बीते साल दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाले शब्द पर रिसर्च हुई तो पता
चला कि वह शब्द ओके (आल करेक्ट) है। मैं इस शब्द से काफी प्रेरित हुआ। मैं भी ऐसा
ही एक शब्द तलाशकर दुनिया में महान बनने की फिराक में जुट गया। मैंने ढेरों शब्दों
का अध्ययन किया तो पता चला कि आजकल जो शब्द सबसे ज्यादा बोला जा रहा है वो शब्द है
वाट्स एप पर हो न...। जब मैं इसकी गहराई में गया तो पता चला कि वाट्स एप बाबा तो
बड़े महान हैं। बाबा जबसे इस धरती पर अवतरित हुए हैं तबसे उनके भक्तों का रेला
दिनो-दिन बढ़ता जा रहा है। उन्होंने खासकर भारतीय समाज में जात-पात, ऊंच-नीच जैसी
बुराइयों को मिटाकर सभी को एकता के सूत्र में बांध दिया है। जो बुराई हमारे नेताओं
ने समाज को दी वह बाबा ने एक झटके में बिना किसी खर्च और अभियान के मिटा दी। मैं
इससे काफी प्रभावित हुआ और मैंने झट से उनके दरबार में अपनी हाजिरी लगा दी। कुछ
दिन तो सब ठीक-ठाक चला फिर अजब-गजब चीजें मेरे साथ होने लगीं। व्हाट्स अप पर मेरा
एक मित्र ऐसा पगलाया कि वो दिन-रात मैसेज भेजने लगा। ऊंट-पटांग चुटकुले,
किस्से-कहानी और न जाने क्या-क्या। रात भर उसके मैसेज की टू-टू सुनकर मेरी नींद से
मेरा तलाक होने की नौबत आ गई। मैंने कैसे-तैसे उससे पीछा छुड़ाया। एक दिन एक कवि
मुझसे टकरा गया। मैं जल्दी से निकलने का बहाना बनाने लगा। वो मुस्कुराते हुए बड़े
इत्मिनान से बोला जाओ...भाई...बस अपना वाट्स अप नंबर बता जाओ..। मैंने काला पानी
से छूटने की फिराक में झटपट एक सांस में अपना नंबर बता दिया। वो बोला जाओ
मित्र...अब व्हाट्स अप पर मेरी रचनाएं पढ़ना और अपनी राय रखना। ये सुनकर तो मेरे
पैरों तले जमीन खिसक गई। यार ये क्या हो गया व्हाट्स अप बाबा ने मुझे पकने का
श्राप दे दिया। अब जब भी मैं व्हाट्स अप खोलता हूं तो उस कवि की लंबी-चौडी पकाऊ
कविता खुलती है। ऐसे हालात में मैं कैसे खुद को संभाल रहा हूं मैं ही जानता हूं। एक
दिन आफिस में मेरे साथी ने मोबाइल खोला और सिर पकड़ लिया। मैंने पूछा कि क्या हुआ
भाई। वह बोला दोस्त मेरी पत्नी दस हजार रुपए की साड़ी ले आई है। शोरूम से उसने
साड़ी की फोटो भेजी है। यार मैं पूरे साल भर में हजार रुपए की शर्ट-पैंट नहीं खरीद
सका, उसने एक झटके में ही दस हजार उड़ा दिए। यह कहकर वह दिलीप कुमार वाली स्टाइल
में सैड शीन में चला गया। मैंने दुखी पति समाज की ओर से उसे सांत्वना दी और
प्रार्थना की कि हे प्रभु ऐसा कष्ट दुनिया के किसी पति को न दे। एक दिन मेरे फोन
पर अचानक व्हाट्स एप की घंटी बजी। मैंने देखा कि बेटे ने डिमांड की है कि पापा घर
आना तो खाना लेते आना...। आज मम्मी हड़ताल पर हैं...। मैंने व्हाट्स अप से पूछा कि
क्यों...। तो उसने जवाब दिया कि मम्मी नानी और मौसी से व्हाट्स एप पर बात कर रही
हैं। आज किसी टीवी सीरियल को लेकर चर्चा हो रही है। मम्मी ने कह दिया है कि आज
सीरियल का खास एपिसोड आना है। उसमें क्या होगा, उसे लेकर मैं चर्चा कर रही हूं।
पापा से कह दो खाना लेते आए। ये जानकार मैं दुख के सागर में डूब गया। वाह रे
व्हाट्स अप बाबा...ऐसी कष्टकारी सुविधा दी हमें...। इसी तरह पता नहीं कहां से एक
इंश्योरेंस एजेंट के हाथ मेरा मोबाइल नंबर लग गया। तबसे वह व्हाट्स अप पर तरह-तरह
की पॉलिसियों का लेखा-जोखा और फायदे भेजने लगा। आप की मृत्यु के बाद परिवार को
मिलेगा पूरा रिस्क कवर, बोनस और फलाना-ढिमाका। मौका हाथ से जाने न दें अभी तुरंत
फायदा उठाएं। ये पढ़कर मैं डर गया, यार मेरे जिंदा रहते ही ये मुझे मरने के बाद के
फायदे गिना रहा है। यानी मैं कमा-कमा कर इसका प्रीमियम भरते-भरते मर जाऊं और फायदा
मेरा परिवार उठाएं। यार आखिर मैं क्यों नहीं हकदार हूं उस फायदे का सुख भोगने के
लिए। मैंने फोनकर उस एजेंट को जमकर हड़काया और कहा कि खबरदार ये मरने-मारने वाली
पॉलिसी की डिटेल व्हाट्स एप करी तो आकर तेरे ही प्राण ले लूंगा। पता नहीं उस शातिर
