Sunday 24 April 2016

गौर से पढ़िए और झट से अमीर बनिए...





शीर्षक पढ़कर चौंक गए ना। मैं भी चौंका था। मैंने यह चौकाऊ शीर्षक एक किताब की दुकान के बाहर शोकेस में सलीके से सजाई गई एक किताब का देखा था। अचानक मेरे मन का दीनहीन सुदामा का भाव चीख-चीख कर चिल्लाने लगा। मिल गए...मिल गए...कलियुग में कृष्ण मिल गए। अब मुझे किताब वाले की दुकान द्वापर युग का कृष्ण का वह राजसी भवन नजर आने लगा थी जहां सुदामा सुनो...द्वारपालों कन्हैया से कह दो...कि मिलने सुदामा गरीब आ गया है...भजन गाकर और धक्के खाकर बड़ी कठिनाई से प्रवेश पा सके थे। पर कलियुग में मेरे सामने ऐसा कुछ भी नहीं था। न तो द्वारपाल थे और न भजन गाने की जरूरत। मैं झट से दुकान में घुस गया और दुकानदार से उस किताब के बारे में जानकारी जुटाने लगा। मैंने कहा कि किसने लिखी है...दुकानदार ने जवाब दिया। अभी-अभी मार्केट में कोई नया लेखक अवतरित हुआ है। आजकल डिमांड में है। मैंने कहा भाई कितने की है। उसने जवाब दिया मात्र 1100 रुपए की। मैंने कहा भाई इतनी महंगी। दुकानदार बोला...भाईसाहब आजकल अमीर बनने की सलाह कोई फोकट में नहीं देता है। कल को जब आप लखपति या फिर करोड़पति बन जाएंगे तो उस लेखक को पूछेंगे क्या। मैं बोला भाई बात तो तुम सही कह रहे हो...। मैंने सारी जेबे झाड़कर जैसे-तैसे 1100 रुपए दुकानदार को दिए और उस परमपवित्र किताब को सीने से लगाए हुए घर आ गया। घर पर पत्नी ने पूछा क्या लाए हो तो मैंने कहा अरी भाग्यवान अपनी किस्मत का पिटारा लाया हूं। तू अक्सर पूछती थी न कि हम कब अमीर होंगे, कब कार से चलेंगे, कब विदेश घूमेंगे...। बस कुछ दिन रुक जा सबकुछ बदलकर रख दूंगा। अब तू देखना अमेरिका के व्हाइट हाउस के बगल में अपना प्लाट होगा तो लंदन के बर्मिंघम पैलेस के बगल में फ्लैट। तू निजी चार्टर प्लेन से सब्जी खरीदने और बच्चों को स्कूल छोड़ने जाएगी। अब हम गर्मी में टूटे कूलर को बार-बार ठीककर परेशान नहीं होंगे बल्कि स्विटजरलैंड की वादियों में बरफ पर कुलाटी मारते हुए नजर आएंगे। मैंने झट से किताब पढ़ना शुरू कर दी। जैसे-जैसे मैं पन्ने पलटते जा रहा था मेरी आंखों के आंसुओं का फ्लो बाढ़ का रूप ले रहा था। आंसू पोछ-पोछकर मैंने जैसे-तैसे 300 पन्ने की किताब पढ़ने में पूरे तीन दिन लगा दिए। तीसरे दिन पत्नी ने पूछा कि प्राणनाथ अच्छे दिन कब आ रहे हैं। मेरी आंखें फिर छलछला उठी। रुंधी आवाज से मैंने कहा हे प्रिय प्राणेश्वरी किताब में ऐसा कुछ भी नहीं था जो मेरे काम आ सके। यार समय के साथ पैसा बर्बाद हो गया। हाय मेरे 1100 रुपए। चुन्नू की फीस जमा करने जा रहा था...। फोकट में किताब पर खर्च कर दिए। पत्नी मुस्कुराई और बोली अमीर तो आप हुए हैं...। मैंने कहा वो कैसे। पत्नी बोली अक्ल से। इस किताब ने आपको सबक दिया है कि जो ऊपर से दिखे वह जरूरी नहीं है कि अंदर वैसा ही हो। साथ ही पैसा कमाने के लिए शॉर्टकट नहीं अपनी मेहनत पर भरोसा करिए। बस इस ज्ञान के लिए आपको कीमत कुछ ज्यादा चुकानी पड़ गई है। भइया तबसे मैं उस सीख को गांठ की तरह बांधकर फिरता हूं। 

