंसने लगते हैं। अचानक हुए इस हमले से सत्यवादी जी सकपका जाते हैं। वह कहते हैं...आज तक मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। आज मैं जो कुछ हूं सिर्फ इसी सत्य की वजह से हूं। इस बीच श्रोताओ के बीच से एक तेज आवाज गूंजती है। ये झूठ बोलया है...हां जी। सभी की निगाह गेट पर जाकर टिक जाती है। एक शख्स तेजी से मंच की ओर बढ़ता हुआ चला आता है। ये झूठ बोलया है....भाइयो...। अब मैं आपको बताता हूं इस मुए की हकीकत। तीन महीने पहले इसने मुझसे दो हजार रुपए उधार लिए थे। तब इसने मुझसे कहा था कि बच्चे की तबीयत बहुत खराब है, मुझे अस्पताल में उसे भर्ती कराना पड़ेगा। मैंने मुसीबत के समय इसकी मदद कर दी। एक महीना बीता तो मैं पैसे लेने के लिए इसके घर पहुंचा तो ताला लटका मिला। मैंने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि सत्यवादी की कोई औलाद ही नहीं है। वो तो ऐसे ही फ्राड करके लोगों को ठगता है। मुझे फिर भी विश्वास नहीं हुआ तो मैं किसी तरह पता करते हुए इनकी ससुराल पहुंच गया। वहां मेरी मुलाकात इसके ससुर से हुई। मैंने जैसे ही उनसे सत्यवादी के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरी ऊपर बंदूक तान दी। वो बोले नाम न ले उस मुए का...। मेरी बेटी से शादी से पहले उसने मुझे किसी और का घर दिखाकर अपना बताया। साथ ही एक गांव ले जाकर सैकड़ों बीघा जमीन खुद के पास होने का दावा किया। मैंने सोचा अच्छा-खासा घर है। सो मैंने कर्जा लेकर धूमधाम से बेटी की शादी उससे कर दी। दहेज में कार, नकदी, फ्रिज, एसी, कूलर, बेड, सोफा समेत सबकुछ दिया। मुएं ने दहेज का सामान घर पर न उतारकर सीधे दुकानों पर उतरवा दिया। एवज में सारा कैश समेट लिया। पैसा खत्म हुआ तो मेरी बेटी को यहां छोड़कर ये कहकर चला गया कि सत्य की तलाश में जा रहा हूं, लौटते ही अपनी पत्नी को ले जाऊंगा...। तीन महीने हो गए लौटकर आया ही नहीं। उसने जिन लोगों से कर्जा लिया, उल्टा अब वो लोग मेरे घर के चक्कर लगा रहा हैं। भइया ये सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं काफी समय से इसकी तलाश में था। वो तो भला हो इस संस्था के एक सदस्य का। जिसने मुझे आज यहां का पता दे दिया। मंच पर चढ़कर युवक ने सत्यवादी के कुर्ते का कॉलर पकड़ा तो संयोजक सत्यराम बीच में आ गए। उन्होंने धीरे से युवक के कान में कहा कि भाई सत्यवादी को मारो पर कुर्ता मत फाड़ना। ये कुर्ता मैं किराए पर लाया हूं। मेरा नुकसान हो जाएगा। अभी पूरा चंदा नहीं मिला है। युवक बोला, अच्छा तो आप भी इन्ही की कैटगिरी के हैं। इस बीच श्रोताओ के बीच से मारो...मारो की आवाज आने लगती है। युवक माइक संभालते हुए कहता है मित्रों कृपया शांत हो जाएं। इन्हें मारने से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला। हमें सोचना पड़ेगा आखिर सत्य इतना हल्का विषय है जिसे किसी व्यक्ति मात्र के कहने और उसके विचारों से जाना जा सकता है। नहीं...। ये हमारी मूर्खता है कि हम सदाचार, सत्य आदि विषयों को जानने के लिए इधर-उधर मारे फिरा करते हैं। हमारी इसी गलती का लाभ सत्यवादी जैसे लोग उठाते हैं। अरे सत्य तो हमारे अंदर हैं। बेहतर होगा कि किसी के कहने के बजाए हम खुद ही अपने भीतर छिपे सत्य को तलाशें और उसे अपने जीवन में लागू करें। मेरा यहां आने का मकसद पैसा वापस नहीं लेना था बल्कि आपकी आंखों पर पड़ा परदा हटाना था। जोरदार तालियों के साथ गोष्ठी खत्म हो जाती है। सत्यवादी किराए का कुर्ता उतारकर फटी कमीज पहनकर युवक के साथ विदा हो जाते हैं।

Tuesday 15 December 2015

इन देशों में रहते हैं दुनिया के महान आलसी...