एजेंट को क्या सूझी वो मेरी पत्नी को वो पॉलिसी की डिटेल व्हाट्स एप करने लगा। फिर
क्या था मेरा घर में मरण शुरू हो गया। पत्नी ने भारी दबाव बनाते हुए कहा कि मरके
चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी। ज्यादा दिमाग खराब न हो...अभी ये पॉलिसी लो वरना
तुम्हारी खैर नहीं। मैंने कहा कि मर तो मैं शादी के बाद से ही रहा हूं...अब तो
औपचारिकता ही बाकी रह गई है। मैंने व्हाट्स एप पर उस एजेंट से पॉलिसी दे जाने का
आग्रह किया तो जवाब मिला कि आपकी पॉलिसी भाभी जी पहले ही ले चुकी हैं। आप तीन माह
बाद प्रीमियम टाइम पर जमा कर दीजिएगा। मैंने कहा वाह रे बाबा ये भी दिन दिखा दिए
तुमने। अपने मरने का परवाना भी देखने को नहीं मिल सका। आजकल जो भी मिलता है वो
दुआ-सलाम से पहले पूछता है कि व्हाट्स एप पर हो न....। मैं हां कहता हूं तो वह झट
से मेरा नंबर ले लेता है। अब मैं उस घड़ी को कोसता हूं कि जब मैं बाबा के दरबार
में पहुंचा था। अब तो मन से सिर्फ एक ही प्रार्थना उठती है हे बाबा अपने बंधन से हमें
मुक्त करो...।
Saturday, 7 March 2015
Friday, 6 March 2015
हे जुगाड़ुओं जारी रखो भलाई की सप्लाई...
हे जुगाड़ू भाइयों तुम्हें
शत-शत नमन। आपके अविष्कार और खोजों पर भले ही चर्चा न हो लेकिन लोगों की भलाई के
लिए किए गए आपके प्रयास पर जितने भी पुरस्कार न्यौछावर किए जाए कम है। आपका सबसे
बड़ा अविष्कार जुगाड़ गाड़ी आज भी दुनिया के लिए बड़ा कौतहूल का विषय बनी हुई है।
बड़ी-बड़ी कार निर्माता कंपनियां जो तकनीक करोड़ों रुपए खर्च कर हासिल करती हैं वो
आपने चंद हजार रुपए में ही विकसित कर ली। चंद लकड़ी के पटरे, चार टायर, एक इंजन,
एक स्टेयिरंग और एक ब्रेक की बदौलत आपने दुनिया की ऐसी फोल्डेबल गाड़ी बना डाली
जिसे जरूरत पड़ने पर खोलकर बोरे में भी पैक किया जा सकता है। आधुनिक तकनीक के दौर
में आपकी यह खोज किसी बड़ी चुनौती से कम नही है। अभी तक ऐसी कार ही नहीं बन सकी है
जो पूरी तरह से खोलकर बोरे में पैक की जा सके। यानी महानता में आप अत्यंत श्रेष्ठ
कोटि में आते हैं। आपने ही हमें सिखाया कि हम बाइक के पिछले पहिए से रस्सी फंसाकर
ट्यूबवेल का इंजन चला सकते हैं और खेतों में पानी पहुंचा सकते हैं। आपने कार में
घर वाले एसी को लगाकर अद्भभुत अविष्कार का जो परिचय दिया है उसकी जितनी प्रशंसा की
जाए कम है। आपने ही हमें बताया कि यदि प्याज हेलमेट लगाकर काटा जाए तो कतई आंसू
नहीं निकलेंगे। ये अविष्कार दुनिया के लिए किसी बड़े वरदान से कम नहीं है। आपने
महंगे पेट्रोल के इस दौर में साइकिल पर बाइक की बॉडी को जो एडजस्ट किया है वो तो
एकदम लाजवाब है। यानी चंद सौ रुपए में आप बाइक का शौक भी पूरा कर लेंगे और पेट्रोल
के लिए पैसे भी नहीं खर्च करने पड़ेंगे। आपने हमें प्रेस के ऊपर दूध गर्म करने की
तकनीक दी। आपने हमें बताया कि यदि शॉवर टूट जाए तो मिनरल वॉटर की बोतल के पिछले
हिस्से में छेदकर उसे शॉवर की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी नो मनी नो झंझट।
आपने ही बताया कि किसी बड़े भगोने में शॉवर की टोटी जोड़कर शॉवर से नहाने का आनंद
लिया जा सकता है। खाली बेकार सीपीयू की बॉडी को दीवार से लगाकर अलमारी का जो काम
लिया है वो काफी फायदेमंद है। खराब हॉर्न वाली बाइक में साइकिल की घंटी लगाने का
आपका सुझाव बचत को बढ़ावा देता है। साइकिल की चेन और चप्पलों में ताला लगाने का अविष्कार
बिंदास है। उसने बड़े वर्ग को राहत पहुंचाई है। खासकर चप्पल चोरी की घटनाओं में अब
आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई है। दो बोतलों के बीच कुकर फंसाकर नीचे कई
मोमबत्तियों से गर्म आंच देने का जो आइडिया आपने विकसित किया है वह दुनिया में
ईंधन बचाने के लिए किया गया बड़ा प्रयास है...। इसके लिए आपका अभिनंदन...। आपने
घोड़े से बेकार कार खींचने की जो नई तकनीक विकसित की है वो रिसाइकलिंग के धुरंधरों
