शीर्षक पढ़कर चौंक गए ना। मैं भी चौंका था। मैंने यह चौकाऊ शीर्षक एक किताब की
दुकान के बाहर शोकेस में सलीके से सजाई गई एक किताब का देखा था। अचानक मेरे मन का
दीनहीन सुदामा का भाव चीख-चीख कर चिल्लाने लगा। मिल गए...मिल गए...कलियुग में
कृष्ण मिल गए। अब मुझे किताब वाले की दुकान द्वापर युग का कृष्ण का वह राजसी भवन
नजर आने लगा थी जहां सुदामा सुनो...द्वारपालों कन्हैया से कह दो...कि मिलने सुदामा
गरीब आ गया है...भजन गाकर और धक्के खाकर बड़ी कठिनाई से प्रवेश पा सके थे। पर
कलियुग में मेरे सामने ऐसा कुछ भी नहीं था। न तो द्वारपाल थे और न भजन गाने की
जरूरत। मैं झट से दुकान में घुस गया और दुकानदार से उस किताब के बारे में जानकारी
जुटाने लगा। मैंने कहा कि किसने लिखी है...दुकानदार ने जवाब दिया। अभी-अभी मार्केट
में कोई नया लेखक अवतरित हुआ है। आजकल डिमांड में है। मैंने कहा भाई कितने की है।
उसने जवाब दिया मात्र 1100 रुपए की। मैंने कहा भाई इतनी महंगी। दुकानदार
बोला...भाईसाहब आजकल अमीर बनने की सलाह कोई फोकट में नहीं देता है। कल को जब आप
लखपति या फिर करोड़पति बन जाएंगे तो उस लेखक को पूछेंगे क्या। मैं बोला भाई बात तो
तुम सही कह रहे हो...। मैंने सारी जेबे झाड़कर जैसे-तैसे 1100 रुपए दुकानदार को
दिए और उस परमपवित्र किताब को सीने से लगाए हुए घर आ गया। घर पर पत्नी ने पूछा
क्या लाए हो तो मैंने कहा अरी भाग्यवान अपनी किस्मत का पिटारा लाया हूं। तू अक्सर
पूछती थी न कि हम कब अमीर होंगे, कब कार से चलेंगे, कब विदेश घूमेंगे...। बस कुछ
दिन रुक जा सबकुछ बदलकर रख दूंगा। अब तू देखना अमेरिका के व्हाइट हाउस के बगल में
अपना प्लाट होगा तो लंदन के बर्मिंघम पैलेस के बगल में फ्लैट। तू निजी चार्टर
प्लेन से सब्जी खरीदने और बच्चों को स्कूल छोड़ने जाएगी। अब हम गर्मी में टूटे
कूलर को बार-बार ठीककर परेशान नहीं होंगे बल्कि स्विटजरलैंड की वादियों में बरफ पर
कुलाटी मारते हुए नजर आएंगे। मैंने झट से किताब पढ़ना शुरू कर दी। जैसे-जैसे मैं पन्ने पलटते
जा रहा था मेरी आंखों के आंसुओं का फ्लो बाढ़ का रूप ले रहा था। आंसू पोछ-पोछकर मैंने जैसे-तैसे 300 पन्ने की किताब पढ़ने में पूरे तीन दिन लगा दिए। तीसरे
दिन पत्नी ने पूछा कि प्राणनाथ अच्छे दिन कब आ रहे हैं। मेरी आंखें फिर छलछला उठी।
रुंधी आवाज से मैंने कहा हे प्रिय प्राणेश्वरी किताब में ऐसा कुछ भी नहीं था जो
मेरे काम आ सके। यार समय के साथ पैसा बर्बाद हो गया। हाय मेरे 1100 रुपए। चुन्नू
की फीस जमा करने जा रहा था...। फोकट में किताब पर खर्च कर दिए। पत्नी मुस्कुराई और
बोली अमीर तो आप हुए हैं...। मैंने कहा वो कैसे। पत्नी बोली अक्ल से। इस किताब ने
आपको सबक दिया है कि जो ऊपर से दिखे वह जरूरी नहीं है कि अंदर वैसा ही हो। साथ ही
पैसा कमाने के लिए शॉर्टकट नहीं अपनी मेहनत पर भरोसा करिए। बस इस ज्ञान के लिए
आपको कीमत कुछ ज्यादा चुकानी पड़ गई है। भइया तबसे मैं उस सीख को गांठ की तरह
बांधकर फिरता हूं।
Sunday, 24 April 2016
Wednesday, 20 April 2016
हैंडपंप की ओपनिंग
प्यासापुर गांव अचानक पूरी दुनिया के अखबारों
की सुर्खियों में छा गया। इसकी वजह बना एक कोलंबस टाइप का रिपोर्टर। गांव से
गुजरते हुए जब उसे प्यास लगी तो उसने हैंडपंप की तलाश की। काफी मशक्कत के बाद उसे
पता चला कि ब्रह्मा की सृष्टि उत्पत्ति से लेकर अब तक यहां हैंडपंप जैसी दुर्लभ वस्तु प्रकट नहीं हो सकी है। हो सकता हो शायद अभी तक किसी ने यज्ञ ही न किया हो। रिपोर्टर ने
तुरंत ये खबर अखबार की सनसनी बना दी। बीच सड़क पर गला फाड़-फाड़कर हॉकर ने आवाज दी
देखो रे देखो...इस गांव में आज तक हैंडपंप ही नहीं लगा।खबर बेचने के लिए उसने
मसाला लगाया कि यह इस तरह का यह देश का इकलौता गांव है। जबकि हकीकत में ऐसी हालत देश
के कई गांवों की है। जुगाड़ से चांद पर पहुंचने वाली जब बाकी दुनिया को यह पता चला
तो हर तरफ हैरत से लोग मुंह फाड़-फाड़ प्यासापुर गांव के प्यासों पर तरस खाने लगे।
बेचारे, कैसे पानी पीते होंगे, कहां से लाते होंगे, सुबह का काम कैसे करते होंगे
आदि शोककुल वक्तव्य प्यासापुर के प्यासों के नाम पर श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित
किए जाने लगे। अगले दिन नेताओं का भारीभरकम फौज-फाटा गांव पहुंच गया। यहां नेताओं
की कई वैराइटी मौजूद थी। काला, लंबा, गोरा, ठिगना और एक सर्वमान्य प्रजाति मोटा(शानदार
चमकती तोंद के साथ) । शायद नेताओं की यहीं एक ऐसी प्रजाति जो दुबली-पतली जनता को दूर
से उनके नेता होने का अहसास करा देती है। दुनिया की इस सबसे बड़ी सनसनी को कवर
करने के लिए देश के साथ विदेश की मीडिया भी यहां जुट गई। आज गांव का नजारा बदला
हुआ था। कोई रिपोर्टर और नेता सूखे कुएं के पास खड़े होकर बतिया रहे थे। तो कोई सूखे
खेत के पास। कोई पेड़ पर उल्टा लटककर कैमरे से गांव को कवर कर रहा था तो कोई जमीन
पर लेटकर वीडियो बना रहा था। हर कैमरे के सामने सफेद लकालक कुर्ते में छतरी के
नीचे खड़े नेताजी मिनरल वॉटर पी-पीकर सिस्टम को कोस रहे थे। तभी सत्ता पक्ष के एक
मंत्री जी एक ट्रैक्टर पर हैंडपंप लदवाकर गांव इस अंदाज में पहुंचे मानो लाखों बाढ़ पीडितों के लिए राहत सामग्री लेकर पहुंचे हों। विरोधियों को देखकर मंत्रीजी ने मुंह बिराया और हैंडपंप के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी। एक मजदूर चिल्लाया साहब जगह मिल गई। मंत्रीजी नारियल लेकर ऐसे दौड़े मानो युद्ध में बम गिराने जा रहे हों। मीडिया के सामने नारियल फोड़कर बोरिंग शुरू करवा दी गई। गांव
के प्रधान प्यासाराम का माथा प्यार से चूमते हुए मंत्रीजी बोले मीडिया में ये मामला तो
बहुत बाद में आया है आप इस पगले से पूछ लीजिए मैं तो गांव के लिए पहले ही हैंडपंप पास कर चुका
हूं। ये हमारी सरकार की उपलब्धि है और पिछली सरकार की विफलता। इस बार चुनाव में इसे
हम बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेंगे। आज ही आप लोगों के सामने हैंडपंप की
ओपनिंग होगी। तभी विपक्षी दल के नेता मंत्री जी पर डब्लूडब्लूई के पहलवानों की तरह
टूट पड़े। अबे तुम कैसे लोगे हैंडपंप लगवाने का श्रेय। ये हमारी उपलब्धि है। ऐ हट
ये मेरी बदौलत हुआ है। अरे जा...चल मेरी बदौलत लगा है...। सभी नेता बिल्लियों की तरह
लड़ते हुए एक-दूसरे पर टूट पड़े। किसी ने बोरिंग में लगे मजदूरों को भगा दिया।
किसी ने पाइप फेंक दिया। किसी ने हैंडपंप को खंड-खंड कर दिया। गुस्से में किसी ने प्यासाराम को मुक्का मार दिया। बेचारा वह भागकर
घर में ऐसे दुबक गया मानो गांव में गब्बर डाकू आ गए हों। मीडिया वाले मजे से ये नजारा कवर कर रहे थे। थकने के बाद सभी
नेता एक जगह बैठ गए। एक बुजुर्ग नेता ने कहा कि अब तो ये मामला कोर्ट ही तय करेगा
कि आखिर हैंडपंप लगवाने का श्रेय किसको मिलेगा। उसके पहले यहां हैंडपंप लग गया तो
देश में आंदोलन खड़ा कर देंगे। आग लगा देंगे। ईंट से ईंट बजा देंगे...जैसी धमकियां दी जाने लगीं। एक-एक कर सभी चले गए। रह गया तो बस बोरिंग के लिए खुदा
हुआ गड्ढा। सुना है कि प्यासापुर के प्यासो ने वह गड्ढा भर दिया है। और आपस में तय
किया है कि अब कउनो हैंडपंप लई कर आवे तो धरके गटही दबा दी जइहै।
Monday, 21 March 2016
ओए हीरिए गुझिया, मैं तेरा रांझा....
