प्यासापुर गांव अचानक पूरी दुनिया के अखबारों
की सुर्खियों में छा गया। इसकी वजह बना एक कोलंबस टाइप का रिपोर्टर। गांव से
गुजरते हुए जब उसे प्यास लगी तो उसने हैंडपंप की तलाश की। काफी मशक्कत के बाद उसे
पता चला कि ब्रह्मा की सृष्टि उत्पत्ति से लेकर अब तक यहां हैंडपंप जैसी दुर्लभ वस्तु प्रकट नहीं हो सकी है। हो सकता हो शायद अभी तक किसी ने यज्ञ ही न किया हो। रिपोर्टर ने
तुरंत ये खबर अखबार की सनसनी बना दी। बीच सड़क पर गला फाड़-फाड़कर हॉकर ने आवाज दी
देखो रे देखो...इस गांव में आज तक हैंडपंप ही नहीं लगा।खबर बेचने के लिए उसने
मसाला लगाया कि यह इस तरह का यह देश का इकलौता गांव है। जबकि हकीकत में ऐसी हालत देश
के कई गांवों की है। जुगाड़ से चांद पर पहुंचने वाली जब बाकी दुनिया को यह पता चला
तो हर तरफ हैरत से लोग मुंह फाड़-फाड़ प्यासापुर गांव के प्यासों पर तरस खाने लगे।
बेचारे, कैसे पानी पीते होंगे, कहां से लाते होंगे, सुबह का काम कैसे करते होंगे
आदि शोककुल वक्तव्य प्यासापुर के प्यासों के नाम पर श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित
किए जाने लगे। अगले दिन नेताओं का भारीभरकम फौज-फाटा गांव पहुंच गया। यहां नेताओं
की कई वैराइटी मौजूद थी। काला, लंबा, गोरा, ठिगना और एक सर्वमान्य प्रजाति मोटा(शानदार
चमकती तोंद के साथ) । शायद नेताओं की यहीं एक ऐसी प्रजाति जो दुबली-पतली जनता को दूर
से उनके नेता होने का अहसास करा देती है। दुनिया की इस सबसे बड़ी सनसनी को कवर
करने के लिए देश के साथ विदेश की मीडिया भी यहां जुट गई। आज गांव का नजारा बदला
हुआ था। कोई रिपोर्टर और नेता सूखे कुएं के पास खड़े होकर बतिया रहे थे। तो कोई सूखे
खेत के पास। कोई पेड़ पर उल्टा लटककर कैमरे से गांव को कवर कर रहा था तो कोई जमीन
पर लेटकर वीडियो बना रहा था। हर कैमरे के सामने सफेद लकालक कुर्ते में छतरी के
नीचे खड़े नेताजी मिनरल वॉटर पी-पीकर सिस्टम को कोस रहे थे। तभी सत्ता पक्ष के एक
मंत्री जी एक ट्रैक्टर पर हैंडपंप लदवाकर गांव इस अंदाज में पहुंचे मानो लाखों बाढ़ पीडितों के लिए राहत सामग्री लेकर पहुंचे हों। विरोधियों को देखकर मंत्रीजी ने मुंह बिराया और हैंडपंप के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी। एक मजदूर चिल्लाया साहब जगह मिल गई। मंत्रीजी नारियल लेकर ऐसे दौड़े मानो युद्ध में बम गिराने जा रहे हों। मीडिया के सामने नारियल फोड़कर बोरिंग शुरू करवा दी गई। गांव
के प्रधान प्यासाराम का माथा प्यार से चूमते हुए मंत्रीजी बोले मीडिया में ये मामला तो
बहुत बाद में आया है आप इस पगले से पूछ लीजिए मैं तो गांव के लिए पहले ही हैंडपंप पास कर चुका
हूं। ये हमारी सरकार की उपलब्धि है और पिछली सरकार की विफलता। इस बार चुनाव में इसे
हम बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेंगे। आज ही आप लोगों के सामने हैंडपंप की
ओपनिंग होगी। तभी विपक्षी दल के नेता मंत्री जी पर डब्लूडब्लूई के पहलवानों की तरह
टूट पड़े। अबे तुम कैसे लोगे हैंडपंप लगवाने का श्रेय। ये हमारी उपलब्धि है। ऐ हट
ये मेरी बदौलत हुआ है। अरे जा...चल मेरी बदौलत लगा है...। सभी नेता बिल्लियों की तरह
लड़ते हुए एक-दूसरे पर टूट पड़े। किसी ने बोरिंग में लगे मजदूरों को भगा दिया।
किसी ने पाइप फेंक दिया। किसी ने हैंडपंप को खंड-खंड कर दिया। गुस्से में किसी ने प्यासाराम को मुक्का मार दिया। बेचारा वह भागकर
घर में ऐसे दुबक गया मानो गांव में गब्बर डाकू आ गए हों। मीडिया वाले मजे से ये नजारा कवर कर रहे थे। थकने के बाद सभी
नेता एक जगह बैठ गए। एक बुजुर्ग नेता ने कहा कि अब तो ये मामला कोर्ट ही तय करेगा
कि आखिर हैंडपंप लगवाने का श्रेय किसको मिलेगा। उसके पहले यहां हैंडपंप लग गया तो
देश में आंदोलन खड़ा कर देंगे। आग लगा देंगे। ईंट से ईंट बजा देंगे...जैसी धमकियां दी जाने लगीं। एक-एक कर सभी चले गए। रह गया तो बस बोरिंग के लिए खुदा
हुआ गड्ढा। सुना है कि प्यासापुर के प्यासो ने वह गड्ढा भर दिया है। और आपस में तय
किया है कि अब कउनो हैंडपंप लई कर आवे तो धरके गटही दबा दी जइहै।
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