के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। ये आप ही हैं जिन्होंने कबाड़ हो चुकी
कारों को कपड़ों और खिलौनों के शोरूम में विकसित कर शॉपिंग माल्स को कड़ी चुनौती
दी है। भई वाह, आटो को पान की गुमटी में तब्दील करने का आपको प्रयोग काफी अच्छा
प्रयास है। यानी गुमटी कहीं भी मूव कर सकते हैं। घूम-घूम कर कमाइए पैसा। गाड़ी
चलाते वक्त रुमाल से कान में मोबाइल बांध लेने का आपका कॉन्सेप्ट काफी रोचक है।
खासकर हर वक्त मोबाइल से चिपके रहने वाले लोगों के लिए ये किसी बड़े वरदान से कम
नहीं है। खराब फ्रिज में टेबल फैन से चीजों को ठंडा करने की आपकी खोज वैज्ञानिक
युग की बड़ी क्रांति है। आपने ही हमें सिखाया यदि गीजर जैसा गर्म पानी चाहिए तो
टोटी के नीचे मोमबत्ती बांध दो, पानी अपने आप गर्म हो जाएगा। ये खासकर सर्दियों
में न नहाने वाले लोगों के लिए तो बड़ा उपहार है। आपने खाली घी का पीपा काटकर उसके
अंदर छोटा पंखा और घास की चट्टी लगाकर जो दुनिया का सबसे छोटा कूलर विकसित किया
है, वो गरीबों के लिए तो तपती गर्मी में बड़ी राहत से कम नहीं है। आपने ही हमें
सिखाया यदि दीवार घड़ी आधी टूट जाए तो उसे फेंके नहीं बल्कि आधी सलामत घड़ी को
दीवार पर लगाकर आधी जगह हाथ से समय वाले नंबर लिख दें। यानी आपकी कहीं से कोई हानि
नहीं होगी और आप घड़ी देखने से वंचित नहीं हो सकेंगे। एलसीडी के शौकीनों के लिए
आपने दीवार के अंदर सीमेंट से अपना टेबल टीवी जमा देने की जो तकनीक विकसित की है
वो टीवी कंपनियों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं। गर्मी ज्यादा लगने पर कोल्ड
ड्रिंक वाली फ्रिज के अंदर बैठकर सुकून से एसी का मजा लेने का आपका कॉन्सपेट तो
बड़ा ही निराला है। हे धरती के श्रेष्ठ जुगाड़ुओं हमें आप पर गर्व है...। ईश्वर से
प्रार्थना है कि आप अपनी भलाई की सप्लाई इसी तरह जारी रखें...। ईश्वर आपको और
तकनीक विकसित करने की सद्बुद्धि प्रदान करे..।
Thursday, 5 March 2015
हुल्लड़ बाबा के होरियारे नुस्खे...
होली पर मजाक का अपना ही
मजा होता है। लोग तरह-तरह से मजाक करते हैं। कुछ लोग तो बकायदा परचे छपवा कर लोगों
को बांटते हैं। ऐसा ही एक परचा आज ही मेरे हाथ लगा था। परचे का शीर्षक था
हुल्लड़ बाबा के होरियारे नुस्खे...। मैं पढ़कर चौंक गया। उत्सुकतावश मैंने वो
परचा पूरा पढ़ा तो मेरे दिमाग की घंटी बज गई। उस परचे में दी गई चीजें मैं नीचे
लिखने की कोशिश कर रहा हूं...।
हुल्लड़ बाबा के होरियारे
नुस्खे
प्रिय भक्तजनों...। आज तो आपका
मन होली खेलने के लिए बंदरों की तरह बहुत उछलकूद कर रहा होगा। बच्चा ज्यादा मत
उलरो, इस वक्त तुम्हें अलर्ट रहने की जरूरत है...। वरना कोई भी तुम्हें बंदर बनाकर
निकल जाएग। होली खेलने से पहले अपने साज-श्रृंगार की कुछ ये सामग्री जुटा लें...।
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.फटे-पुराने कई जोड़ी
कपड़े।
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रिटायर हर्ड हो चुकी दो
जोड़ी घिसी और फटी चप्पलें।
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एक अदद मटमैली टोपी।
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दो जोड़ी फटीचर मोजे।
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एक ऐसा चश्मा जिससे कुछ न
दिखता हो
-
एक अदद ऐसा रुमाल जो वाटरप्रूफ
हो
-
पैसे रखने के लिए रैक्सीन
वाली पोटली इत्यादि
अन्य सामग्री आप
अपने श्रृंगार की जरूरत के अनुसार बढ़ा सकते हैं। पहले तो ऊपर दी गई सामग्री को
यथानुसार एक-एक कर धारण करें। शायद आप तैयार हो चुके हैं। अब आपको नीचे कुछ गानों
की कड़िया दी जा रही है...उन्हें आप गौर से पढ़े या सुनें...ध्यान रहे इस बीच आपको
कोई डिस्टर्ब न करे वरना आपकी ऊर्जा का पुंज फ्यूज हो जाएगा और आप जगह-जगह रंगे
जाएंगे। गहरी सांस लीजिए और नीचे पढ़िए...।
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होली आई रे कन्हाई...