प्रिय गुझिया,
होली नजदीक आते ही मेरा और तुम्हारा प्रेम हीर और रांझा की तरह परवान चढ़ने लगता है। न जाने ऐसा क्या है तुम्हारी मिठास में जो ये दिल तुम्हें पाने के लिए मनचलों की तरह होली भर मचलता रहता है। सुना है की मेरी तरह तुम्हारे चाहने वाले छत्तीसगढ़ में तुम्हे कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की, आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु के रूप में चाहते हैं। मुझे आज भी याद है जब मैंने होश संभाला था तो मेरे घर के किचेन के कोने से पहली बार हमारी आंखें चार हुईं थीं। तुम अपनी सहेलियों मावा, रवा,चीनी, किशमिश, चिरौंजी, काजू और इलाइची के साथ अठखेलियां कर रही थीं और मैं तुम्हें ललचाई नजरों से देख रहा था। तुम शुभ्र धवल वस्त्रों(मैदा) में अलौकिक नजर आ रही थी। आहा, जब तुम घी में तैरने के लिए गई तो तुम्हारी सोंधी महक ने मुझे मदमस्त कर दिया। मैं रोमियों की तरह तुम्हारी जैसी जूलियट को पाने के लिए बेताब हो उठा। मैं भागता हुआ मां के पास पहुंचा और तुम्हारा साथ मांगा तो मां ने अभी नहीं, पूजा के बाद कहकर मुझे डपटकर खाली हाथ लौटा दिया। उस वक्त तो जी कर रहा था कि मैं शोले के वीरू की तरह टंकी पर चढ़कर तुम्हारा हाथ मांगू...पर क्या करूं पिता जी बुरी तरह पीटे न इसलिए मैं ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। पहली बार जब तुम मेरे हाथ में आई तो धरती, गगन, वायु, अग्नि, जल जैसे पांच तत्व हमारे अद्भभुत मिलन के साक्षी बने। जब तुम्हारी मिठास मेरी जीभ में पहुंची तो ये मन अऩंत आकाश में आनंद के लिए उड़ चला। बस तबसे मैं और तुम अलौकिक प्रेम में बंध गए। जवान होते-होते हमारे रिश्ते मिठास भरे रहे लेकिन कुछ साल पहले हमारे रिश्तों में महंगाई तलाक बनकर आ गई। मुई ने सबसे पहले तुम्हें तुम्हारी सहेलियों से ही जुदा कर दिया। पहले जहां तुम आठ-दस सहेलियों के साथ अपना साज-श्रृंगार करती थीं, वहीं अब ये संख्या एक-दो में ही सीमित हो गई है। कहीं-कहीं तो गुझिया में सिर्फ हवा ही निकलती है। गुस्सा तो बहुत आता है पर क्या करूं मजबूर हूं...मैं तुझे इस महंगाई से आजाद नहीं करा सकता। कई सालों से सुन रहा हूं कि सरकार इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है...भगवान जाने कब इस पर लगाम लगेगी और कब हमारा फिर से बैंड बाजा बजेगा। हमारे रिश्ते की दूरी में बची-कुछी कसर मिलावटखोरों ने पूरी कर दी। अब हम उस तरह नहीं मिल पाते, जैसे पहले मिलते थे। पिता जी कहते हैं महंगाई बहुत है...रेडीमेड गुझिया ले आओ...। घर में गुझिया बनाने की जरूरत नहीं है..। त्योहार है बचत करके चलो। मुझे ये सुनकर बहुत दुःख होता है...। मेरे तुम्हारे अमर प्रेम का ऐसा हश्र...सपने में भी नहीं सोचा था। हम तुम तो किचन में प्रेम के धागे से बंधे तो...फिर भला मैं बाहर से तुम्हारी सौतन को कैसे ला सकता हूं। घरवाली पर जो विश्वास होता है वो बाहरवाली पर नहीं हो सकता। खैर, माफ करना मजबूर हूं...पिता जी का आदेश मानना भी जरूरी है। डर है कि कहीं फिर पिटाई न हो जाए। इसलिए जा रहा हूं तुम्हारी सौतन लेने। नाराज न हो...पहले जहां तुम .पांच किलो वजन में हमारे घर को खुश करती थी वहीं अब रेडीमेड रूप में 250 ग्राम से दुखी करती हो। यानी तुम स्लिम हो गई और हम दुखी।...मेरी तरह तुम्हारे चाहने वाले इस देश के बहुत से लोग विरह की आग में जल रहे हैं। क्या करें हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि एडजस्ट करना पड़ रहा है। आज हर कोई एडजस्ट ही तो कर रहा है। अब होली आ गई है...फिर से तुम्हारी बहुत याद सता रही है....इसलिए दिल से ये पाती लिखने की कोशिश कर रहा हूं। .ईश्वर से प्रार्थना है कि मुई महंगाई को इस बार होलिका में जला दो और इस देश के हर देशवासी को गुझिया से मिला दो...।
तुम्हारा
चाहने वाला
रोमियो
Sunday, 20 March 2016
होली पर हुल्लड़ का निबंध
(पांचवीं पांच बार से फेल
हो रहे हुल्लड़ लाल जब छठी बार पेपर देने पहुंचे तो उन्होंने पेपर में
सिर्फ एक प्रश्न का ही उत्तर दिया। वह जवाब था होली पर अनोखा निबंध। लेखक के हाथ उस
निबंध की सत्यापित प्रतिलिपि लगी है,पेश है उस निबंध के अनकट अंश...।)
होली पर निबंध
1- हमका ई नाही मालूम कि होली कबसे खेली गई। पर इतना जरूर
मालूम है कि भक्त प्रहलाद जब अपनी बुआ होलिका की गोदी मा बैठा राहे तबही कउनो ससुर
आगी लगा दीस। चूंकि प्रहलाद भक्त राहे तो उइका भगवान बचा लीन। बुआ भगवान का नाही
पूजती राहे सो भगवान उन पर ध्यान नाही दीन और
वुई जल गई। तबही से ई होली की परंपरा पड़ी।
2- पूरे इंडिया मा सबसे अच्छी होली बृज मा खेली जावत है।एक
शख्स हमका बताईस राहे कि फाल्गुन के मौसम मा जब आदमी लोगन का दिमाग सटक जावत है तब
वहां की औरतें लाठियन से होली खेलती हैं। लाठी मार-मार कर वुई सटके हुए दिमाग का
तुरंत ठीक कर देती है। कहा जावत है कि
पत्नियन का ई होली बहुत पसंद है। इसी की तर्ज पर वुई साल भर अपने बिगड़े पति के
साथ होली खेलती है और दिमाग ठिकाने लगाती हैं।
3-अपने शोले पिक्चर के विलेन
गब्बर भाई का होली बहुत पसंद राहे। वुई बिचरऊ हमेशा पूछत राहे होली कब है..पर कउनो
जवाब नाही देवत राहे। उनके साथी सांभा और कालिया हमेशा अकेले मा उनका ई सवाल पर गरियावत
राहे।मौका पाकर जय और वीरू उनका निपटा दीन। बेचारे बिना होली खेले ही निकल लिए।
4- हमेशा सरकार होली से ठीक पहले ही बजट पेश करती है। ई के पीछे लॉजिक ई बता जावत
है कि त्योहार से पहले सरकार चेतावनी देवत है कि बेटा त्योहार मा ज्यादा पैसा न लुटाओ, पहले
टैक्स चुकओ। बेचारे आम आदमी की होली हर बार यही टेंशन मा ही गुजर जाती है।
5- भंगेडियों और नशेड़ियों का महापर्व है होली। पूरे साल इस प्रजाति के लोग इसका
बेसब्री से इंतजार करता है। होली वाले दिन तो कई लोग इतना ज्यादा लोड हुई जावत है
कि उनका सामान्य होए मा हफ्ता भर से ज्यादा बीत जावत है। नशेड़ी भाई इस पर्व पर एकजुटता का संदेश देते हैं। वे एकजुट होकर नशा करते हैं और समाज में फैली जातपात की
बुराईयो को दूर होने का संदेश देते हैं। भारत में
जितने बड़े भी नशेड़ी और गंजेड़ी प्रसिद्ध हुए उनको होली के माध्यम से ही
प्रसिद्धि मिली।
6- होली सरकारी अधिकारियन का भी प्यारा त्योहार है। होली के पास ही ई अधिकारी लोग
अचानक जागरूक हुई जावत है और घूमघूम कर मिलावट करे वाले और टैक्स चोरी करे वाले
लोगन का पकड़त है। दबी जुबान मा लोग काहत है कि ई सब ऊपर कमाई का चक्कर राहत है। पर
भइया खुशी ई बात की होत है कि कम से कम ई लोग एक महीना तो काम करत है।
7- होली मा दुई कुछ खास प्रजातियन के लोगन का ज्यादा प्रभाव माना जावत है। वुई
हैं देवर-भाभी और जीजा-साली। इन लोगन की होली बड़े उच्च किस्म की मानी गई है। इस
पर कई रचनाकारों ने बड़े-बड़े ग्रंथ रच डाले हैं। अब सवाल ई बात है कि आखिर वुई
कउन राहे जो इन लोगन की होली का सर्वश्रेष्ठ बताई दीस। अरे भइया ई धरती पर और लोग
भी तो हैं उनकी होली के बारे मा भी तो कछु बताओ।
8- होली एकमात्र ऐसा त्योहार है जेमा फटे-पुराने कपड़े, घिसे जूते और चप्पल की
सबसे ज्यादा डिमांड राहत है। ऐसी विशेषता और कउनो त्योहार मा नाही है।
9- होली मा ही सज्जन प्रजाति के लोग भी मजबूरी मा दुर्जन बन जावत है। का करे
बेचारे जब कउनो जबरन रंग के जावत है तो जवाबी कार्रवाई के लिए उन्हें मजबूरी मा
रंग रूपी हथियार उठाना पड़त है।
10- गुरुजी अब
लिखे का आइडिया हुई गा है खत्म। सुनो हमरे बप्पा है पुलिस मा, चाचा ट्रैफिक मा,
फूफा डॉक्टर, मौसा वकीलऔर मामा पत्रकार। ई के अलावा भी कई महकमन मा अपने खानदानी
सेट हैं। पांच बार से फेल हुई रहा हूं...। ई बार अगर तुम हमका फेल कियो तो समझ
लेयो हम तुम्हरी होली जरूर मना देब।
बाकी चरणस्पर्श। शेष पास होने के बाद... ।
(नोटःयह कॉपी पढ़ने का बाद गुरुजी का संसार से
वैराग्य उत्पन हो गया। वह नौकरी छोड़कर हिमालय की कंदराओं में तपस्या के लिए चले
गए हैं)
Wednesday, 16 March 2016
सब जग होरी, कंपू में होरा...