अजगर करै न चाकरी, पक्षी करै न काज, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम...। बचपन में अक्सर यह कहावत सुनता था। जब इसका अर्थ समझने के काबिल हुआ तो पता चला कि भले ही काम करो या न करो...सबका पालनहार ईश्वर है। अभी कुछ दिन पहले मेरे मन में जिज्ञासा उठी कि दुनिया के आलसियों की सूची में हम कहां आते हैं। मैंने झट से इंटरनेट खंगालना शुरू  कर दिया। अचानक मेरे हाथ दुनिया के टॉप 20 आलसी देशों की सूची लगी। मैंने उत्सुकतावश उसे खंगालना शुरू  किया। एक दो तीन..चार ...दस फिर 20। गजब, इस सूची में तो हमारा देश था ही नहीं। मुझे बड़ी खुशी हुई। यार, कम से कम पहली बार ऐसी सूची दिखी जिसमें भारत को नीचा नहीं दिखाया गया। मैं आपको बता दूं...यह सूची विश्व की जानी-मानी पत्रिका ने तैयार की है। आपको बता दूं कि दुनिया का सबसे महानतम आलसी देश यूरोपीय महाद्वीपका छोटा सा विकसित द्वीप माल्टा है। यहां रहने वाले 71.6 फीसदी लोग इनएक्टिव यानी आलसी माने गए हैं।  सूची में दूसरे स्थान पर स्वाजीलैंड हैं। यहां रहने वाले 69 फीसदी लोग इनएक्टिव हैं। इसी तरह सर्बिया 68.3, अर्जेटीना 68.3, माइक्रोनेशिया 66.3 यूके 63.3, और मलेशिया 61.4 फीसदी इनएक्टिव है। सबसे ज्यादा आश्चर्य मुझे जापान का नाम इस सूची में देखकर हुआ। मैं तो समझता था कि ये देश काफी एक्टिव है। मुझे पता चला कि इस सूची में जापान 60.2 फीसदी इनएक्टिव लोगों के साथ 11वें स्थान पर विराजमान है। अब मेरी अवधारणा बदल चुकी है। डोमिनिक रिपब्लिक 60, नीमिबिया 58.5, तुर्की 56, साइप्रस 55.4, इटली 54.7, आयरलैंड 53.2, साउथ अफ्रीका 52.4, भूटान में 52.3 फीसदी समेत तीन-चार अन्य देशों के नाम इस सूची में हैं। इस सूची में भारत कहीं पर नहीं है।

Monday 14 December 2015

इस घाटी में संजीवनी खोजने आए थे हनुमान जी !



उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित फूलों की घाटी (वैली अॉफ   फ्लावर) भारत का राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान 87.50 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इस घाटी को सन् 1982 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहां पहुंचने के लिए चमोली होते हुए गोविंदघाट पहुंचना पड़ता है। यहां से तीन किमी. पदयात्रा के बाद फूलों की घाटी दिखती है। किंवदंती है कि लंका युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी के उपचार के लिए संजीवनी बूटी खोजने के लिए हनुमान जी इस घाटी में भी आए थे।  इस घाटी की खोज ब्रिटेन के फ्रेंक एस स्मिथ और आरएल होल्डवर्थ ने 1931 में की थी। यहां फूलों की पांच सौ से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें करीब 150 फूल तो दुर्लभ किस्म के बताए जाते हैं।

मिल गई...दुनिया की सबसे पहली फोटो




फोटोग्राफी के शौकीनों को शायद ही मालूम होगा कि दुनिया की पहली फोटो कब और कहां ली गई होगी। इंटरनेट भ्रमण के दौरान मुझे वह फोटो देखने का सौभाग्य मिला। मुझे पता चला कि दुनिया की सबसे पहली फोटो फ्रांस में खींची गई थी। सन् 1826 में फ्रांस के वैज्ञानिक जोसेफ  नाइसफोरे निप्से ने यह फोटो खींची थी। इस फोटो का शीर्षक था विंडो एट ली ग्रास। इस फोटो के जरिए उन्होंने घर की खिड़की के जरिए बाहर का दृश्य दर्शाने का प्रयास किया था।

Sunday 13 December 2015

इन इलाकों के नाम आपको चौंका देंगे...