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रंग बरसे भीगे चुनर वाली...
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बलम पिचकारी जो तूने मुझे
मारी...
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आज न छोड़ेंगे तुझे
हमजोली...
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अंग से अंग लगाना, बलम मुझे
ऐसे रंग लगाना..
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अरे जा रे हट नटखट...
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होली के दिन दिल खिल जाते
हैं...
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होली आई रे...
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होरी खेले रघुवीरा अवध में,
होरी खेले रघुवीरा..
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होलिया में उड़े रे गुलाल..
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जोगी जी वाह जोगी जी...
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लेट्स प्ले होली...
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मारो भर-भर पिचकारी....
शायद आपकी होरियारी
बैटरी फुल चार्ज हो चुकी है। आप होली खेलने के मूड में आ चुके हैं। तो चलिए अब
अपने कपड़ों में रंगों को छिपाना शुरू कर दीजिए। कोशिश करिए की रंगों की छोटी-छोटी
पुड़िया बना लें। ध्यान रहे जितनी ज्यादा से ज्यादा पुड़िया आपके पास होगी उतना ही
आपके विजयी रहने के चासेंज ज्यादा है....।
अब ये आहार ग्रहण करें
ठंडाई (भांग युक्त
अथवा सादी) पीने का माद्दा हो तो ही ग्रहण करें।
भांग वाली ठंडाई
पीने के बाद आपकी डाइट इस तरह की हो जाएगी।
20-25 गुझिया (कम हो
तो कोटा बढ़ा सकते हैं)
100-150 आलू के पापड़
150-200 साबूदाने के
पापड़
200-250 बाजारू
पापड़
दो से तीन किलो नमकीन
खुरमे, मटरी वगैरह
दो से चार किलो दालमोंठ
यथाशक्ति अनुसार
पूड़ी, सब्जी, छोले, चावल,
पुलाव, रायता, सलाद, पापड़ आदि।
(नोटः ये सामग्री
बाबा ने अपने नाश्ते की लिखी है, भांग का नशा बढ़ने पर इस सामग्री में भयंकर इजाफा
हो सकता है, .बाबा आजकल डाइटिंग पर हैं)
अब घर से निकलते वक्त ये बातें जरूर ध्यान रखना...
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आज के दिन कोई प्यार से
बुलाए तो समझ लेना दाल में काला है। रंगने की तैयारी हो रही है।
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किसी भी घर के नीचे मत खड़े
होना वरना ऊपर से कोई रंग डाल देगा।
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मित्र कुछ खिलाने ले जाने
की बात कहें तो अलर्ट हो जाना।
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रंग खत्म हो जाने पर सामने
वाले को इसका कतई अहसास न होने दें।
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बचाव से ज्यादा आक्रमण की
मुद्रा में रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे।
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कोई रंग लगाने आए तो विरोध
मत करिए वरना वो जबरन ज्यादा रंग लगा जाएगा।
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ज्यादा रंग लगने की आपात
स्थिती में सिर पर पैर रखकर भागने के लिए तैयार रहें।
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संकट के समय में मित्रों को
बचाने से ज्यादा खुद के बचाव पर जोर दें।
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सामने वाले को ये अहसास
कराए कि आपसे बड़ा इस धरती पर दूसरा रंग खेलने वाला नहीं है।
-
रंग के खाली पैकेटों से
डराने की कोशिश करते रहें।
बाबा के इन गुरुमंत्रों के
साथ आप रंगभूमि को प्रस्थान कर सकते हैं। आज के दिन बाबा का आशीर्वाद आपके साथ है।
बहुत रंगे जाएंगे...अरे मतलब सामने वाले आप नहीं...। तो चलो गुरु हो जाओ शुरू...।
हैप्पी होली....।
Wednesday, 4 March 2015
होली में हरी ठंडाई से बचना भाई...
