Tuesday, 10 February 2015

बड़ों का श्राप लोगे तो ये ही होगा...


जब मैं छोटा था तब मेरे घर के लोग मुझसे कहते थे बेटा कभी बड़ों का श्राप मत लेना वरना तुम बर्बाद हो जाओगे...। तबसे मैं इस नसीहत का पालन कर रहा हूं। हाल में ही दिल्ली में हुए चुनाव के परिणामों में मुझे इस नसीहत का एक अच्छा उदाहरण नजर आया। वो था भाजपा की शर्मनाक हार...। एक ऐसी हार जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। इस हार का तरह-तरह से पोस्टमार्टम किया जा रहा है। मेरे फेसबुक एकाउंट में एक ऐसी फोटो आई जिसने मुझे अपनी बात कहने का आधार दे दिया। गौर से देखिए इस फोटो को। इसमें आपको मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी बाजपेई नजर आ रहे होंगे। भाजपा में जब नरेंद्र दामोदारदास मोदी का उदय हुआ तो इन बुजुर्गों में अटल जी को छोड़कर शेष दोनों का सूर्य अस्त कर दिया गया। जोशी और आडवाणी को पार्टी से सम्मानजनक तरीके से रुसवा कर दिया गया। मार्गदर्शक मंडल में उन्हें पार्टी को मार्ग दिखाने के लिए छोड़ दिया गया। सोचिए जिन लोगों ने बीजेपी को खड़ा करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया गया हो उन्हें एक झटके में ऐसे निकालकर फेंक दिया गया मानो दूध से मक्खी। जिस वक्त उन्हें किनारे लगाया गया उस वक्त बीजेपी की दिल्ली में 32 सीटें थीं। बेचारे इन बुजुर्गों के दिलों से निकली आहों ने पार्टी की ऐसी गत बनाई कि 32 से दो हट गया और रह गया तो सिर्फ तीन। यानी 67 विरोधियों का मुकाबला करने के लिए बचे सिर्फ तीन शूरमा। अब तो संशय इस बात का है कि डर के मारे कहीं ये विरोधियों को समर्थन न दे दें। पहले जिस पार्टी के विधायक बस में भरकर आते थे उन्हें दिल्ली के चुनाव ने रिक्शा पर भी आने लायक नहीं छोड़ा। अब दबी जुबान में ये चर्चा तेज हो गई है कि बड़े-बूढ़ों की आहें लोगे तो ये ही हश्र होगा...। अभी भी वक्त है सुधर जाओ...आगे मंजिलें और भी हैं...।

 

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