अपना देश विविध संस्कृतियों और धर्मों का संगम कहलाता है। इसकी झलक यहां के गांव, कस्बों और इलाकों के नामों में भी दिखती है। आज हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे कस्बों और इलाकों के नाम जो आपको हैरत में  डाल देंगे।

1-     बबुआ (बिहार)

2-     भैंसा, (तेलंगाना)

3-     काला बकरा (पंजाब) 

4-     बाढ़, (बिहार)

5-        दारू  (झारखंड)

6-     फारिबसगंज (बिहार)

7-     गदहा (गुजरात)

8-     गंदे (झारखंड)

9-  पनौती (यूपी)

10- पू (हिमांचल प्रदेश)

11- भीतरगांव (यूपी)

12- चुटिया (रांची)

13- सिंगापुर रोड (ओडिशा)

14- माकडा (गुजरात)

15- आईबी (ओडिशा)

16- कलक्टरबकगंज (यूपी)

17- चिंचपोकली (मुंबई)

18- मुंहपोक्षा (शिवराजपुर, यूपी)

18- वेंकटनरसिंडराजवाहिपटा (आंध्र प्रदेश)

11 दिन तक लगातार जागते रहे ये महाशय...



अभी तक आपने अधिक समय तक सोने के रिकॉर्ड तो सुने होंगे लेकिन जागने का कीर्तिमान शायद ही सुना होगा। जरा सोचिए आप बिना नींद के कितने दिन तक जाग सकते हैं, एक दिन, दो दिन शायद तीन दिन। इसके बाद शायद आपकी बेहोश होने वाली हालत हो जाएगी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस धरती पर कुछ शख्स भी हैं जो एक दो नहीं बल्कि 11 दिन तक लगातार जागते रहे। जी हां, ये शख्स हैं कैलिफोर्निया के सेंड डियागो में रहने वाले रेंडी गार्डनर। 1947 में पैदा होने वाले गार्डनर ने वर्ष 1964 में 16 वर्ष की उम्र में 264.4 घंटे (11 दिन, 24 मिनट) लगातार जागकर होनोलूलू के डीजे टॉम राउंडस का 260 घंटे 17 मिनट जागने का रिकॉर्ड ध्वस्तकर दिया। अब जब भी आप एक दिन या उससे ज्यादा जागें तो चिड़चिड़ाइएगा मत। यह सोचिएगा कि इस दुनिया में कोई शख्स जब 11 दिन तक लगातार जाग सकता है तो फिर हमारी उसके सामने बिसात ही क्या है...।

29 शादियां, 28 तलाक



आपको जानकर हैरत होगी जहां लोग एक सच्चे प्यार की तलाश में पूरी जिंदगी गुजार देते हैं वहीं इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी है जो एक साथ कई लोगों से प्यार करते हैं और उन्हें छोड़ देते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं अमेरिका के कैलिफोर्निया के ब्लाथे निवासी पूर्व बापथिस्ट मिनिस्टर ग्लायनवुल्फ। 25 जुलाई 1908 को पैदा होने वाले वुल्फ ने अपने पूरे जीवन में 29 शादियां रचाई। इनमें से  28 पत्नियों को उन्होंने तलाक भी दिया। उनकी सबसे कम दिनों की शादी 19 दिन चली और सर्वाधिक 11 बरस। अंत में उनकी शादी एक ऐसी महिला से हुई जिसके नाम विश्व में सर्वाधिक पुरुषों के साथ ब्याह रचाने का रिकॉर्ड था। 10 जुलाई 1997 को वुल्फ का देहांत हो गया। गिनीज बुक में उनके नाम सर्वाधिक शादियां और तलाक देने का रिकॉर्ड दर्ज है।

Saturday 12 December 2015

रे मन फिर चल श्रीहरि के द्वार… (भाग दो)

 

 