होली हो और ठंडाई का जिक्र
न हो ऐसा हो नहीं सकता। आदिकाल से बाबा भोलेनाथ के इस प्रसाद को लेकर होरियारो में
अगाध आस्था रही है। मैंने आज तक ऐसी कोई होली नहीं देखी जिसमें ठंडाई के नशे में
टुन्न भंगेड़ी न मिले हो...। कानपुर में तो होली पर खास किस्म की ठंडाइयों की
भरमार आ जाती है। ठंडाई के नशे में हंसते-मुस्कुराते, रोते, खाते, सोते,
दौड़ते-भागते और पगलाए होरियारों को देखकर लगता है कि इट्स हैपन्ड आनली इन
इंडिया...। मुझे याद है एक बार मेरे दोस्तों ने होली पर मोहल्ले में ठंडाई वितरण का
प्लान बनाया। तय हुआ कि दो तरह की ठंडाई बनाई जाएगी। एक सादी और दूसरी भयानक भांग
से युक्त (यानी परम आनंद की प्राप्ति का प्रसाद)। हमने इसकी जिम्मेदारी अपने सबसे
बड़े भंगेड़ी मित्र टुनव्वा को दी। वह इसलिए क्योंकि वह ठंडाई बनाने में एक्सपर्ट
था। उसका दावा था कि उसने जीवन में सिर्फ एक ही विधा सीखी है और वो है ठंडाई
बनाना। उसके बराबर इस दुनिया में कोई ठंडाई नहीं बना सकता। यदि ठंडाई बनाने में
कोई नोबल पुरस्कार रखा जाता तो वह उसे ही मिलता। हम भोले-भाले उसकी बातों में आ
गए। उसने हमको ठंडाई की सामग्री की लंबी-चौड़ी लिस्ट सौंपी। हम बिटिया की शादी में
सामान कम पड़ने पर दौड़ते-भागते जनातियों की तरह वह सामान लेने के लिए दौड़ पड़े।
कैसे-तैसे सारा सामान इकट्ठा किया गया। उसने सारी सामग्री देखी और एक पैकेट से
भांग की छोटी सी गोली निकाल कर खुद भोग लगा लिया। उसका कहना था कि ये ठंडाई बनाने
का टुटका है। किसी भी नशे की सामग्री को बेहतर बनाने के लिए खुद नशे में होना
पड़ता है। हम उसके कहे अनुसार उसकी मदद करते रहे। फिर ठंडाई में भांग मिलाने के
दौरान उसने सबको हट जाने के लिए कहा। हमने पूछा आखिर क्यों तो वह बोला इसलिए
क्योंकि उसके गुरु भंगेड़ी लाल ने उससे सौंगध ली थी कि बेटा जब तुम ठंडाई में भांग
मिलाना तो कोई भी इसे कतई न देखे वरना हमारा तुम्हारा गुरु-शिष्य का रिश्ता तुरंत
खत्म हो जाएगा। ये गूढ़ विद्या है इसे किसी और को दिया तो तुम महापापी बनोगे। भइया
हम अपने दोस्त के वचन की लाज रखने के लिए वहां से हट गए। थोड़ी देर बाद उसने हमें
बुलाया और कहा जाओ बांट दो...। एक बाल्टी में उसने सादी और दूसरी में हरी भांग
वाली ठंडाई होने की बात कहकर हमे विदा कर दिया। होली की मस्ती में हमने मोहल्ले
में ठंडाई बांटनी शुरू कर दी। बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चों को हमने सादी और युवाओं
को भांग मिली ठंडाई दी। एक घंटे तक सब ठीक रहा फिर तो मोहल्ले में हल्ला ही मच
गया। हमारी 70 साल की रामदुलारी दादी हमें डंडा लेकर तलाशती हुई आई और चिल्लाने
लगीं। नासपीटे, होली पर ऐसा मजाक किया जात है बुजुर्गन से...। मैंने पूछा क्या हुआ
काकी...। वह बोली तोहार काका कह रहे हैं रामदुलारी हम ऊपर जाई रहन है...कहां का
रखा है आओ समझ लेयो...। तोहार वास्ते हम एक लाख रुपया बैंक मा जमा कराई दिया हूं...ओके
ब्याज से तोहार बुढ़ापा कट जाई...। अभी मैं उनसे बात कर ही रहा था तभी मेरे पीछे
से मेरे चुन्नू चाचा आ गए। बोले मैं घर से क्या चला गया तूने अपनी चाची को क्या
पिला दिया...। मैं खाना मांगने लगा तो कह रही है शटअप आज खाना तुम बनाओगे...और मैं
खाऊंगी। इस बीच मोहल्ले में हल्ला मचा कि 14 साल का एक लड़का जिसका नाम रामजी था
उसने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया है और अंदर सो गया है...। मैंने महसूस किया कि
ठंडाई का असर मेरे और मेरे दोस्तों पर भी होने लगा है। हम सभी एक-दूसरे को देखकर
खूब हंस रहे थे...। दिल कह रहा है बेटा चुप हो जा...पर कमबख्त मुंह रुकने का नाम