ब्रज में होली पर एक फाग बहुत प्रसिद्ध है। सब जग होरी, जा ब्रज होरा...यानी ब्रज की होली दुनिया में सबसे अलबेली है। कानपुर की होली के बारे में मैं यह फाग दोहराना चाहूंगा। यानी सब जग होरी, कंपू में होरा। अलमस्त, मनमौजी और अल्हड़ अंदाज की कानपुर की होली के क्या कहने। ब्रज के बाद भारत में यदि कोई दूसरा स्थान है जहां कई दिन लंबी होली खेली जाती है तो वो जगह है कानपुर। कंपू में होली औसतन आठ से दस दिनों की होती है। इस दौरान ठिठोली और मस्ती का जो दौर चलता है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। अजब-गजब मजाक और चुहलबाजी लोगों को पेटफाड़ू हंसी के लिए मजबूर कर देती है। इस दौरान कुछ जुमले फिजां में तैरने लगते हैं...। मेरा दावा है कि जो मस्ती इन जुमलों को सुनकर चढ़ती है वो होली खेलने में नहीं हैं। मैं जब छोटा था तो मुझे याद है मेरे मोहल्ले का सबसे शरारती युवक जिसका नाम फुल्लड़ है, वह मस्ती करना शुरू कर देता था। गब्बर वाले अंदाज में वो होली कब है, कब है होली, कब है...पूछना चालू कर देता था। वह एक शख्स से करीब 100 से 150 बार ये सवाल पूछने की कोशिश करता था। आखिर में वो शख्स ही हाथ जोड़कर कहता था मेरे पिता जी अब तुम ही बता दो कब है होली। इसी तरह वो जमीन पर पांच रुपए का सिक्का जमा देता था। जो शख्स भी उसे उठाने की कोशिश करता तो वो उसे पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाता...ई देखो...ई है सिक्का चोर...। बेचारा वो शख्स घबड़ा जाता और जल्दी में उसे होली का चंदा देकर निकल जाता। ऐसे ही मेरे दोस्त राजेश पर भी फिल्म शोले का नशा चढ़ जाता था। वह कनपुरिया अंदाज में शोले के डायलॉग तोड़-मरोड़ कर मौजमस्ती में जुट जाता था। ई तो सूरमा भोपाली बने फिर रहे हैं...जरा रंगों इन्हें, लुक जाओ...अंग्रेजों के जमाने के जेलर आ रहे हैं, अब तेरा क्या होगा कालिया..., ये पिचकारी हमे दे दे गब्बर..., मौसी जी आईएम रंगिंग, रंगिंग एंड रंगिंग...होली खेलिंग एंड खेलिंग, मौसी जी होरियारे देखिंग एंड भागिंग, भागिंग एंड भागिंग..., इतना सन्नाटा क्यों है भाई...कोई रंग क्यों नहीं खेल रहा, चल धन्नो..आज तुझे होली खेलनी है..., मोहल्ले में रंगने वाली पिचकारी आ चुकी है हरिराम..., आदमी तीन, गुब्बारे दो...बहुत नाइंसाफी है, सरदार मैंने आपकी गुझिया खाई है...आपसे गद्दारी नहीं करूंगा जैसे डॉयलॉगों से वह लोगों को गुदगुदाता था। होली के दौरान कानपुर में स्वांग (वेष धरना) रचकर मस्ती करने का अंदाज ही निराला है। कोई स्वामी जी का तो कोई नेताजी का रूप धरकर टोली के साथ घूमता है। स्वामी बने शख्स को बकायदा नकली बाल, वस्त्र, माला आदि पहनाकर तैयार किया जाता है। फिर उनका नामकरण किया जाता है। अक्सर उनके नाम हुल्लड़ बाबा, चिकाई गुरु, होरा गुरु और मौजी बाबा आदि रखे जाते हैं। बाबा अपने साथ 10-15 लोगों को लेकर मोहल्ले-मोहल्ले घूमते हैं। इस दौरान उन्हें जो मिलता है वह उसे बुलाकर बाबा वाले अंदाज में पूछते हैं...रंग काहे नहीं खेल रहे हो बच्चा, बाबा बिना रंगे ही चले जाएंगे तुम्हारे मोहल्ले से, आई जियो राजा बनारस, होरी मा होरा, बहुत बिंदास है ये छोरा, करो चिकाई, बाबा की टोली आई, आओ गुरु...हो जाओ शुरू जैसे जुमलों से सामने वाले को होली खेलने के लिए मजबूर कर देते हैं। इस तरह स्वांग वाले नेता के साथ टोलिया मोहल्ले-मोहल्ले पहुंचती है। आपसे मिलने आए हैं, भ्रष्ट नेता आए हैं, डालो रंग...पिलाओ भंग, कौन गुरु भई कौन गुरु...भंगड़ गुरु भाई भंगड़ गुरु, हममें है खोट, मत देना वोट, आपसे लुटने आए हैं...हमारे नशेड़ी नेता आए हैं जैसे नारे हवा में तैरते थे तो बिना हंसे रहा नहीं जाता था। नेता बना रंगा-पुता शख्स हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए यहीं कहता था भइया वोट नहीं नोट चाहिए...। कनपुरिया अंदाज का ये खास तरह का स्वांग अपने आप सबकी हंसी छुड़वा देता था। कानपुर में होरियारों की टोली की भी अपनी मस्ती है...। ढोल की थाप पर नाचते-गाते 20-25 लोगों की टोलियां जब हमारे मोहल्ले से गुजरती थी तो हम दौड़कर उन्हें देखने के लिए पहुंच जाते थे। पानी बचा लो, रंग डालो...चीखते हुए जब घर के नीचे से निकलती थी तो एक अलग तरह की खुशी मिलती थी। इसी दौरान कुछ जुमले भी उछलते थे...कबीरा सा..रा...रा..., आपसे मिलने आई है, होरियारों की टोली आई है..., लइया बड़ी करारी है, अपनी टोली भारी है, करो चिकाई, होली आई..., हम है कंपू के छइया, नाच ता..ता थइया..., खईके पान बनारस वाला..छोरा गंगा किनारे वाला... जैसे नारे गूंजते थे तो दिल उस टोली के साथ घूमने को मचल उठता था। हालांकि वैसी मस्ती अब नहीं दिखती लेकिन होली आते ही वो यादें जरूर रह-रहकर मुस्कुराने को मजबूर कर देती हैं। भाई मैं तो अब उन्हीं यादों से होली खेलता हूं...सोंचा कि इस बार आपको भी शामिल कर लूं... सो लिख मारा आपके लिए एक हुल्लड़ लेख। आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं...।
Saturday, 16 January 2016
सौभाग्यशाली भिखारी...