हर की पौडी किसी देवलोक से कम नजर नहीं आ रही थी। हर-हर की करतल ध्वनि के साथ वेग से बहती मोक्षदायिनी और उसके आंचल में पत्ते पर टिमटिमाते दीपक तेजी से किसी गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। एक दीपक आ रहा था तो एक जा रहा था। क्या अलौकिक नजारा था। तेज हाईमास्क लाइट के बीच गंगा की लहरें सुनहरी सी प्रतीत हो रही थीं। मानो गंगाजल न हो कोई स्वर्ण नदी बह रही हो। मन बोला, यदि महादेव अपनी जटाओ में पतित पावनी को न धारण करते तो शायद यह नजारा देख पाने का सौभाग्य मुझे न मिल पाता। रात के 10.30 बज चुके थे। मैं पुल से घाट के उस पार पहुंचा तो देखा कि कुछ लोग गंगा में अभी भी स्नान कर रहे थे। बड़ों के साथ बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था। श्रद्धावश मैं भी माता के चरणों में शीश नवाने पहुंचा तो जल छूते ही मुझे पहाड़ों के अनोखे ठंडेपन का अहसास हुआ। एक पल के लिए कुछ सूझा ही नहीं। उस झटके से मेरी थकान को चैतन्यता में बदल दिया। मैं इस चमत्कार से अभिभूत था। क्या दुनिया में कोई ऐसी नदी है जिसको छूने मात्र से ही आपकी थकान गायब हो जाए। शायद नहीं…। ऐसी शक्ति सिर्फ हमारी मां गंगा में ही है। एक मां अपने बच्चे को आखिर कैसे थका-हारा  देख सकती है। यह प्रमाण उन बुद्धजीवियों के लिए भी एक नजीर है जो गंगा को मां नहीं सिर्फ नदी समझते हैं। मैं तो कहूंगा एक बार वह हरिद्वार आकर गंगाजल को जरूर  स्पर्श करें, ताकि उन्हें किताबी बौद्धिकता का प्रमाण मिल सके। माता के इस आशीर्वाद को लेकर मैं परिवार के साथ वापस लौट आया। रात में मेरा परिवार तो सो गया लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरी आंखों के सामने बार-बार हर की पौडी का वह दृश्य घूम रहा था। अगले दिन सुबह छह बजे हम फिर होटल से हर की पौडी में स्नान को निकले। मैंने देखा सुबह छह बजे मानो हरिद्वार में किसी कुंभ का मेला लगा हो। हाथ में कमंडल लिए खड़ाऊ की खटपट के साथ साधु-सन्तों का काफिला हर की पौड़ी की ओर तेजी से बढ़ रहा था। गंगा स्नान के लिए जवानों, बच्चों, महिलाओं और युवितयों का उत्साह देखते ही बन रहा था। घाट से लौट रहे भक्त हर-हर गंगे कहकर जाने वालों का हौसला बढ़ा रहे थे। लौटने वाले जितनी गर्मजोशी से हर-हर गंगे से जाने वालों का अभिवादन करते उससे दुगुनी गति से जाने वाले हर-हर गंगे में जवाब देते। क्या गजब नजारा था। करीब पौन घंटे पैदल चलकर हम आखिर हर की पौडी पहुंच गए। एक पल के लिए लगा मानो हम हरिद्वार में न हो इलाहाबाद के कुंभ में हो। कहीं से भक्तों का रेला आ रहा था, तो कहीं जा रहा था। यहां न जात-पात थी, यहां न वर्ण भेद था, यहां न ऊंच-नीच। न कोई ब्राह्मण,न कोई शूद्र, न कोई वैश्य, न कोई क्षत्रिय। सब एक मां की ही संतान प्रतीत हो रहे थे। सच है मां अपने बच्चों में कभी भेद नहीं करती। यहां भी वही प्रतीत हुआ। मन ने मां से प्रार्थना की मां तेरा प्रेम वाकई सच्चा है। तू अपने लालों का