हीं नहीं ले रहा था। कैसे-तैसे हम अपनी हंसी छिपाते हुए दौड़ते हुए रामजी को
बाथरूम से निकालने पहुंचे। बाथरूम का दरवाजा खोलकर उसे सोते हुए बाथरूम से निकालकर
बाहर लाए। किसी ने बताया कि हमारा दोस्त गोलू बिजली के खंभे से चिपका जा रहा है और
बार-बार कह रहा है आज तो मैं तुझसे शादी रचाऊंगा...। कैसे-तैसे उसे खंभे से
छुड़ाकर हमने घर पहुंचाया। अभी हम आकर एक जगह इकट्ठा हुए ही थे तभी पता चला कि
मोहल्ले के ही एक और बुजुर्ग राधेश्याम लगातार खाना खाते ही जा रहे हैं...घर वाले
परेशान हो गए हैं। वो एक किलो आटे की पूरिया चट कर गए हैं और चिल्ला रहे हैं और
लाओ...। हम तुरंत उनके घर पहुंचे और कैसे-तैसे नींबू चटाकर हमने उन्हें खाने से
जुदा किया। इस बीच हमारे मोहल्ले का एक शख्स अपनी छत पर पटाखे छुड़ाने लगा...। घर
वाले उसे मना रहे थे लेकिन वो चिल्ला रहा था हट जाओ आज मैं दिवाली मनाऊंगा...। हम
कैसे-तैसे उसे छत से नीचे लाए। इधर हमारी हालत भी फूलों जैसी हो गई थी. हंस भी रहे
थे और दिल से रो रहे थे और कह रहे थे हे भगवान ये क्या हो गया। जिसे देखो हमे
देखकर मुंह बना रहा था...भला ऐसी ठंडाई बनाई जाती है...एक शख्स ने हमसे पूछा कौन बनाइस
है ई ठंडाई। हमने जवाब दिया टुनव्वा...। सभी लोग टुनव्वा को पीटने के लिए पुलिस की तरह
कांबिंग करने लगे। टुनव्वा एक ठेले पर औंधे मुंह सोते मिला। लोगों ने उसे हिलाकर
पूछा क्यों रे तूने ठंडाई बनाई थी...उसने नशे में हंसते हुए जवाब दिया...हां...मजा
आया। हमने कहा टुनव्वा तेरी सादी ठंडाई से लोगों की हालत बिगड़ गई है...क्या किया
रे तूने। वह बोला..मेरे गुरु ने एक सौंगध और ली थी मुझसे...वो थी कि बेटा कभी सादी
ठंडाई न बनाना। ये ठंडाई निर्माण की महान परंपरा का अपमान है। वो ठंडाई ही क्या
जिसमें भांग न हो। तुम लोग मुझे ऐसा करने से रोकते इसलिए तुम्हें हटाकर मैंने सारी
ठंडाई ही भांग वाली बना दी। यह कहकर वो सो गया और हम हंसते-हंसते रोने लगे। इस बार
होली पर ठंडाई से सावधान रहिएगा...।
कहानी जनहित में जारी।
Tuesday, 3 March 2015
ओए हीरिए गुझिया मैं तेरा रांझा...
होली नजदीक आते ही मेरा और तुम्हारा प्रेम हीर और रांझा की तरह परवान चढ़ने लगता है। न जाने ऐसा क्या है तुम्हारी मिठास में जो ये दिल तुम्हें पाने के लिए मनचलों की तरह होली भर मचलता रहता है। सुना है की मेरी तरह तुम्हारे चाहने वाले छत्तीसगढ़ में तुम्हे कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की, आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु के रूप में चाहते हैं। मुझे आज भी याद है जब मैंने होश संभाला था तो मेरे घर के किचेन के कोने से पहली बार हमारी आंखें चार हुईं थीं। तुम अपनी सहेलियों मावा, रवा,चीनी, किशमिश, चिरौंजी, काजू और इलाइची के साथ अठखेलियां कर रही थीं और मैं तुम्हें ललचाई नजरों से देख रहा था। तुम शुभ्र धवल वस्त्रों(मैदा) में अलौकिक नजर आ रही थी। आहा, जब तुम घी में तैरने के लिए गई तो तुम्हारी सोंधी महक ने मुझे मदमस्त कर दिया। मैं रोमियों की तरह तुम्हारी जैसी जूलियट को पाने के लिए बेताब हो उठा। मैं भागता हुआ मां के पास पहुंचा और तुम्हारा साथ मांगा तो मां ने अभी नहीं, पूजा के बाद कहकर मुझे डपटकर खाली हाथ लौटा दिया। उस वक्त तो जी कर रहा था कि मैं शोले के वीरू की तरह टंकी पर चढ़कर तुम्हारा हाथ मांगू...