एक मंदिर के बाहर दो युवा भिखारी बैठकर आपस में चर्चा कर रहे थे कि भइया गजब हुई रहा है। बड़े-बड़े दानदाता करोड़ों रुपया ऐसे ही दान में दिए दे रहे हैं। (गुस्से में कटोरा पटकते हुए) यहां ससुर ए माई एक रूपया दे दे..मा ही जीवन कटा जा रहा है। एक भिखारी ने कहा बात तो तुम सही कहात हो गुरु...बट प्राब्लम इस बात की है कि ऐसे दानदाता मिलेंगे कहां...। तभी एक शख्स आता है और दोनों भिखारियों के कटोरे में एक-एक रुपया डालने लगता है। एक भिखारी कहता है क्या बाबू...इतनी महंगाई में भी तुम्हारा कलेजा नहीं पसीजता है। आज देखो...मक्खन, देशी घी, काजू, किशमिश के रेट कहां से कहां पहुंच गए हैं। अब कल की ही लो...हम दोनों सिर्फ पिज्जा और बर्गर खा कर ही सो गए थे। अब बताइए आप अपना बजट नहीं बढ़ाएंगे तो हम खाएंगे क्या। एक भिखारी एक अखबार निकाल कर एक खबर दिखाता है...ये देखो बाबूजी लोगों करोड़ों रुपया यूं ही दान में दिए दे रहे हैं और एक आप हो...एक रुपया दान से बढ़ने का नाम नहीं ले रहो हो...। दान देने वाला शख्स अखबार पढ़ता है...और झेंपते हुए जेब से दस-दस के दो नोट निकालकर दोनों के कटोरे में डालकर आगे बढ़ जाता है। एक भिखारी कहता है...भइया हो न हो अपना ये आइडिया हिट है...। आज इसी आइडिए पर काम किया जाए। दोनों भिखारी ऐसे ही करीब 10-15 लोगों को अखबार दिखाकर अच्छी खासी भीख की रकम जुटा लेते हैं। इस बीच एक शख्स आता है...और दोनों के कटोरे में एक-एक रुपया डालता है....। दोनों फिर वही राग अलापते हैं। वो शख्स अखबार पढ़ता है और फिर जोर-जोर से हंसने लगता है...। दोनों भिखारी पूछते हैं...का हुआ भाईजी...हम ने कुछ गलत कह दिया का...। वह शख्स कहता है नहीं...तुम लोग बिल्कुल सही हो...। चलो आज मैं तुम लोगों को इसका एक और पहलू बताता हूं...। मेरा मानना है कि दान ऐसा होना चाहिए जो एक हाथ से किया जाए तो दूसरे हाथ को पता न चले। इतना ढोल पीटकर दान करने की जरूरत क्या है भाई। क्या खुद को दुनिया का सबसे बड़ा दानवीर साबित करना है। दोनों भिखारी सहमति में सिर हिलाते हुए पूछते हैं...बट माई बिग ब्रदर ये बताओ...फिर ये रुपया जाता कहां है...। वो शख्स कहता है...गुड ...ये बताओ तुम दोनों पढ़े कितना हो...। एक भिखारी बोला...आई एम पोस्ट ग्रेजुएट...दूसरा बोला आई एम ग्रेजुएट विद आनर...। वह शख्स बोला...तभी तुम लोगों का आईक्यू लेवल हाई है...। अब सुनो...एक साल पहले टैक्स से बचने के लिए मुझे मेरे वकील ने सुझाया कि आप कुछ रकम दान दे दीजिए। उस दान की रकम से टैक्स में छूट मिल जाएगी। मैंने पूछा कि आखिर मैं किसको ये रकम दान दूं...तो उन्होंने मुझे एक सौभाग्यशाली भिखारी का नाम सुझाया...। मैं बड़ी रंगबाजी से वहां दान देने पहुंचा तो देखा बड़े-बड़े धन्ना सेठ दान की मोटी गठरी लेकर लाइन में लगे थे। मैंने पूछा भाई ये सौभाग्यशाली भिखारी है या फिर कोई करोड़पति। एक सेठ ने कहा धीरे बोलिए वह सुन लेंगे तो आपका दान कैंसिल कर देंगे। करीब दो-तीन घंटे बाद मेरा नंबर आया तो उस सौभाग्यशाली भिखारी ने मुझे दो तीन इनवेंस्टमेंट प्लान दिखाए...। मैंने एक प्लान पसंद किया तो उन्होंने तुरंत मेरा पैसा जमा कराया और 90 फीसदी रकम लौटाकर पर्ची पूरे दान की बना दी। मैं बड़ा खुश हो गया...यार दस फीसदी रकम देकर मैंने काफी टैक्स बचा लिया। अब ये बताओ हमेशा दानदाता जनवरी से मार्च के बीच में ही क्यों जागते हैं...साल में और भी कई महीने होते हैं...तब कोई नहीं दान देने के लिए निकलता। जरूरी नहीं है कि सभी ऐसा करते हो। तुम सौभाग्यशाली भिखारियों के चक्कर में न पड़ो...। फिलहाल तुम एक रुपए में ही काम चलाओ...। ये कहकर वह दोनों के कटोरे में एक रुपए डालने लगता है...दोनों भिखारी खुशी-खुशी वह भीख ले लेते हैं और थैक्स अ लॉट कहकर उस शख्स को विदा कर देते हैं।
Monday, 11 January 2016
कंप्यूटर की वंशावलि
झुमाऊपुरवा गांव के एक प्राइमरी स्कूल में बीएसए औचक निरीक्षण करने पहुंचे तो उनकी आंखें खुली रह गईं। एक पेड़ के नीचे पूरा स्कूल सिमटा नजर आया। बीएसए ने मोबाइल पर मुन्नी बदनाम हुई....गाना सुन रहे एक बच्चे से पूछा बेटा गुरुजी कहां है...तो जवाब मिला...काहे परेशान हो....गुरुजी अभी अहिए...अभई खाना खाए घरे गए हैं....एक घंटा बाद अहिए...। बीएसए ने पूछा अच्छा बेटा बताओ....यहां और कोई नहीं हैं। जवाब मिला नाही...हमरे गुरुजी ही प्रिंसिपल हैं, वहीं टीचर हैं और वही चपरासी...। और कउनो नाही है....। बीएसए ने पूछा तो फिर तुम लोग कैसे पढ़ते हो....बच्चे ने जवाब दिया....अरे पूरी मौज से पढ़ाई होत है....अब हमई का ही लइलो....पिछले साल कक्षा चार मा था.... हमरे पिताजी गुरुजी का दुई बोरा गेहूं दई आए राहे...इसे वुई बड़े खुश हुई गए और हमका कक्षा छह मा दाखिला दे दिया। बीएसए ने कहा बेटा एक महीना पहले सरकार ने यहां एक कंप्यूटर भेजा था....। वो कहां है...। बच्चा बोला...वुई कंप्यूटर तो गुरुजी अपनी लड़की के दहेज मा दई दीन....। हम लोगन का ओकी वंशावलि समझाईन राहे...। बीएसए ने गुस्से में पूछा क्या समझाया था...। बच्चा बोला...हड़का काहे रहे हो...जानत नाही हो का कि हमार बप्पा ई गांव के सबसे बड़े पहलवान है... उनसे कह देब तो तुम्हरी टांग तोड़कर हाथ मा धर देहे...। बीएसए ने प्यार से पूछा अच्छा बेटा बताओ तुम लोगों को कंप्यूटर के बारे में गुरुजी ने क्या समझाया था....। बच्चा सिर खुजाते हुए बोला...गुरु जी कहत हते....मुसटंडो ई देखो कंप्यूटर....ससुरा ई एक विलायती के दिमाग की खुराफात है। आज हम तोका ईकी वंशावलि बतावत हूं। कंप्यूटर के दुई लरिकवा हुए। एक का नाम राहे इंटरनेट और एक नाम गूगल....। गूगल जो राहे उइके बहुत संतानें हुईं। उइमा साइट सबसे बड़ा राहे, फिर ब्लॉग और फिर सोशल मीडिया अपने बप्पा का नाम खूब रोशन कर रहे हैं। साइट और ब्लॉग वालन के कउनो बच्चा नाही हुआ। वहीं पहले जहां राहे...आज भी वही हैं...। गुरुजी बतावत हते की वुई दोनों शादी नाही कीन...। हां सोशल मीडिया का खानदान जरूर बाढ़ि गवा। फेसबुक...व्हाट्सएप ...टिवट् र जैसे लरिकवा अब उनका नाम रोशन कर रहे हैं। सुना है कि ई लरकिवा कउनो फोटो और बात हो...सर्र...सर्र भेज देत हैं। इनकी बदौलत पूरी दुनिया मौज कर रही है....। ई ससुरे डाकियन की नौकरी खा गए...। गुरुजी काहत हते...कंप्यूटर पर फिल्म, गाना और गेम खेले के अलावा और कउनो अच्छा काम नाही होत है....। ई कारण वुई ई कंप्यूटर अपनी बिटिया के दहेज मा दे रहे हैं....। और कुछ पूछे का हो तो पूछ लो बाबूजी...। इतना सुनते ही बीएसए कोमा में चले जाते हैं....। सुना है अभी तक वह कोमा से बाहर नहीं निकले हैं। गुरुजी सब काम छोड़कर दिन-रात उनकी सेवा में जुटे हुए हैं।
Sunday, 10 January 2016
साहब ! प्लीज फायर ब्रिगेड भेज दो...
लल्लू पंसारी ने घटतौली और मिलावट से नंबर दो का माल खूब अंदर किया। हाल में उसने एक बहुत बड़ा गोदाम किराए पर लिया है। वहां...बेईमानी से जोड़ी गई खून पसीने की कमाई का पूरा माल स्टोर कर रखा है। एक रात 12 बजे नौकर फोन कर लल्लू को बताता है कि साहब गजब हुई गवा...। गोदाम मा आगी लाग गई है। वो...आप इस बार दिवाली पर बेचे के लिए जो घटिया पटाखे स्टोर करे राहो...ऊमा गलती से एक मजदूर की बीड़ी छुई गई। अब धूम-धड़ाम हुई रहा है....आगी बुझावे वाले भेजो....हाई दइया आपका सारा नंबर दुई का गेहूं जल गवा है। यह सुनते ही लल्लू के पैरो तले जमीन खिसक जाती है....। वह भागकर गोदाम पहुंचते है और वहां से फायर बिग्रेड को फोन मिलाते हैं....पेश हैं उनके वार्तालाप के अंश...।
फोन की घंटी ट्रिन-ट्रिन बजती है। एक शख्श फोन उठाता है।
दमकल कर्मीःहैलो...कौन बोल रहा है...
लल्लूः अरे साहब, यहां आग लग गई है जल्दी से गाड़ी भेजो...।
दमकल कर्मीःशांत हो जाइए....पहले लंबी सांस लीजिए खुद को स्थिर कीजिए...।
लल्लूः (लंबी सांस खींचकर) हां...साहब शांत हो गया।
दमकल कर्मीःअब पहले एक गिलास पानी पीजिए....।
लल्लूः बे कल्लू...एक गिलास पानी ला...जल्दी....(एक मिनट बाद पानी पीकर) हां...पी लिया....।
दमकल कर्मीः अब अपने मन को स्थिर कीजिए....। पांच मिनट का ध्यान धरिए...।
लल्लूः ...अबे तू दमकल वाला है या फिर कोई योगा वाला....यहां आग लगी हुई है और तू मुझे योग सिखा रहा है....।
दमकल कर्मीः चलिए...अच्छा ये बताइए....आपका नाम क्या है....।
लल्लूः हां....लल्लू पंसारी....।
दमकल कर्मीः(धीरे से...) चलिए अब ये बताइए...आपके माता-पिता का नाम क्या है....।
लल्लूः (गुस्से में) अम्मा का नाम मालती देवी, बप्पा का नाम गुलशन...बहन का नाम खुशबू...भाई का नाम गुलाब...और कुछ बे...।
दमकल कर्मीःमैच नहीं करता है....