बहुत ख्याल रखती है, मां कुछ ऐसी कृपा कर दो कि तेरी बिगड़ी संतानें सुधर जाएं। जिस मां के आंचल तले पले-बढ़े, आज उसी को मैला कर रहे हैं। जो आज मैं महसूस कर रहा हूं, वैसा ही सबको महसूस हो। मां धन्य हूं मैं जो मेरा जन्म ऐसे देश में हुआ जहां तू बहती है। तेरे ऋण को हमारी सैकड़ों पीढ़ियां नहीं चुका पाएंगी। मैं अपने पांच साल के बेटे के साथ गंगाजल में स्नान को उतरा तो ठंडे पानी के अहसास से वह तेजी से पीछे हट गया। अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान खिली और वह मेरे साथ गंगा स्नान करने लगा। मैंने देखा कि मैं सात-आठ डुबकी लगाने के बाद ठंड से कांपने लगा। मेरा बेटा बड़े आनंद से गंगा में स्नान कर रहा था। करीब आधे घंटे तक उसने गंगा में खुले मन से स्नान किया। इसे भी मैंने मां गंगा का चमत्कार माना। जो बच्चा ठंडे पानी से कोसो दूर भागता हो, वह उससे कहीं ज्यादा ठंडे जल में ऐसे अठखेलियां कर रहा था, मानो वह सामान्य पानी हो। मैंने मन ही मन माता के चरणों में पुनः शीश नवाया। गंगा स्नान कर हम पूरी तरह से चैतन्य हो गए। मेरे शरीर में ऐसी स्फूर्ति आज से पहले मैंने कभी महसूस नहीं की थी।  मेरी पत्नी झट से बोली, चौंकिए मत..मां गंगा का ही कमाल है। मेरे पापा कहते हैं कि गंगा पहाड़ियों से बहकर आती है, वहां की औषधियों को अपने साथ बहा लाती है। ये उन्हीं औषधि तत्वों का कमाल हैं। मन बोला, काश ये गुण यदि सब लोग जान जाएं तो औषधि से उपचार वालों की दुकानों पर तालें पड़ जाए। मैंने गंगा को पुनः प्रणाम किया। हम कपड़े बदलकर तैयार हो गए। तभी दिल्ली के एक बुजुर्ग मेरे बगल में अपने दस साल के नाती को हर की पौडी के सामने का घाट दिखाकर बताते हुए दिखे। वह कह रहे थे बेटा ये सामने का घाट जो तुम देख रहे हो यह महामना मदन मोहन मालवीय द्वीप है। इस पर जो घड़ी वाला टॉवर बना हुआ है यह बिरला टॉवर है जो सन्  1936 में बना था। मैं बेटे का हाथ पकड़कर लौटने लगा तो गंगा सेवा समिति वालों से भेंट हो गईं। उन्होंने बताया  कि यहां नियमित गंगा आरती होती है। यदि कोई भक्त योगदान करना चाहे तो उसके लिए कई श्रेणियां हैं। एक बाती से लेकर एक हजार बाती तक के लिए दान दिया जा सकता है। मां के चरणों में कुछ भेंट अर्पित कर मैं आगे बढ़ा तो मेरी इच्छा आगे के घाटों को देखने की हुई। पुल से उतरकर मैं आगे के घाटों की ओर बढ़ा तो देखा कि वहां पिंड दान आदि के कार्य हो रहे थे। मैंने एक पंडा जी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कई लोग अपने पूर्वजों के पिंडदान और अस्थियों को विसर्जित करने यहां आते हैं। मान्यता है कि इससे पुरखों को मोक्ष मिलता है। इन पंडों के पास कार्यक्षेत्र बंटे हुए हैं। सभी के पास अपने यजमानों की वंशावलि (कई पीढ़ियों का लेखाजोखा) है। उसी के आधार पर यजमान निर्धारित पंडा जी के पास पहुंचते हैं। यह व्यवस्था आज से नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों से चल