Wednesday 20 April 2016

हैंडपंप की ओपनिंग



प्यासापुर गांव अचानक पूरी दुनिया के अखबारों की सुर्खियों में छा गया। इसकी वजह बना एक कोलंबस टाइप का रिपोर्टर। गांव से गुजरते हुए जब उसे प्यास लगी तो उसने हैंडपंप की तलाश की। काफी मशक्कत के बाद उसे पता चला कि ब्रह्मा की सृष्टि उत्पत्ति से लेकर अब तक  यहां हैंडपंप जैसी दुर्लभ वस्तु प्रकट नहीं हो सकी है। हो सकता हो शायद अभी तक किसी ने यज्ञ ही न किया हो। रिपोर्टर ने तुरंत ये खबर अखबार की सनसनी बना दी। बीच सड़क पर गला फाड़-फाड़कर हॉकर ने आवाज दी देखो रे देखो...इस गांव में आज  तक  हैंडपंप ही नहीं लगा।खबर बेचने के लिए उसने मसाला लगाया कि यह इस तरह का यह देश का इकलौता गांव है। जबकि हकीकत में ऐसी हालत देश के कई गांवों की है। जुगाड़ से चांद पर पहुंचने वाली जब बाकी दुनिया को यह पता चला तो हर तरफ हैरत से लोग मुंह फाड़-फाड़ प्यासापुर गांव के प्यासों पर तरस खाने लगे। बेचारे, कैसे पानी पीते होंगे, कहां से लाते होंगे, सुबह का काम कैसे करते होंगे आदि शोककुल वक्तव्य प्यासापुर के प्यासों के नाम पर श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित किए जाने लगे। अगले दिन नेताओं का भारीभरकम फौज-फाटा गांव पहुंच गया। यहां नेताओं की कई वैराइटी मौजूद थी। काला, लंबा, गोरा, ठिगना और एक सर्वमान्य प्रजाति मोटा(शानदार चमकती तोंद के साथ) । शायद नेताओं की यहीं एक ऐसी प्रजाति जो दुबली-पतली जनता को दूर से उनके नेता होने का अहसास करा देती है। दुनिया की इस सबसे बड़ी सनसनी को कवर करने के लिए देश के साथ विदेश की मीडिया भी यहां जुट गई। आज गांव का नजारा बदला हुआ था। कोई रिपोर्टर और नेता सूखे कुएं के पास खड़े होकर बतिया रहे थे। तो कोई सूखे खेत के पास। कोई पेड़ पर उल्टा लटककर कैमरे से गांव को कवर कर रहा था तो कोई जमीन पर लेटकर वीडियो बना रहा था। हर कैमरे के सामने सफेद लकालक कुर्ते में छतरी के नीचे खड़े नेताजी मिनरल वॉटर पी-पीकर सिस्टम को कोस रहे थे। तभी सत्ता पक्ष के एक मंत्री जी एक ट्रैक्टर पर हैंडपंप लदवाकर गांव इस अंदाज में पहुंचे मानो लाखों बाढ़ पीडितों के  लिए राहत सामग्री लेकर पहुंचे हों। विरोधियों को देखकर मंत्रीजी ने मुंह बिराया और हैंडपंप के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी। एक मजदूर चिल्लाया साहब जगह मिल गई। मंत्रीजी नारियल लेकर ऐसे दौड़े मानो युद्ध में बम गिराने जा रहे हों।  मीडिया के सामने नारियल फोड़कर बोरिंग शुरू करवा दी गई। गांव के प्रधान प्यासाराम का माथा प्यार से चूमते हुए मंत्रीजी बोले मीडिया में ये मामला तो बहुत बाद में आया है आप इस पगले से पूछ लीजिए मैं तो गांव के लिए पहले ही हैंडपंप पास कर चुका हूं। ये हमारी सरकार की उपलब्धि है और पिछली सरकार की विफलता। इस बार चुनाव में इसे हम बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेंगे। आज ही आप लोगों के सामने हैंडपंप की ओपनिंग होगी। तभी विपक्षी दल के नेता मंत्री जी पर डब्लूडब्लूई के पहलवानों की तरह टूट पड़े। अबे तुम कैसे लोगे हैंडपंप लगवाने का श्रेय। ये हमारी उपलब्धि है। ऐ हट ये मेरी बदौलत हुआ है। अरे जा...चल मेरी बदौलत लगा है...। सभी नेता बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एक-दूसरे पर टूट पड़े। किसी ने बोरिंग में लगे मजदूरों को भगा दिया। किसी ने पाइप फेंक दिया। किसी ने हैंडपंप को खंड-खंड कर दिया। गुस्से में किसी ने प्यासाराम को मुक्का मार दिया। बेचारा वह भागकर घर में ऐसे दुबक गया मानो गांव में गब्बर डाकू आ गए हों। मीडिया वाले मजे से ये नजारा कवर कर रहे थे। थकने के बाद सभी नेता एक जगह बैठ गए। एक बुजुर्ग नेता ने कहा कि अब तो ये मामला कोर्ट ही तय करेगा कि आखिर हैंडपंप लगवाने का श्रेय किसको मिलेगा। उसके पहले यहां हैंडपंप लग गया तो देश में आंदोलन खड़ा कर देंगे। आग लगा देंगे। ईंट से ईंट बजा देंगे...जैसी धमकियां दी जाने लगीं। एक-एक कर सभी चले गए। रह गया तो बस बोरिंग के लिए खुदा हुआ गड्ढा। सुना है कि प्यासापुर के प्यासो ने वह गड्ढा भर दिया है। और आपस में तय किया है कि अब कउनो हैंडपंप लई कर आवे तो धरके गटही दबा दी जइहै।