शीर्षक पढ़कर चौंक गए ना। मैं भी चौंका था। मैंने यह चौकाऊ शीर्षक एक किताब की
दुकान के बाहर शोकेस में सलीके से सजाई गई एक किताब का देखा था। अचानक मेरे मन का
दीनहीन सुदामा का भाव चीख-चीख कर चिल्लाने लगा। मिल गए...मिल गए...कलियुग में
कृष्ण मिल गए। अब मुझे किताब वाले की दुकान द्वापर युग का कृष्ण का वह राजसी भवन
नजर आने लगा थी जहां सुदामा सुनो...द्वारपालों कन्हैया से कह दो...कि मिलने सुदामा
गरीब आ गया है...भजन गाकर और धक्के खाकर बड़ी कठिनाई से प्रवेश पा सके थे। पर
कलियुग में मेरे सामने ऐसा कुछ भी नहीं था। न तो द्वारपाल थे और न भजन गाने की
जरूरत। मैं झट से दुकान में घुस गया और दुकानदार से उस किताब के बारे में जानकारी
जुटाने लगा। मैंने कहा कि किसने लिखी है...दुकानदार ने जवाब दिया। अभी-अभी मार्केट
में कोई नया लेखक अवतरित हुआ है। आजकल डिमांड में है। मैंने कहा भाई कितने की है।
उसने जवाब दिया मात्र 1100 रुपए की। मैंने कहा भाई इतनी महंगी। दुकानदार
बोला...भाईसाहब आजकल अमीर बनने की सलाह कोई फोकट में नहीं देता है। कल को जब आप
लखपति या फिर करोड़पति बन जाएंगे तो उस लेखक को पूछेंगे क्या। मैं बोला भाई बात तो
तुम सही कह रहे हो...। मैंने सारी जेबे झाड़कर जैसे-तैसे 1100 रुपए दुकानदार को
दिए और उस परमपवित्र किताब को सीने से लगाए हुए घर आ गया। घर पर पत्नी ने पूछा
क्या लाए हो तो मैंने कहा अरी भाग्यवान अपनी किस्मत का पिटारा लाया हूं। तू अक्सर
पूछती थी न कि हम कब अमीर होंगे, कब कार से चलेंगे, कब विदेश घूमेंगे...। बस कुछ
दिन रुक जा सबकुछ बदलकर रख दूंगा। अब तू देखना अमेरिका के व्हाइट हाउस के बगल में
अपना प्लाट होगा तो लंदन के बर्मिंघम पैलेस के बगल में फ्लैट। तू निजी चार्टर
प्लेन से सब्जी खरीदने और बच्चों को स्कूल छोड़ने जाएगी। अब हम गर्मी में टूटे
कूलर को बार-बार ठीककर परेशान नहीं होंगे बल्कि स्विटजरलैंड की वादियों में बरफ पर
कुलाटी मारते हुए नजर आएंगे। मैंने झट से किताब पढ़ना शुरू कर दी। जैसे-जैसे मैं पन्ने पलटते
जा रहा था मेरी आंखों के आंसुओं का फ्लो बाढ़ का रूप ले रहा था। आंसू पोछ-पोछकर मैंने जैसे-तैसे 300 पन्ने की किताब पढ़ने में पूरे तीन दिन लगा दिए। तीसरे
दिन पत्नी ने पूछा कि प्राणनाथ अच्छे दिन कब आ रहे हैं। मेरी आंखें फिर छलछला उठी।
रुंधी आवाज से मैंने कहा हे प्रिय प्राणेश्वरी किताब में ऐसा कुछ भी नहीं था जो
मेरे काम आ सके। यार समय के साथ पैसा बर्बाद हो गया। हाय मेरे 1100 रुपए। चुन्नू
की फीस जमा करने जा रहा था...। फोकट में किताब पर खर्च कर दिए। पत्नी मुस्कुराई और
बोली अमीर तो आप हुए हैं...। मैंने कहा वो कैसे। पत्नी बोली अक्ल से। इस किताब ने
आपको सबक दिया है कि जो ऊपर से दिखे वह जरूरी नहीं है कि अंदर वैसा ही हो। साथ ही
पैसा कमाने के लिए शॉर्टकट नहीं अपनी मेहनत पर भरोसा करिए। बस इस ज्ञान के लिए
आपको कीमत कुछ ज्यादा चुकानी पड़ गई है। भइया तबसे मैं उस सीख को गांठ की तरह
बांधकर फिरता हूं।