रही हैं। मैंने कहा वाकई हमारे पुरखे कितने दूरदर्शी थे। मानो उन्हें मालूम था कि हमारी पीढ़ियां हमे याद नहीं रखेंगी, उन्हें असुविधा न हो इसलिए वह ऐसी व्यवस्था कर दो जिससे उन्हें दिक्कत न हो। पता चला कि ऐसी व्यवस्था बद्रीनाथ में भी है। अपनी संस्कृति और धर्मपर मुझे गर्व हो रहा था। मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो मुझे सड़क किनारे कुछ होटलों के बाहर साधु-सन्यासियों और गरीबों की भीड़ बैठी नजर आई। मैं कुछ पल के लिए ठिठक गया। एक सज्जन आए और उन्होंने दुकानदार को कुछ पैसे दिए। थोड़ी देर बाद सभी को एक-एक कर चार पूड़ी और सब्जी दी जाने लगी। मैंने एक सज्जन से पूछा तो उन्होंने बताया कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां कई लोग भोज भी कराते हैं। इस व्यवस्था से किसी का भला हो न हो लेकिन असहायों का भला जरूर  हो जाता है। अब तो मुझे हरिद्वार आने पर खुद पर गर्व होने लगा। मां गंगा क्या कहूं…आपकी शान में मेरे पास तो शब्द ही खत्म हो गए हैं। मैं घाट के उस पार गया तो मैंने देखा कि वहां खाने-पीने का सामान काफी सस्ता था। कई लोग खुली जमीन पर टेंट लगाकर रह रहे थे। पता चला कि गरीबों के रहने के लिए यहां यह व्यवस्था सरकार की ओर से की गई है। कोई भी उन्हें वहां रहने से रोकता टोकता नहीं है। शाम को गंगा आरती में भाग लेने के लिए दोबारा हर की पौडी पहुंचा तो भक्तों का अपार समूह बैठकर इंतजार करते दिखा। जैसे ही आरती शुरू  हुई हर कोई हाथ जोड़कर जय गंगा मइया…गाने लगा। हर की पौडी पर एक साथ कई दीपों से सजी आरती की शोभा देखते ही बन रही थी। लाउडस्पीकर से पुजारी माता गंगा की महिमा का बखान कर रहे थे। अंत में भक्तों को मां गंगा की रक्षा का संकल्प दिलाया गया। आरती के अंत में पत्तलों की नाव पर सजे दीपकों का कारवां भक्तों ने एक-एक कर रवाना किया। आहा…एक दीपक, उसके पीछे दूसरा, फिर तीसरा…फिर चौथा। गिनती का ये सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा था। भक्तों ने माता का श्रृंगार दीपों से ही कर दिया। ऐसा लग रहा था मानो ये दीपक मोती, माणिक, हीरा, पन्ना बनकर गंगा की लहर रूपी  चुनरी की शोभा बढ़ा रहे हों। वो अद्भुत नजारा आंखों में बसाकर हम होटल लौट आए। अगले दो दिन मैं अपने परिवार के साथ मनसा देवी, चंडी देवी, कनखल, पंतजलि आश्रम, भारतमाता मंदिर और ऋषिकेश घूमा। हर जगह मुझे उस शांति और सुख का अहसास मिला जिसकी मुझे कई बरस से तलाश थी। उथल-पुथल वाला मन एक शांत झील बन चुका था। उसमें रह गया था तो बस अध्यात्म और अनुभूति का निर्मल जल। चार दिन की यात्रा पूर्ण कर मैं हरिद्वारसे घर को तो लौट आया पर अपने साथ ले आया वहां की सुखद यादें। वो यादें रहरहकर मुझे वहां फिर चलने के लिए प्रेरित करती है। मन तो करता है कि एक बार फिर हरिद्वारहो आऊं…। मैं तो कहूंगा अपने धर्म और संस्कृति को यदि करीब से महसूस करना है तो एक बार सभी को हरिद्वार जरूर  जाना चाहिए।
समापन