पर क्या करूं पिता जी बुरी तरह पीटे न इसलिए मैं ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। पहली बार जब तुम मेरे हाथ में आई तो धरती, गगन, वायु, अग्नि, जल जैसे पांच तत्व हमारे अद्भभुत मिलन के साक्षी बने। जब तुम्हारी मिठास मेरी जीभ में पहुंची तो ये मन अऩंत आकाश में आनंद के लिए उड़ चला। बस तबसे मैं और तुम अलौकिक प्रेम में बंध गए। जवान होते-होते हमारे रिश्ते मिठास भरे रहे लेकिन कुछ साल पहले हमारे रिश्तों में महंगाई तलाक बनकर आ गई। मुई ने सबसे पहले तुम्हें तुम्हारी सहेलियों से ही जुदा कर दिया। पहले जहां तुम आठ-दस सहेलियों के साथ अपना साज-श्रृंगार करती थीं, वहीं अब ये संख्या एक-दो में ही सीमित हो गई है। कहीं-कहीं तो गुझिया में सिर्फ हवा ही निकलती है। गुस्सा तो बहुत आता है पर क्या करूं मजबूर हूं...मैं तुझे इस महंगाई से आजाद नहीं करा सकता। कई सालों से सुन रहा हूं कि सरकार इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है...भगवान जाने कब इस पर लगाम लगेगी और कब हमारा फिर से बैंड बाजा बजेगा। हमारे रिश्ते की दूरी में बची-कुछी कसर मिलावटखोरों ने पूरी कर दी। अब हम उस तरह नहीं मिल पाते, जैसे पहले मिलते थे। पिता जी कहते हैं महंगाई बहुत है...रेडीमेड गुझिया ले आओ...। घर में गुझिया बनाने की जरूरत नहीं है..। त्योहार है बचत करके चलो। मुझे ये सुनकर बहुत दुःख होता है...। मेरे तुम्हारे अमर प्रेम का ऐसा हश्र...सपने में भी नहीं सोचा था। हम तुम तो किचन में प्रेम के धागे से बंधे तो...फिर भला मैं बाहर से तुम्हारी सौतन को कैसे ला सकता हूं। घरवाली पर जो विश्वास होता है वो बाहरवाली पर नहीं हो सकता। खैर, माफ करना मजबूर हूं...पिता जी का आदेश मानना भी जरूरी है। डर है कि कहीं फिर पिटाई न हो जाए। इसलिए जा रहा हूं तुम्हारी सौतन लेने। नाराज न हो...पहले जहां तुम .पांच किलो वजन में हमारे घर को खुश करती थी वहीं अब रेडीमेड रूप में 250 ग्राम से दुखी करती हो। यानी तुम स्लिम हो गई और हम दुखी।...मेरी तरह तुम्हारे चाहने वाले इस देश के बहुत से लोग विरह की आग में जल रहे हैं। क्या करें हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि एडजस्ट करना पड़ रहा है। आज हर कोई एडजस्ट ही तो कर रहा है। अब होली आ गई है...फिर से तुम्हारी बहुत याद सता रही है....इसलिए दिल से ये पाती लिखने की कोशिश कर रहा हूं। .ईश्वर से प्रार्थना है कि मुई महंगाई को इस बार होलिका में जला दो और इस देश के हर देशवासी को गुझिया से मिला दो...।
तुम्हारा
चाहने वाला
रोमियो
Monday, 2 March 2015
सब जग होरी, कंपू में होरा...
ब्रज में होली पर एक फाग बहुत प्रसिद्ध है। सब जग होरी, जा ब्रज होरा...यानी
ब्रज की होली दुनिया में सबसे अलबेली है। कानपुर की होली के बारे में मैं यह फाग
दोहराना चाहूंगा। यानी सब जग होरी, कंपू में होरा। अलमस्त, मनमौजी और अल्हड़ अंदाज
की कानपुर की होली के क्या कहने। ब्रज के बाद भारत में यदि कोई दूसरा स्थान है
जहां कई दिन लंबी होली खेली जाती है तो वो जगह है कानपुर। कंपू में होली औसतन आठ
से दस दिनों की होती है। इस दौरान ठिठोली और मस्ती का जो दौर चलता है उसकी जितनी
तारीफ की जाए कम है। अजब-गजब मजाक और चुहलबाजी लोगों को पेटफाड़ू हंसी के लिए मजबूर
कर देती है। इस दौरान कुछ जुमले फिजां में तैरने लगते हैं...। मेरा दावा है कि जो
मस्ती इन जुमलों को सुनकर चढ़ती है वो होली खेलने में नहीं हैं। मैं जब छोटा था तो
मुझे याद है मेरे मोहल्ले का सबसे शरारती युवक जिसका नाम फुल्लड़ है, वह मस्ती करना
शुरू कर देता था। गब्बर वाले अंदाज में वो होली कब है, कब है होली, कब है...पूछना
चालू कर देता था। वह एक शख्स से करीब 100 से 150 बार ये सवाल पूछने की कोशिश करता
था। आखिर में वो शख्स ही हाथ जोड़कर कहता था मेरे पिता जी अब तुम ही बता दो कब है
होली। इसी तरह वो जमीन पर पांच रुपए का सिक्का जमा देता था। जो शख्स भी उसे उठाने
