बड़ा सुंदर विषय है। तो
चलिए इसकी शुरूआत एक हास्य व्यंग से करते हैं। एक दिन घर से निकलते वक्त मुझसे
मेरी मां ने एक झाड़ू खरीदकर लाने के लिए कहा। मैंने कहा मां मैं तुम्हे झाड़ू
लाने वाले दिखता हूं। मेरी जैसी बुलंद शख्सियत का इंसान तुच्छ झाड़ू को छूकर खुद
को अपवित्र नहीं कर सकता...। ...जाओ दुनिया का ये सबसे वाहयात काम किसी और से
कराओ। ये कहकर मैं घर से बाहर आ गया। अभी थोड़ी दूर आगे ही बढ़ा था तभी मुझसे मेरे
मुहल्ले के बुजुर्ग छोड़ूलाल टकरा गए। हाथों में कई झाड़ुओं का गट्ठर टांगे हुए
उन्होंने दीनता के भाव से मेरी ओर देखा। मैंने कहा दादा ये क्या...। मैं एक झाड़ू
छूने की हिम्मत नहीं कर सकता और आप इतनी सारी झाड़ू ले आए। आपको शर्म नहीं आ रही।
उन्होंने बड़े प्यार से मेरी ओर देखा और बोले अभी तू मूरख है...। मैंने पूछा
क्यो...। झाड़ूओं के गट्ठर को जमीन पर रखकर उन्होंने कहा कि ये तो बड़ी पुनीत
वस्तु है...। तुझे मालूम है कि इस झाड़ू ने न जाने कितने बिगडैल पतियों के अहंकार
और दिमाग को ठिकाने लगा दिए। नशेड़ी, गंजेड़ी, भंगेड़ी समेत दुनिया की सभी तरह के तुच्छ जीवों को
सिर्फ ये ही कंट्रोल कर सकी है। ...नशे में बेसुध होकर जब एक नशेड़ी घर को लौटता
है तो सिर्फ झाड़ू से पिटाई ही उसे होश में लाती है। अब बेटा झाड़ू का दूसरा गुण
सुनो...। तुमने उस किताब का नाम तो सुना ही होगा...अरे वहीं जिसमें एक लड़का जादुई
झाड़ू पर उड़कर कहीं भी चला जाता था...। मैंने जवाब दिया हैरी पॉटर...। वो बोले
हां वही ससुरा पॉटर..। अब तुम बताओ उस विलायती लेखिका ने झाड़ू को कैसे महिमामंडित
कर दुनिया में बड़ा नाम कमा लिया। सभी की जुबान पर उसका और किताब का नाम आ गया। अरे
उसकी तो पिक्चर भी बन चुकी है। मैंने कहा हां मैंने देखी है। इस बीच बातचीत के
दौरान मोहल्ले में रहने वाले झक्कीलाल सड़क पर झाड़ू लगाते हुए नजर आ गए। छोड़ूलाल
ने उनकी ओर इशारा करते हुए कहा की गौर से देखो इस शख्स का। कभी घर मा झाड़ू नहीं
लगा ईस...। सड़क पर ऐसे झाड़ू मार रहा है मानो इससे बड़ा
स्वच्छता प्रेमी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ। ये अपने आपको ऐसे जताना चाहता है
मानो देश में स्वच्छता का अभियान यहीं चला रहा हो। और सुनो अपने देश में जब ऊपरी
लेनदेन (घूस) बहुत बढ़ गया था तब कुछ साल पहले मफलर पहने खांसता हुआ एक शख्स इस
देश में अवतरित हुआ। झाड़ू लेकर उसने अपने महाभ्रष्ट भाइयों के खिलाफ आंदोलन फूंक
दिया। घूसखोरों से त्रस्त जनता भी उसके साथ हो ली। हर तरफ झाड़ू ही झाड़ू नजर आने
लगी...। ऐसा लगा पूरा देश झाड़ूस्तान हो गया हो। खुद की फजीहत से बचने के लिए अपने
घूसखोर भाई भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। घूसखोरी में आस्कर पाने वाले भी मजबूरी
में नीति और ईमानदारी के रास्ते पर चलने लगे। इसी जादुई झाड़ू की बदौलत वो मफलर
वाला शख्स राजसिंहासन पर जा विराजा। इस बीच उसे अहसास हुआ कि उसने लोगों से जरूरत
से ज्यादा वादे कर दिए हैं जिन्हें पूरा कर पाना उसके बस की बात नहीं है। मौका
देखकर उस शख्स ने वो सिंहासन त्याग दिया। देश में हल्ला मचा भगोड़ा है... न जाने
क्या-क्या...। लेकिन वो तनिक भी नहीं घबराया। झाड़ू लेकर बस अपनी धुन में लगा रहा।
एक बार फिर चुनाव हुए और और उस शख्स की झाड़ू की आंधी ऐसी चली की बड़े-बड़े सूरमा
भोपाली उस आंधी में उड़ गए। जिन्होंने सपने में भी कभी हार के बारे में सोंचा नहीं
था उन्हें हकीकत में अपनी जमानत तक गंवानी पड़ गई। अब उसी झाड़ू की बदौलत वो शख्स
फिर उस सिंहासन पर जा विराजा है। विरोधियों का आलम तो ये है कि पहले जो विरोधी बस
में भरकर उसे गरियाने आते थे वो अब एक साइकिल भी आने लायक नहीं बचे। इस वक्त हर
तरफ नजर आ रही है तो बस झाड़ू ही झाड़ू...।
मैं दावे से कहता हूं इस
वक्त दुनिया में सबसे बड़ा ब्रांड झाड़ू है। हर कोई इसके साथ नजर आना चाहता
है...फिर तू क्यों दूर भाग रहा है रे मूरख। मैंने झक्कीलाल से क्षमा मांगी और दौड़
पड़ा ढेर सारी झाड़ू लेने को....।
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