लल्लूःक्या नहीं मैच करता है....(अचानक) अरे दमकल भेजो साहब यहां गोदाम के दो कमरे पूरी तरह से जल गए हैं....साहब।
दमकल कर्मीःआपका नाम आपकी फैमिली से मैच नहीं करता है। आपने मालती, गुलशन, खुशबू और गुलाब नाम बताया ये सब फूलों से जुड़े हुए नाम हैं....अब ये बताइए आपका नाम ही लल्लू क्यों रखा गया।
लल्लूःअरे गोली मार नाम को....दमकल भेज यहां सब जला जा रहा है।
दमकल कर्मीः चलिए अपना गोत्र बताइए....।
लल्लूःक्या मेरा पिंडदान करना है क्या.....(रोते हुए) हाय मैं बर्बाद हो रहा हूं....कोई बचा लो....।
दमकल कर्मीःआप फिर भावुक हो रहे हैं...खुश रहिए प्रभु सब अच्छा करेगा। चलिए ये बताइए आप मूलरूप से कहां के रहने वाले हैं।
लल्लूः(छाती पीटकर रोते हुए) ....मुसवापुर का....।
दमकल कर्मीःआपके खानदान से कौन इस शहर में आया था और शुरूआत में क्या काम डाला था...।
लल्लूः हाय मइया...मैं तो लुट गया....गोदाम का बस एक कमरा ही बचा है।...फायर बिग्रेड भेज दो साहब....।
दमकल कर्मीःचलिए आप ये बताइए....आप व्यापार किस चीज का करते हैं....।
लल्लूः हाय राम...उस कमरे में भी आग लग गई है साहब...प्लीज गाड़ी भेज दो....।
दमकल कर्मीः चलिए...ये न बताइए....ये बताइए आपके व्यापार का साल में टर्नओवर कितने का है...।
लल्लूः हाय...अम्मा मर गवा...लुट गवा....।
दमकल कर्मीः (धीरे से) अपनी मां को क्यो दोष दे रहे हैं...यह तो सब ऊपर वाले की माया है....।
लल्लूः(फोन से कोई जवाब नहीं आता है)
दमकल कर्मीः हैलो...हैलो...हैलो ....कोई है....
(थोड़ी देर बाद लल्लू का नौकर फोन उठाता है और जवाब देता है)
नौकरः सेठ जी का गोदाम पूरा जल गवा है....सेठ जी बेहोश हुई गए हैं....उन्हें अस्पताल ले गए हैं....। अब आवे की कोई जरूरत नाही....मौज करो।
दमकल कर्मीः गलती से आपका नंबर कस्टमर केयर में लग गया है....। ये नंबर काल सेंटर का है....धन्यवाद।
Saturday, 9 January 2016
सीनियर मंत्री की पोस्ट और इंटरव्यू
किसी राज्य में एक बार सीनियर मंत्री की पोस्ट के लिए पोस्ट ग्रेजुएट आवेदकों से आवेदन आमंत्रित किए गए। उस दौर के जाने-माने बेरोजगारों ने ईमानदारी से उस पोस्ट के लिए आवेदन किए और लिखित परीक्षा की तैयारियों में जुट गए। वहीं, मंत्रियों और अफसरों के सिफारिशी चेलों के नाम पैनल को सेलेक्शन के लिए चुपके से ईमेल कर दिए गए। लिखित परीक्षा में पढ़े-लिखे बेरोजगार शॉर्ट लिस्ट हो गए...ऐसा होना भी था, क्योंकि यह व्यवस्था शाश्वत काल से चली आ रही है और चलती रहेगी। फाइनल राउंड के लिए रह गए सिफारिशी चेले। इंटरव्यू लेने वाले पैनल के सामने सबसे बड़ी दुविधा थी कि दस में किसी एक सिफारिशी का चयन करना है। ऐसे में नौ मंत्रियों और अफसरों से कौन बुराई ले। वह इसलिए भी क्योंकि कई बार अपने काम भी उनसे पड़ते हैं....तब कैसे मुंह दिखाएंगे। तय हुआ कि जब तक इंटरव्यू न हो तब तक सब लोग अपने मोबाइल बंद रखेंगे। इंटरव्यू वाले दिन पैनल ने एक-एक कर आवेदकों को बुलाया...। पहले आवेदक से पूछा कितना पढ़े-लिखे हो...जवाब मिला सर, एमए पास हूं....। यहां किसने भेजा है...सर लेखा विभाग के बड़े बाबू ने। सीनियर मंत्री बनकर क्या करोगे....। सर, देश के विकास के लिए नई योजनाएं बनाऊंगा...इसे टूर हब के रूप में डेवलप करूंगा। ज्यादा से ज्यादा लोग यहां घूमने आएंगे और राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पैनल के सदस्य अपना सिर पकड़कर बैठ गए। कहा जाओ...हम जल्द तुम्हें रिजल्ट बता देंगे। इसी तरह श्रम मंत्री, कोतवाल, सीनियर मुंशी, हेड मुहर्रिर, सिंचाई मंत्री, नेता विपक्ष समेत नौ सिफारिशी आवेदक पहुंचते हैं। सभी देश की तरक्की और उन्नति के लिए लंबे-चौड़े प्लान रखते हैं और अपनी भविष्य की योजनाएं बताते हैं। पैनल सभी को विदा कर देता है। अंत में आखिरी आवेदक को बुलाया जाता है। आवेदक पैनल के सामने रंगबाजी से पहुंचा और कॉलर ऊंची कर बिना पूछे कुर्सी पर बैठ गया। युवक बोला...आप लोग कुछ पूछे इसके पहले मैं कुछ बातें साफ कर देना चाहता हूं। मैं दूर के रिश्ते में इस देश के राजा की मौसी के नाती का लड़का हूं। मैं पांचवी पांच बार फेल हूं। फर्जीवाड़े के मामले में दो बार जेल जा चुका हूं। मेरी नजर में भ्रष्टाचार में कोई खराबी नहीं है। अरे...ऊपरी कमाई से ही आदमी का लिविंग स्टैंडर्ड बढ़ता है। जब अच्छा कमाएगा तभी अच्छा सोच पाएगा। और हां...अब ये मत पूछिएगा कि इस राज्य की बेहतरी के लिए आपके पास क्या योजनाएं हैं...। मेरे पास जो भी योजनाएं हैं उनसे न केवल मैं जमकर माल कमाऊंगा बल्कि आप लोगों तक भी हिस्सा पहुंचाऊंगा। इस देश की सड़कों, पुलों और निर्माण से जुड़े सभी ठेकों को उठाने का राइट मैं आपको दूंगा। उसके बदले मैं 20 फीसदी खुला कमीशन लूंगा। और एक चीज और मान लीजिए किसी घोटाले में आप पकड़ जाए तो उससे बचाने की गारंटी भी मैं लूंगा। मैं अपने चेलों की जांच समिति से आपके भ्रष्टाचार की जांच कराऊंगा और कुछ समय बाद आपको क्लीन चिट भी दिला दूंगा। आप जितने भी लोग यहां बैठे हो...मैं सबसे वादा करता हूं कि मेरे सीनियर मंत्री बनते ही आप सबको आउट आफ टर्न प्रमोशन मिल जाएगा। साथ ही सरकारी फ्लैट और अन्य सुविधाएं अलग से। मैं आपसे वादा करता हूं कि यदि मैं एक साल भी इस कुर्सी में टिका रह गया तो मैं एक साल के भीतर अलग राज्य बना लूंगा और यह राज्य अपने राज्य में मिला लूंगा। आप जितने भी लोग यहां बैठो हो सबको मैं किसी न किसी महकमे का मंत्री बना दूंगा। फिर हम मिलकर जनता का खून चूसेंगे। पैनल के सदस्य खड़े होकर तालियां बजाने लगते हैं....गुड ....ऐसे ही दावेदार की तलाश थी हमें....। बधाई हो...हमारी तरफ से आप इस राज्य के सीनियर मंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार है। धन्य है यह राज्य जहां आप जैसी विभूति का जन्म हुआ। पैनल उसे कंधे पर बैठाकर राजा के सामने ले जाता है। वहा उसकी प्रतिभा का लंबा-चौड़ा गान होता है फिर उसे सीनियर मंत्री की कुर्सी में विराजमान करा दिया जाता है। सुना है कि उस सीनियर मंत्री ने पद संभालते ही सबसे पहले पैनल के सदस्यों को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डलवा दिया है। अब वह अकेले ही सारा माल अंदर कर रहा है।
Friday, 8 January 2016
भगवान ! ऐसा दामाद सबको मिले...