Friday 11 December 2015

रे मन फिर चल श्रीहरि के द्वार… (भाग एक)


बात जून की है। अखबार के दफ्तर में लगातार काम और तनाव भरे पलों ने मन में थोड़ी बेचैनी सी पैदा कर दी थी। जी करता था सबकुछ छोड़कर हिमालय की कंदराओं में तपस्या के लिए चला जाऊं। एक दिन नेट पर सर्च करते हुए मैंने हरिद्वार की एक फोटो देखी।  मन की जिज्ञासा बढ़ी तो मैंने चटपट हरिद्वार से जुड़ी जानकारियां खंगालनी शुरू  कर दी। पता चला कि   हिन्दी में हरिद्वार का अर्थ हरि "(ईश्वर)" का द्वार होता है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। 3139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैं:-उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग| आज ये वें स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति तीन वर्षों में और १२वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुंभ आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थ यात्री यहां दर्शन को आते हैं। वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है। यहां हिन्दू त्योहारऔर पर्वों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन को आते हैं।  मैंने तय किया हो न हो मुझे वहां जाना चाहिए। मैंने 23 जून को दफ्तर में चार दिन छुट्टी की अरजी दे दी। संयोगवश छुट्टी तुरंत मंजूर भी हो गई। मैं अगले दिन सुबह 4.30 बजे बस से पत्नी और पांच साल के बेटे आयुष्मान के साथ हरिद्वार को रवाना हो गया। 24 जून की रात 8.30 बजे हमारी बस हरिद्वार पहुंची। ठंडी हवा के झोंकों और भक्तों की भारी भीड़ ने हमारा स्वागत किया। होटल में सामान रखने के बाद मन ने कहा चलो गंगा मइया के दर्शन कर लिए जाए। हमारा होटल स्टेशन के पास था और हर की पौडी की वहां से दूरी करीब 2-3 किमी. थी। हम पैदल ही निकल पड़े। मैंने सड़क के दोनों किनारों की दुकानों पर नजर मारी तो मुझे अतुल्य भारत की झलक नजर आई। कहीं डोसा, इडली, उत्पम की दुकान साउथ का अहसास करा रही थी तो कहीं भुने भुट्टों के ठेले यूपी और दिल्ली का। कहीं, रंगबिरंगी साड़ियां और दुपट्टे रंगीले राजस्थान की ओर ध्यान खींच रहे थे तो कहीं लकड़ी की छड़ी और खिलौने सहारनपुर से जोड़ रहे थे। वाह क्या अद्भुत नजारा था। हम आश्चर्य से चीजों को देखते हुए धीरे-धीरे हर की पौडी की ओर बढ़ रहे थे। हाथी दांत की अंगूठी और हार, लकड़ी और चमड़े के हाथी और घोड़े, नक्काशीदार छड़ियां, रत्नों से जड़ी सिंदूरदानी, दक्षिणावर्ती शंख, सीप, कौड़िया, पद्म चक्र और गंगा जल ले जाने के लिए खूबसूरत गंगाजल पात्र मन को ललचा रहे थे। सभी की फरमाइशो को जैसे-तैसे पूरा करते हुए हम आखिर रात 10.15 बजे हर की पौडी पहुंच गए।

 
(क्रमश…)

Wednesday 9 December 2015

नो फ्यूल, नो पॉल्यूशन, दाबे रहो दनादन...



प्रदूषणसे परेशान दुनिया के लिए यह अविष्कार किया है हमारे देश के एक जुगाड़ू वैज्ञािनक ने । उनका दावा है कि इस वाहन को अपनाने के कई फायदे हैं...।


1-पेट्रोल और डीजल का खर्चबचेगा।

2-शानदार लुक होने से स्टेटस पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

3- देश का पैसा विदेश में जाने से बचेगा।

4-प्रदूषण से राहत िमलेगी।

5-कोई लिफ्ट नहीं मांगेगा।

6-जितनी ताकत होगी उतनी तेज दौड़ेगी।

7-मेंटीनेंस पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।

8-जाम के दौरान कंधे पर लादकर पैदल चल सकते हैं।

9-समाज से आपको पर्यावरण प्रेम की तारीफ िमलेगी।

10-       कोई वाहन उधार मांगने की हिम्मत नहीं करेगा।

11-       पार्किंग के िलए   भटकना नहीं पडे़गा।

12-                 अॉफिस   में लेट होने की वजह नहीं पूछी जाएगी।

13-                  रोड टैक्स, इंश्योरेंस आदि का पैसा बचेगा।

14-                 गाड़ी पंचर होने पर ज्यादा पैसा नहीं खर्च करना पड़ेगा।

15-                 हर महीने मेंटीनेंस का खर्च भी बचेगा।

16-                 गाड़ी चोरी होने का भय हर पल नहीं सताएगा।

17-                 एक्सीडेंट का रिस्क भी कम हो जाएगा।

18-                 घर का अन्य कोई सदस्य चुपके से गाड़ी नहीं ले जाएगा।

19-                  चौराहों पर ट्रैफिकसिपाही ऊपरी पैसा नहीं कमा पाएंगे।

20-                 अॉल   इंडिया बेधड़क घूमो पास रहेगा।

21-                 बचत बढ़ने से श्रीमतिजी की फरमाइश पूरी कर सकेंगे।

22-                 घर के सदस्य बार-बार घुमाने की जिद नहीं करेंगे।

23-                 मोटर साइकिल का लुक आपको कराएगा गर्व का अहसास।
नोटः अन्य फायदे जल्द ही प्रकाशित किए जाएंगे। असल में यह लेख लेखक के एक पारिवारिक सदस्य ने पढ़ लिया है। इसलिए लेखक को मजबूरी में यह वाहन खरीदने जाना पड़ रहा है। अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद...।