हाल में ही मैं किसी कार्यवश कानपुर से हरदोई गया था। सड़क पर बाइक चलाते वक्त अचानक एक लोडर मेरे बगल से लहराते हुए आगे निकल गया। मैं गुस्से से चिल्लाने ही वाला था कि तभी उसके पीछे लिखे एक स्लोगन से मेरी हंसी छूट गई। उस पर लिखा था घूर क्या रहे हो, मैं वहीं हूं...। मौके की नजाकत के हिसाब से गजब का स्लोगन था। गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी। उसी दौरान मेरे खुराफाती दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने तय किया कि क्यों न इन विरले स्लोगनों पर एक रिसर्च की जाए। मैंने तय किया कि अब जब भी कोई आकर्षक स्लोगन दिखेगा उसे तुरंत लिख लूंगा। मैंने पाया कि स्लोगनों की यह दुनिया जबर्दस्त रचनात्मक लोगों से भरी हुई है। इन लोगों की सोचने की क्षमता बड़ी गजब की है। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक मुझे ट्रकों के स्लोगन मिले। घूर मत पगली प्यार हो जाएगा, पलट कर देख ले जालिम, तमन्ना हम भी रखते हैं, अगर तू 70 पर चलता है तो हम भी 80 पर चलते हैं, समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, सावधान आगे वाला कभी भी खड़ा हो सकता है, बुरी नजर वाले तू सौ-सौ साल जिए, तेरे बच्चे ...पिए, जहर खा लो पर लड़कियों पर भरोसा मत करो, कुंवारा स्टॉफ, दुश्मनों के दिल की धड़कन, आएंगे दिन बहार के, ये नीम का पेड़ चंदन से कम नहीं, हमारा लखनऊ लंदन से कम नहीं, दम है तो क्रास कर नहीं तो बर्दाश्त कर, धीरे चलाने से बार-बार मिलेंगे, तेज चलाने से हरिद्वार मिलेंगे जैसे स्लोगनों ने मेरे मन में इनके रचयिताओं के लिए आस्था पैदा कर दी। मेरे हिसाब से कलियुग में कलम की इन धुआंधार प्रतिभाओं ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि एड बनाने वाले कैसे एक एड के लिए रचानात्मक लोगों को लाखों-करोड़ों रुपए देते हैं। उनके साथ सभी तरह के आधुनिक संसाधन होते हैं। कई माह और सालों की मशक्कत के बाद जाकर वो एक हिट एड बना पाते हैं। ये ट्रक चलाने वाले संसाधन विहीन लोग तो बिना किसी की मदद के ऐसा सुंदर रचते हैं कि पढ़ने वाला मेरी तरह सोचने को मजबूर हो जाए। मेरी निगाह में ये लोग धरती के सबसे बड़े लेखक हैं। मेरी रिसर्च का दूसरा पड़ाव पहुंचा छोटे लोडरों पर। वहां तो मुझे और भी बढ़िया स्लोगन मिले। मैं भी बड़ा होकर ट्रक बनूंगा, पापा जी की अमानत, ऐ मालिक क्यों बनाया गाड़ी बनाने वाले को, घर से बेघर कर दिया गाड़ी चलाने वाले को, दुश्मनों के दिल की धड़कन, जरा कम पी मेरी रानी, महंगा है ईराक का पानी, बॉय फ्रैंड को भइया कहना मना है, राम युग में दूध मिला, कृष्ण युग में घी, इस युग में दारु मिली खूब दबाकर पी, हम गुंडों से नहीं शादीशुदा से डरते हैं, या खुदा मेरे दुश्मन को महफूज रखना, वरना मेरे मरने की दुआ कौन करेगा और बजा हौरन, निकल फौरन जैसे स्लोगनों ने तो मुझे निरा अंगूठाछाप साबित कर दिया। न जाने इन रचनाकारों में कितने अनपढ़ होंगे लेकिन एक बात तो मानने वाली है कि इन लोगों में कबीर बनने का जबर्दस्त माद्दा है। मैंने तय किया कि अब मैं दुनिया की इस सबसे बड़ी रिसर्च के सबसे छोटे वर्जन यानी आटो तक जाऊंगा। मैंने जासूस करमचंद्र वाली स्टाइल में पड़ताल की तो वहां भी मुझे सुंदर टाइटल मिले। समय से पहले भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता, मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, चलती है रोड पर बनकर हसीना, हार्न धीरे से बजाए हमारा देश सो रहा है जैसे स्लोगनों ने मेरे दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी। खैर मेरी रिसर्च अभी भी जारी है। रोज नए स्लोगन मिलते हैं और मैं उन्हें कागज के किसी कोने में उतराता रहता हूं। मेरा दावा है कि देश में इस वक्त इतने स्लोगन सड़क पर घूम रहे हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी किताब के पन्ने भी उन्हें लिखने के लिए कम पड़ जाए। देश-दुनिया, समाज, अच्छाई और बुराई की सीख देने वाले इन स्लोगनों पर अब जब कभी आपकी नजर जाए तो उन पर गौर जरूर फरमाइगा...।
Monday, 23 February 2015
जरा कम पी मेरी रानी, महंगा है इराक का पानी...