अखिल भारतीय सास पंचायत में देश भर की जानी-मानी सासों ने विचार रखे। एक सास के भाषण को अत्यंत उत्कृष्ट कोटि का माना गया और पुरस्कार दिया गया। पेश है उस अद्भुत भाषण के अंश...।
नमस्कार, मेरी बहनों, आज बहुत दिन बाद हम यहां इकट्ठा हो सके हैं। मैं आपको अपनी बहू के बारे में क्या बताऊं....। जब से वह आई है तबसे मेरे घर के हालात बदल गए हैं। महारानी सुबह छह बजे सोकर उठती है...बताओ ये भी कोई समय है। अरे सोकर उठना ही है तो सुबह चार बजे उठो। महारानी, बच्चों का नाश्ता जैसे-तैसे बनाकर स्कूल भेजती हैं। कई बार देर हो जाती है। कई बार इतना व्यस्त हो जाती है कि मेरे बेटे को आफिस बिना चाय और नाश्ते के ही जाना पड़ता है। शाम को बच्चो को पढ़ाने में ऐसा मशगूल हो जाती है कि खाना बनाने का ध्यान ही नहीं रहता। कई बार तो मेरा बेटा रात में 12 बजे खाना खाते हुए दिखता है। अब बताओ ये कोई खाने को समय होता है। दिन भर कुछ न कुछ खटर-पटर करती रहती है....। पता नहीं क्या काम किया करती है। मुझे तो लगता है कि वो मुझे काम के जरिए डिस्टर्ब करने की कोशिश करतीहै। मैंने बेटे को कई बार समझाने का प्रयास किया लेकिन वो पगला है कि सुनता ही नहीं। (मुंह बनाते हुए) न जाने पिछले जन्म में कोई पाप किए होंगे जो ऐसी बहू मेरे मत्थे आ मढ़ी। मुझे तो अब बेटे की मूर्खता पर काफी हंसी आती है। जो आदमी अपनी पत्नी को टाइट नहीं कर सकता है वह बच्चों पर क्या अनुशासन रखेगा। देखो...आगे क्या होता है। चलिए...अब मैं आपको बताती हूं अपने दामाद के बारे में। आहा...दामाद नहीं देवता कहिए। जबसे मेरी बेटी से उसकी शादी हुई है तबसे उसके भाग्य ही खुल गए हैं। दामाद जी रोज सुबह खुद उठकर उसके लिए चाय बनाते हैं....। बिटिया से कहते हैं तुम आराम से सोओ मैं सारे काम कर लूंगा। मेरी बिटिया दोपहर 12 बजे तक आराम से सोती है। आपको हैरत होगी कि नाश्ता और खाना भी दामाद जी खुद ही तैयार करते हैं। अपना टिफिन और बच्चों का टिफिन भी खुद ही बनाते हैं। सभी रिश्तेदारों का कहना है कि वो खाना बहुत लाजवाब बनाते हैं। आप उनके हाथ की दाल रोटी और सब्जी खा लो...(मुंह बनाते हुए) अंगुलियां चाटते रह जाओगे। पिछली बार मेरी बेटी के बर्थडे पर उन्होंने शाही पनीर और नान खुद बनाई थी....क्या गजब खाना था। लोग तारीफ करते हुए नहीं थके थे। कई बार तो वे अपने और बच्चे के कपड़े भी खुद धो देते हैं। बताओ ऐसा दामाद मिलेगा कहीं....(सभा में बैठी सासों ने तालियां बजाकर हर्ष जताया) । (गर्व से) जरूर...पिछले जन्म में मैंने मोती दान किए होंगे जो ऐसा हीरा दामाद मिले। भगवान ऐसा दामाद सबको दे....। सभा में जोरदार तालियों के साथ उनका अभिवादन होता है। साथ ही उन्हें दुनिया का सबसे बेहतर दामाद चुनने के लिए पुरस्कृत किया जाता है।
सच्चा पड़ोसी...!
भूलने की बीमारी से ग्रसित शौकीनचंद्र जी के पड़ोसी नया मोबाइल लाए तो अचानक तेज जलन की पीड़ा उन्हें अंदर से जलाने लगी। ये बात वे भूल नहीं पा रहे थे। पत्नी के ताने आग पर घी का काम करने लगे। ऐसा लाजिमी भी है। एक सच्चे पड़ोसी का कर्तव्य भी यही हैं, यदि कोई पड़ोसी नई वस्तु लाए तो दिन-रात पूरी लगन से जलना चाहिए और ईर्ष्या के साथ उसे तब तक कोसना चाहिए जब तक खुद कोई नई वस्तु न ले आओ या फिर पड़ोसी की लाई हुई वस्तु नष्ट न हो जाए। शौकीनजी ने कैसे तैसे उधार लेकर रकम जुटाई और अपने पड़ोसी से कई गुना अच्छा मोबाइल ले आए। नया मोबाइल लेकर शौकीनजी पड़ोसी के घर शान से पहुंचे और धमक के साथ सीना फुलाते हुए ऐसे बोले मानो अपने परम शत्रु को सरेंडर करने के लिए ललकार रहे हो...। रौंब के साथ मोबाइल दिखाते हुए शौकीन जी ने पड़ोसी से पूछा आप कितने में मोबाइल लाए थे, जवाब मिला 25000 शौकीनजी बोले भई मेरा मोबाइल तो 50,000 का है। (मुंह बनाकर पड़ोसी के मोबाइल की ओर देखते हुए...) सस्ते मोबाइल रखना हमें अच्छा नहीं लगता है। यह कहकर वह विजयी मुद्रा में घर को लौट आए। पत्नी से उन्होंने माथे पर विजयी तिलक लगवाया और कहा देख भाग्यवान आज कर दी उसकी ऐसी-तैसी। फोन देखकर श्रीमति जी ऐसे हर्षित हुईं मानो अब पूरे मोहल्ले में उनसे बड़ी कोई सेठानी न होगी। अचानक फोन की घंटी बजी....शौकीन जी पत्नी से बोले....जरा फोन उठाकर देखो तो किसकी कॉल है....। पत्नी फोन ले आई और बोली खुद ही बात कर लो मुझे फोन उठाना नहीं आता। शौकीन जी फोन निहारते रहे और अचानक बोले....फोन तो मुझे भी उठाना नहीं आता। पत्नी चिल्लाई...क्या जरूरत थी ऐसा फोन लाने की जो खुद ही नहीं उठा पा रहे हो...जाओ दुकानदार से पूछकर आओ...। शौकीन जी दुकानदार के पास जाते हैं और पूरा सिस्टम समझकर घर को लौटते हैं। अचानक फिर फोन की घंटी बजती है... पत्नी फोन उठाने को कहती है तो भुलक्कड़ शौकीनचंद्र दुकानदार द्वारा समझाया गया सिस्टम ही भूल जाते हैं और फोन नहीं उठा पाते हैं। उधर, बगल से पड़ोसी चिल्लाता है...अबे कौन है...जो इतनी रात में फोन नहीं उठा पा रहा है....। रात में नींद हराम किए हुए हैं....। अब घंट बजी तो समझ लेना बेटा....सीधे पुलिस लेकर घर आऊंगा। बेचारे शौकीन जी ये सुनते हैं तो घबरा जाते हैं। फोन को तकिया और कंबल में बांधकर जैसे-तैसे रात गुजारते हैं। अगले दिन सुबह वह फोन दुकानदार के पास ले जाते हैं और कहते हैं भाई इसको वापस कर लो....। दुकानदार हंसते हुए कहता है मेरी दुकान से बिकने के बाद कोई भी चीज वापस नहीं होती है। आप बाहर किसी और को बेच दीजिए। शौकीनजी कई लोगों से फोन बेचने के लिए संपर्क करते हैं लेकिन महंगा फोन खरीदने को कोई राजी नहीं होता है। अंत में कोई सलाह देता है कि आप ऐसे किसी शख्स से संपर्क करिए जो इस तरह का फोन चला रहा हो। अंत में थकहार कर शौकीन जी वह फोन लेकर अपने उस पड़ोसी के पास जाते हैं जिसको सबक सिखाने के लिए वह फोन लाए थे। पड़ोसी हंसते हुए पूछता है क्या हुआ शौकीन जी...। महंगा फोन चला नहीं पा रहे हैं क्या। शौकीन सर झुकाकर कहते हैं अब आप ही कोई रास्ता निकालो। पड़ोसी उस महाजन के अंदाज में बात करने लगता है जिसके पास मानो कर्ज में डूबा किसान जमीन गिरवी रखने आया हो...। वह कहता है कि देखिए...मेरे पास वैसे तो एक सस्ता फोन है...आपके महंगे फोन को खरीदने की मेरी हैसियत नहीं है। फिर भी मैं इसके पांच हजार रुपए लगा रहा हूं....। शौकीनजी को झटका लगता है...क्या 50,000 के फोन की कीमत सिर्फ पांच हजार। पड़ोसी कहता है ज्यादा कीमत लगाई है...न...क्या करूं आपकी परेशानी देखकर मेरा दिल नम हो गया....। और कोई मेरे पास आता तो मैं सिर्फ एक हजार रुपए ही लगाता। अब आप सोच लीजिए....। बेचारे शौकीन जी मरता क्या न करता वाली पोजीशन में आ गए और फोन बेचकर लौट आए....। अब सुना है उस पड़ोसी की पत्नी वो मोबाइल लेकर पूरे इलाके में ये गाते हुए फिर रही हैं कि मेरे पति ने मुझे बर्थडे पर 50,000 रुपए का ये फोन गिफ्ट किया है। हर कोई उस फोन को हैरत के साथ देखने पहुंच रहा है...। हर जगह उसकी रईसी की जय-जयकार हो रही है। बेचारे शौकीनजी फोन के लिए उधार लिए रुपए भर रहे हैं और उस घड़ी को कोस रहे हैं जब उन्होंने इस तरह का फैसला लिया था। शौकीनजी की श्रीमति अब ये कहती नहीं थकती कि कभी पड़ोसी और उसकी चीज से मत जलो...जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाओ...।
Wednesday, 6 January 2016
मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर...