की कोशिश करता तो वो उसे पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाता...ई देखो...ई है सिक्का
चोर...। बेचारा वो शख्स घबड़ा जाता और जल्दी में उसे होली का चंदा देकर निकल जाता।
ऐसे ही मेरे दोस्त राजेश पर भी फिल्म शोले का नशा चढ़ जाता था। वह कनपुरिया अंदाज
में शोले के डायलॉग तोड़-मरोड़ कर मौजमस्ती में जुट जाता था। ई तो सूरमा भोपाली
बने फिर रहे हैं...जरा रंगों इन्हें, लुक जाओ...अंग्रेजों के जमाने के जेलर आ रहे
हैं, अब तेरा क्या होगा कालिया..., ये पिचकारी हमे दे दे गब्बर..., मौसी जी आईएम
रंगिंग, रंगिंग एंड रंगिंग...होली खेलिंग एंड खेलिंग, मौसी जी होरियारे देखिंग एंड
भागिंग, भागिंग एंड भागिंग..., इतना सन्नाटा क्यों है भाई...कोई रंग क्यों नहीं
खेल रहा, चल धन्नो..आज तुझे होली खेलनी है..., मोहल्ले में रंगने वाली पिचकारी आ
चुकी है हरिराम..., आदमी तीन, गुब्बारे दो...बहुत नाइंसाफी है, सरदार मैंने आपकी
गुझिया खाई है...आपसे गद्दारी नहीं करूंगा जैसे डॉयलॉगों से वह लोगों को गुदगुदाता
था। होली के दौरान कानपुर में स्वांग (वेष धरना) रचकर मस्ती करने का अंदाज ही
निराला है। कोई स्वामी जी का तो कोई नेताजी का रूप धरकर टोली के साथ घूमता है। स्वामी
बने शख्स को बकायदा नकली बाल, वस्त्र, माला आदि पहनाकर तैयार किया जाता है। फिर
उनका नामकरण किया जाता है। अक्सर उनके नाम हुल्लड़ बाबा, चिकाई गुरु, होरा गुरु और
मौजी बाबा आदि रखे जाते हैं। बाबा अपने साथ 10-15 लोगों को लेकर मोहल्ले-मोहल्ले
घूमते हैं। इस दौरान उन्हें जो मिलता है वह उसे बुलाकर बाबा वाले अंदाज में पूछते
हैं...रंग काहे नहीं खेल रहे हो बच्चा, बाबा बिना रंगे ही चले जाएंगे तुम्हारे
मोहल्ले से, आई जियो राजा बनारस, होरी मा होरा, बहुत बिंदास है ये छोरा, करो
चिकाई, बाबा की टोली आई, आओ गुरु...हो जाओ शुरू जैसे जुमलों से सामने वाले को होली
खेलने के लिए मजबूर कर देते हैं। इस तरह स्वांग वाले नेता के साथ टोलिया मोहल्ले-मोहल्ले
पहुंचती है। आपसे मिलने आए हैं, भ्रष्ट नेता आए हैं, डालो रंग...पिलाओ भंग, कौन
गुरु भई कौन गुरु...भंगड़ गुरु भाई भंगड़ गुरु, हममें है खोट, मत देना वोट, आपसे लुटने
आए हैं...हमारे नशेड़ी नेता आए हैं जैसे नारे हवा में तैरते थे तो बिना हंसे रहा
नहीं जाता था। नेता बना रंगा-पुता शख्स हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए यहीं कहता था
भइया वोट नहीं नोट चाहिए...। कनपुरिया अंदाज का ये खास तरह का स्वांग अपने आप सबकी
हंसी छुड़वा देता था। कानपुर में होरियारों की टोली की भी अपनी मस्ती है...। ढोल
की थाप पर नाचते-गाते 20-25 लोगों की टोलियां जब हमारे मोहल्ले से गुजरती थी तो हम
दौड़कर उन्हें देखने के लिए पहुंच जाते थे। पानी बचा लो, रंग डालो...चीखते हुए जब
घर के नीचे से निकलती थी तो एक अलग तरह की खुशी मिलती थी। इसी दौरान कुछ जुमले भी
उछलते थे...कबीरा सा..रा...रा..., आपसे मिलने आई है, होरियारों की टोली आई है..., लइया
बड़ी करारी है, अपनी टोली भारी है, करो चिकाई, होली आई..., हम है कंपू के छइया,
नाच ता..ता थइया..., खईके पान बनारस वाला..छोरा गंगा किनारे वाला... जैसे नारे गूंजते
थे तो दिल उस टोली के साथ घूमने को मचल उठता था। हालांकि वैसी मस्ती अब नहीं दिखती
लेकिन होली आते ही वो यादें जरूर रह-रहकर मुस्कुराने को मजबूर कर देती हैं। भाई
मैं तो अब उन्हीं यादों से होली खेलता हूं...सोंचा कि इस बार आपको भी शामिल कर
लूं... सो लिख मारा आपके लिए एक हुल्लड़ लेख। आप सभी को होली की बहुत-बहुत
शुभकामनाएं...।
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