हाल में ही मैं किसी कार्यवश कानपुर से हरदोई गया था। सड़क पर बाइक चलाते वक्त अचानक एक लोडर मेरे बगल से लहराते हुए आगे निकल गया। मैं गुस्से से चिल्लाने ही वाला था कि तभी उसके पीछे लिखे एक स्लोगन से मेरी हंसी छूट गई। उस पर लिखा था घूर क्या रहे हो, मैं वहीं हूं...। मौके की नजाकत के हिसाब से गजब का स्लोगन था। गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी। उसी दौरान मेरे खुराफाती दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने तय किया कि क्यों न इन विरले स्लोगनों पर एक रिसर्च की जाए। मैंने तय किया कि अब जब भी कोई आकर्षक स्लोगन दिखेगा उसे तुरंत लिख लूंगा। मैंने पाया कि स्लोगनों की यह दुनिया जबर्दस्त रचनात्मक लोगों से भरी हुई है। इन लोगों की सोचने की क्षमता बड़ी गजब की है। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक मुझे ट्रकों के स्लोगन मिले। घूर मत पगली प्यार हो जाएगा, पलट कर देख ले जालिम, तमन्ना हम भी रखते हैं, अगर तू 70 पर चलता है तो हम भी 80 पर चलते हैं, समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, सावधान आगे वाला कभी भी खड़ा हो सकता है, बुरी नजर वाले तू सौ-सौ साल जिए, तेरे बच्चे ...पिए, जहर खा लो पर लड़कियों पर भरोसा मत करो, कुंवारा स्टॉफ, दुश्मनों के दिल की धड़कन, आएंगे दिन बहार के, ये नीम का पेड़ चंदन से कम नहीं, हमारा लखनऊ लंदन से कम नहीं, दम है तो क्रास कर नहीं तो बर्दाश्त कर, धीरे चलाने से बार-बार मिलेंगे, तेज चलाने से हरिद्वार मिलेंगे जैसे स्लोगनों ने मेरे मन में इनके रचयिताओं के लिए आस्था पैदा कर दी। मेरे हिसाब से कलियुग में कलम की इन धुआंधार प्रतिभाओं ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि एड बनाने वाले कैसे एक एड के लिए रचानात्मक लोगों को लाखों-करोड़ों रुपए देते हैं। उनके साथ सभी तरह के आधुनिक संसाधन होते हैं। कई माह और सालों की मशक्कत के बाद जाकर वो एक हिट एड बना पाते हैं। ये ट्रक चलाने वाले संसाधन विहीन लोग तो बिना किसी की मदद के ऐसा सुंदर रचते हैं कि पढ़ने वाला मेरी तरह सोचने को मजबूर हो जाए। मेरी निगाह में ये लोग धरती के सबसे बड़े लेखक हैं। मेरी रिसर्च का दूसरा पड़ाव पहुंचा छोटे लोडरों पर। वहां तो मुझे और भी बढ़िया स्लोगन मिले। मैं भी बड़ा होकर ट्रक बनूंगा, पापा जी की अमानत, ऐ मालिक क्यों बनाया गाड़ी बनाने वाले को, घर से बेघर कर दिया गाड़ी चलाने वाले को, दुश्मनों के दिल की धड़कन, जरा कम पी मेरी रानी, महंगा है ईराक का पानी, बॉय फ्रैंड को भइया कहना मना है, राम युग में दूध मिला, कृष्ण युग में घी, इस युग में दारु मिली खूब दबाकर पी, हम गुंडों से नहीं शादीशुदा से डरते हैं, या खुदा मेरे दुश्मन को महफूज रखना, वरना मेरे मरने की दुआ कौन करेगा और बजा हौरन, निकल फौरन जैसे स्लोगनों ने तो मुझे निरा अंगूठाछाप साबित कर दिया। न जाने इन रचनाकारों में कितने अनपढ़ होंगे लेकिन एक बात तो मानने वाली है कि इन लोगों में कबीर बनने का जबर्दस्त माद्दा है। मैंने तय किया कि अब मैं दुनिया की इस सबसे बड़ी रिसर्च के सबसे छोटे वर्जन यानी आटो तक जाऊंगा। मैंने जासूस करमचंद्र वाली स्टाइल में पड़ताल की तो वहां भी मुझे सुंदर टाइटल मिले। समय से पहले भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता, मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, चलती है रोड पर बनकर हसीना, हार्न धीरे से बजाए हमारा देश सो रहा है जैसे स्लोगनों ने मेरे दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी। खैर मेरी रिसर्च अभी भी जारी है। रोज नए स्लोगन मिलते हैं और मैं उन्हें कागज के किसी कोने में उतराता रहता हूं। मेरा दावा है कि देश में इस वक्त इतने स्लोगन सड़क पर घूम रहे हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी किताब के पन्ने भी उन्हें लिखने के लिए कम पड़ जाए। देश-दुनिया, समाज, अच्छाई और बुराई की सीख देने वाले इन स्लोगनों पर अब जब कभी आपकी नजर जाए तो उन पर गौर जरूर फरमाइगा...।
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Brilliant writing style humorous and articulative. http://mmohanmekap.com
ReplyDeleteधन्यवाद मोहन जी...
DeleteBrilliant writing style humorous and articulative. http://mmohanmekap.com
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