एक बार मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर प्रतियोगिता के लिए दुनिया के जाने-माने कंजूसों को आमंत्रित किया गया। मंच पर कंजूसों ने एक-एक कर अपना परिचय देना शुरू किया। एक कंजूस ने कहा कि मैंने जीवन भर नहाया नहीं ताकि पानी और साबुन का खर्च बचाया जा सके। साथ ही एक बार भी दाढ़ी और बाल नहीं बनवाए ताकि नाई का खर्च बचा सकूं। ये जो कपड़े आप देख रहे हैं ये मेरी ससुराल की ओर से दिए गए हैं। मैंने आज तक एक भी जोड़ी नया कपड़ा भी नहीं खरीदा है। (जोर से चिल्लाते हुए )...है कोई मुझसे बड़ा कंजूस। तभी एक कंजूस चिल्लाते हुए आया...हुह ये तो कुछ भी नहीं है। मैं तीन पीढ़ियों से कंजूसी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। मेरे बाप दादा ने कभी मकान नहीं खरीदा। हम सड़क किनारे तंबू लगाकर रहते हैं। नहाना, बाल कटवाना तो दूर की बात है....हम दिन में एक बार ही खाना खाते हैं ताकि हमारा रिकॉर्ड कोई तोड़ न सके। इस बीच एक कंजूस तेजी से उछलता हुआ मंच पर आया और बोला ये तो कुछ भी नहीं है....। कंजूसी के चलते मेरे पिता जी तो मुझे इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहते थे। वो तो मेरे नाना जी पसीज गए और पूरा खर्च खुद उठा लिया और मैं आज आपके सामने हूं। आज मैं अपने पिताजी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। इस बीच एक कंजूस आता है और कुछ भी बोलता नहीं है....लोग हैरत में पड़ जाते हैं...आखिर ये बोल क्यों नहीं रहा है। इस बीच एक शख्स आता है और कहता है इनसे बड़ा कंजूस इस पूरी दुनिया में नहीं है....। मालूम हो क्यों....। क्योंकि ये बोलना भी फिजूलखर्ची समझते हैं....। इनका मानना है कि बोलने से ऊर्जा खर्च होती है...इससे ज्यादा खाने की जरूरत पड़ती है। इसलिए ये चुप रहते हैं और दो-तीन दिन में एक बार रोटी का एक टुकड़ा खाते हैं। कंजूसों की सभा में जोरदार तालियां बजने लगती है। हर कोई ताली बजाकर खुले दिल से तारीफ करने लगता है और कहता है भाई कंजूस हो तो ऐसा....। इस बीच एक जोरदार आवाज गूंजती है...ठहरिए... । सभागार में बैठे लोग मुड़कर पीछे देखते हैं....तो एक लड़का एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बैठाए हुए नजर आता है। लड़का कहता है ये मेरे दादाजी... इनसे बड़ा कंजूस इस धरती पर नहीं है...। अभी तक जितने भी गुण यहां बताए गए हैं वह सब गुण तो इनमें है ही...इसके अलावा इनका एक गुण ऐसा जो सबपर भारी है। वह गुण है पैदल न चलने का। इनका मानना है कि बोलने के अलावा पैदल चलने से भी ऊर्जा खत्म होती है। इसलिए ये पैदल ही नहीं चलते हैं...वो तो यह कंप्टीशन था इसलिए मैं एक मरीज से यह व्हीलचेयर उधार लेकर इन्हें यहां ले आया...। सभागार में फिर से जोरदार तालियां बजती हैं। लोग कहते हैं...क्या गजब कंजूस है...। दर्शन करने मात्र से ही हम कंजूस धन्य हो गए। इनकी कंजूसी वाली शिक्षा को हमें विश्व में फैलाना चाहिए ताकि कंजूसों को आदर्श पुरुष मिल सके। एनाउंसर विजेता का ऐलान करने ही वाला था...तभी एक शख्स तेजी से रोते हुए आया और मंच पर चढ़ गया...। बोले भाइयों और बहनों परिणाम घोषित करने से पहले जरा मेरी भी सुन लीजिए। अभी तक यहां पर जितने भी गुण है वो सब मेरे पिताजी में थे। उनका एक गुण ऐसा निकला जो आप सब पर भारी है। मेरे पिताजी कुछ दिन पहले बीमार पड़ गए थे...बिना दवा के उन्होंने कई दिन गुजार लिए। तबियत ज्यादा बिगड़ी तो मैं जबरन डॉक्टर लेकर पहुंच गया। पिताजी ने पूछा इलाज पर कितना खर्च आएगा...डॉक्टर ने कहा पांच लाख रुपए बाबूजी बस...यह सुनते ही उन्होंने मुझे बुलाया और कहा बेटा...मुझे रुपए प्राण से प्यारे हैं....इन्हें मैं किसी भी हाल में खर्च नहीं कर सकता। इसलिए मैं प्राण त्यागने जा रहा हूं...तो कंजूसों वाली प्रतियोगिता में जाकर मेरा पक्ष रख देना। इसके बाद पिताजी गुजर गए....। यह कहकर युवक फूटफूट कर रोने लगा। कंजूसों ने उन्हें सराहना शुरू कर दिया।... कहा क्या महान कंजूस थे, प्राण दे दिए...लेकिन टेट से फूटी फूटी कौड़ी नहीं निकाली। भई वाह...कंजूस हो तो ऐसा...मजा आ गया। आई लाइक इट...। कोई बोला एक आदर्श कंजूस महापुरुष ऐसा ही होना चाहिए। उनके इस त्याग को सदियां याद रखेंगी। कंजूसी के क्षेत्र में उनका एवरेस्ट सरीखा कीर्तिमान शायद ही इस दुनिया का कोई कंजूस तोड़ सके। सचमुच वो इस दुनिया की महान विभूति थे। जोरदार तालियों के साथ उन्हें मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर घोषित किया जाता है। युवक इनाम मांगता है तो आयोजक जवाब देते हैं इतने महान कंजूस को इनाम देकर हम उसकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते हैं। ...जाओ...यहां हम कंजूसी कर रहे हैं।
सिफारिशाचार्य और एकलव्य
कई हजार साल पहले किसी देश में सिफारिशाचार्य ने एक स्पोटर्स एकेडमी खोली। एक गरीब परिवार का होनहार बच्चा एकलव्य वहां दाखिला लेने पहुंचा तो सिफारिशाचार्य ने उसका कान उमेठ कर खेलते हुए बच्चों की ओर दिखाया। मूर्ख मेरा नाम डुबोएगा...बे...देख वो जो बच्चा बैटिंग कर रहा है, उसका नाम अर्जुन है...वो कलक्टर साहब का बेटा है...। वो जो बॉलिंग कर रहा है...उसका नाम दुर्योधन है। वो एडीएम साहब का बेटा है। यहां जो भी बच्चे खेल रहे हैं वे किसी मंत्री, नेता, अफसर और रईस की संतान है। (सीना फुलाते हैं) ये सभी होनहार खिलाड़ी है...इनके सामने तेरी कोई हैसियत नहीं...निरे गरीब। तेरे पास खाने का ठिकाना है नहीं और बनने चला है सचिन और धौनी...चल भाग यहां से। एकलव्य ने कहा गुरुजी बाहर तो बोर्ड लगा है कि यहां सिर्फ प्रतिभाओं को मौका मिलता है...किसी की सिफारिश लेकर मत आएं। सिफारिशाचार्य ने जवाब दिया...ये एकेडमी जिनके रहमो-करम पर चल रही हैं...ये उन्हीं का सुझाव था ताकि उनके दामन पर कोई दाग न लगे। यहां एक भी बच्चा बिना सिफारिश का नहीं है...चलो बेटा खिसक लो।
दो बरस बाद एक दिन एकलव्य के रिकॉर्ड खेल से दुनिया में तहलका मच जाता है। हर कोई उसकी वाहवाही करने लगता है। यह बात सिरफारिशाचार्य को मालूम पड़ती है तो उन्हें बड़ा दुख होता है। फिर उन्हें एक आइडिया क्लिक करता है। वो एक प्रेस वार्ता बुलाते हैं और बयान जारी करते हैं...भाइयों आपको यह जानकार हैरत होगी कि आज दुनिया में जिस महान खिलाड़ी की चर्चा हो रही है..उसका महान गुरु मैं हूं... (अपनी ओर गर्व से अंगुली करते हुए) । पत्रकार पूछते हैं...पर एकलव्य ने तो कभी आपकी एकेडमी से ट्रेनिंग ली नहीं...। सिफारिशाचार्य कहते हैं यहीं तो मेरी रियल ट्रेनिंग थी। वह मेरी एकेडमी में दाखिले के लिए आया था...मैंने पहली ही नजर में उसकी प्रतिभा को पहचान लिया था और उसे अपने यहां ट्रेनिंग देने से मना कर दिया था...ताकि वह अपनी सेल्फ प्रैक्टिस से अपनी प्रतिभा उभार सके...। और देखिए उस दिन के मेरे फैसले से आज वह आसमान पर है। मेरा प्यारा शिष्य एकलव्य...। इस बीच एक पत्रकार खड़ा होता है और कहता है हमने आपके बारे में पूरी जानकारी कर ली है...आप निहायत ही घटिया दर्जे के आदमी है। आपने अपने पूरे खेल जीवन में एक भी बार मेडल नहीं जीता....उल्टा हार-हारकर रिकॉर्ड बनाते रहे और देश का नाम बदनाम करते रहे। मैंने तो यहां तक सुना है कि आप चयनकर्ताओं के घर की सब्जी और खाने-पीने का सामान लाते थे...इसलिए आप को कई मौके मिले। खुद को रिटायर करने के बाद आपने मंत्रियों और अफसरों की चापलूसी शुरू कर दी। और सरकार से भारी रकम लेकर एकेडमी खड़ी कर ली। बहुत माल अंदर कर लिया। बिना सिफारिश के आपने एक भी एडमिशन नहीं दिया। बीते पांच साल में आपने एक भी स्टार देश को नहीं दिया। आपके यहां जितने बच्चे खेलते हैं उससे कई गुना अच्छा गली-मोहल्ले में खेलने वाले बच्चे हैं। बेचारा... एकलव्य आया तो उसे आपने ताना देकर भगा दिया। वो तो भला हो उस लगनशील गुरु का जिसने उसे सहारा दिया और निखारा। आज उसका नाम दुनिया में लिया जा रहा है तो चले आए अपना नाम छपवाने। ...चलो भाइयों कल के अखबार में इसकी पोल पट्टी खोलते हैं। सिफारिशाचार्य हाथ जोड़कर ऐसा न करने की प्रार्थना करते हैं...और वादा करते हैं कि अब किसी एकलव्य को वह नहीं लौटाएंगे और पूरी लगन से सिखाएंगे। पत्रकार एक बार मौका देकर लौट जाते हैं।
Tuesday, 5 January 2016
पागलखाने में चुनाव
कई हजार साल पहले की बात है। किसी देश में पगलापन पर रिसर्च कर रहे एक स्कॉलर को सूचना मिली की एक पागलखाने में रहने वाले पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो रहे हैं। यह किसी डॉक्टर की वजह से नहीं बल्कि हाल में ही आए एक लेटेस्ट पागल की वजह से हो रहा है। स्कॉलर तुरंत वहां निरीक्षण करने पहुंचे तो उन्हें चुनावी माहौल दिखा। उन्होंने डॉक्टर से पूछा तो वह उन्हें एक मैदान में ले गया। वहां एक चुनावी जनसभा चल रही थी। सभी पागल शांति के साथ कतारों में बैठ हुए थे। चबूतरे पर खड़ा एक शख्स जोर-जोर से नेताओं की तरह भाषण दे रहा था। वह कह रहा था भाइयों इतने वर्षों तक हमारे अधिकारों की अनदेखी होती रही। हमें पागल कहकर समाज की मुख्य धारा से किनारे लगा दिया। सरकार ने कभी हमारी बेहतरी के लिए नहीं सोचा। हमारे लिए आज तक कोई नई योजना नहीं बनी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं आ गया हूं...देखता हूं आपको अधिकारों से कौन वंचित करता है। अभी एक घंटे बाद वोटिंग शुरू होनी है। आप अपना वोट देकर मुझे जिताइए....। मैं वादा करता हूं कि मेरे हर पागल भाई के पास अपना रोजगार और घर होगा। सरकारी योजनाओं में आपको प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण मिलेगा। सरकारी बड़े पदों पर भी आप ही सुशोभित होंगे। (जोरदार तालियां बजती हैं) वह शख्स हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकारता हुआ आगे बढ़ जाता है। स्कॉलर डॉक्टर से पूछता है यह कौन है। डॉक्टर बताता है ये पगलालाल है। एक महीने पहले ये यहां आया था। इसके आने के बाद करीब 50-60 बड़े पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गए। उनमें से कई तो ऐसे केस थे, जिनके ठीक होने की उम्मीद ही हमने छोड़ दी थी। स्कॉलर ने पूछा इनका ऊपरी माला (पागलपन) किस वजह से ढह गया। जेलर ने हंसते हुए बताया कि किसी जमाने में वह अपने इलाके के बहुत बड़े नेता थे। उन्होंने जनता को कई बार पागल किया। वादे किए कि मैं जीता तो ये दिला दूंगा..वो बनवा दूंगा...। इसको उखाड़ फेकूंगा...बदलाव ले आऊंगा। वगैरह-वगैरह...। जनता ने इन्हें दो बार कुर्सी दिलाई। जीतने के बाद ये जनता को ही भूल गए। खूब माल अंदर किया। बड़े-बड़े घोटालों में नाम आया...। तीसरी बार जब ये चुनाव लड़ने चले तो जनता ने इन्हें सबक सिखा दिया। मतगणना के दौरान जैसे-जैसे मतपेटियां खुलती गईं वैसे-वैसे इनके पागलपन का स्तर बढ़ता गया। इन्हें पूरे चुनाव में सिर्फ एक वोट मिला..वो वोट इनका ही था। इनके घर वालों ने भी इन्हें वोट नहीं दिया। उधर, फाइनल रूप से चुनाव परिणाम घोषित हुए, इधर फाइनली इनका मेंटल फ्यूज उड़ गया। बस, भइया इसके बाद इनके शुभ चरण यहां पड़े और इनके चुनावी भाषण सुनकर कई पागल अचानक ठीक हो गए। इस बीच दो-तीन पागल हल्ला मचाते हुए गुजरे पगलालाल फिर हार गए हैं...। डॉक्टर और स्कॉलर दौड़ते हुए देखने पहुंचे तो पगलालाल चिल्लाते हुए मिले...बेईमानी हुई है...मैं पुर्नमतदान की मांग उठाऊंगा। मामला आयोग तक ले जाऊंगा...। मैं नहीं हार सकता....। पागलखाने में फिर चुनाव करवाऊंगा...।
Monday, 4 January 2016
मिलावट की मिलावटी जांच रिपोर्ट
किसी जमाने में एक राजा की 60 वर्ष की आयु में शादी तय हुई। राज्य में रिंग सेरेमनी का आयोजन रखा गया। इसके लिए 20 लाख स्वर्ण मुद्राओं का बजट जारी किया गया। प्रधानमंत्री ने 10-20 फीसदी कमीशन लेकर डीजे, फिल्म स्टार, कैटर्स, इवेंट कंपनी वालों को इंतजाम का ठेका दे दिया। उस दौर के सबसे घटिया होटल में फाइव स्टार का बोर्ड लगवाकर मेहमानों को रुकवा दिया गया। पूरी रात मेहमान पानी और खाने के लिए रिरयाते रहे लेकिन होटल वालों ने उन्हें कुछ नहीं दिया। अगले दिन सुबह सेरेमनी शुरू होने से पहले ही मेहमान खाने पर भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े। अचानक सभी ने एक-एक कर चिल्लाना शुरू कर दिया।...ये क्या दाल में तो कंकड़ हैं...देखो मेरा एक दांत टूट गया। अरे...ये दूध तो पानी से भी पतला है...उल्टी हो रही है। आक थू...ये पनीर है या फिर कुछ और। अरे ये देखो आटे की रोटियों की जगह भूसे की रोटियां बनाई गई हैं। मेहमानों को गुस्सा देख राजा भड़क गए। उन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री को बुलाया और पूछा ये क्या हो रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा सर, मेहमान खाने में मिलावट की शिकायत कर रहे हैं। राजा ने प्रधानमंत्री को तुरंत एक जांच कमेटी बनाकर दोषियों को जल्द हाजिर करने के निर्देश दिए। प्रधानमंत्री ने कहा महाराज, जांच कमेटी के ऊपर करीब पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं का खर्च आएगा। राजा ने तुरंत राजकोष से पैसा जारी करवा दिया। करीब एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री ने दरबार में मामले की जांच रिपोर्ट पेश की। वह रिपोर्ट इस प्रकार है।
आदरणीय महाराज,
हमारी 15 सदस्यीय जांच कमेटी में प्रधानमंत्री को छोड़कर 14 लोगों के नाम गोपनीय रखे गए हैं ताकि हमें कोई पहचान न सके। आपकी सेरेमनी से लिए गए फूड सैंपल की हमने गहन जांच की तो ये परिणाम सामने आए।
दाल में कंकड़- हमने पाया कि इस मामले में कैटर्स, थोक और फुटकर विक्रेता पूरी तरह से चंदन की तरह स्वच्छ हैं। जिस किसान के खेत से यह दाल चली थी वहां एक दिन पहले आंधी आई थी,संभव है कि उस आंधी में कई कंकड़ आ गए हो और दाल में मिल गए हों। इसके लिए पूरी तरह से आंधी जिम्मेदार है।
दूध में पानी- दूध की पड़ताल करते हुए हमारी टीम मिल्कीपुर पहुंची। वहां हमने उस गाय के दूध के सैंपल लिए जिसकी सप्लाई आपकी सेरेमनी में हुई थी। हमें पता चला कि उस दिन गाय ने जरूरत से ज्यादा पानी पी लिया था। इस कारण दूध में पानी की मात्रा बढ़ गई। इस मिलावट के लिए वह गाय पूरी तरह से दोषी है। इसी तरह पनीर में भी जो खामियां मिली थीं, उसके लिए भी वह गाय ही उत्तरदायी है।
भूसे वाली रोटियां - जब हम गेहूं की जांच करने खेत में पहुंचे तो पता चला कि जिस मशीन से गेहूं काटा जाता है उसमें कुछ तकनीकी खामी थी। इस कारण गेहूं और भूसा मिक्स हो रहा था। इस मिलावट के लिए किसान को दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा। यह सब उस मशीन की तकनीकी खामी के कारण हुआ। इसलिए दोषी भी वही है।
महाराज जांच के दौरान आपकी ओर से जारी किया गया बजट खत्म हो गया है। अब प्रधानमंत्री अपनी जेब से हमारा खर्च उठा रहे हैं। यदि जांच को आगे बढ़ाना है तो पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं का अतिरिक्त बजट जारी करें ताकि विस्तार से मामले की गहराई में पहुंचा जा सके।
यह पढ़कर राजा अपना माथा पकड़ लेते हैं और कहते हैं बंद करो ये जांच-वाच। प्रधानमंत्री धीरे से कहता है सर, बीते कई दिनों से लगातार काम करने के कारण मैं एक दिन भी छुट्टी नहीं ले पाया हूं। मैं अपने पुरखों की आत्मा की तृप्ति के लिए गया जाना चाहता हूं, मुझे कृपया 15 दिन की छुट्टी दे दीजिए। राजा सहमति दे देते हैं।
अगले दिन प्रधानमंत्री के खाते में शहर के व्यापारियों और कैटर्स की ओर से पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं जमा कराई जाती हैं। एक कार उन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए गिफ्ट में मिलती है। साथ ही फॉरन टूर के लिए 15 दिन का फैमिली टिकट भेजा जाता है। प्रधानमंत्री परिवार के साथ विदेश रवाना हो जाते हैं।
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