Wednesday 6 January 2016

सिफारिशाचार्य और एकलव्य




कई हजार साल पहले किसी देश में सिफारिशाचार्य ने एक स्पोटर्स एकेडमी खोली।  एक गरीब परिवार का होनहार बच्चा एकलव्य वहां दाखिला लेने पहुंचा तो सिफारिशाचार्य ने उसका कान उमेठ कर खेलते हुए बच्चों की ओर दिखाया। मूर्ख मेरा नाम डुबोएगा...बे...देख वो जो बच्चा बैटिंग  कर रहा है, उसका नाम अर्जुन है...वो  कलक्टर साहब का बेटा है...। वो जो बॉलिंग  कर रहा है...उसका  नाम दुर्योधन है। वो एडीएम  साहब का बेटा है। यहां जो भी बच्चे खेल रहे हैं वे किसी मंत्री, नेता, अफसर  और रईस  की संतान है। (सीना फुलाते हैं) ये सभी होनहार  खिलाड़ी  है...इनके  सामने तेरी कोई हैसियत नहीं...निरे   गरीब।  तेरे पास खाने का ठिकाना है नहीं और बनने चला है सचिन और धौनी...चल  भाग यहां से। एकलव्य ने कहा गुरुजी बाहर तो बोर्ड लगा है कि यहां सिर्फ प्रतिभाओं को मौका मिलता है...किसी  की सिफारिश लेकर मत आएं।  सिफारिशाचार्य ने जवाब दिया...ये  एकेडमी जिनके रहमो-करम पर चल रही हैं...ये  उन्हीं का सुझाव  था ताकि  उनके  दामन पर कोई दाग न लगे। यहां एक भी बच्चा बिना सिफारिश  का नहीं है...चलो  बेटा खिसक लो।
दो बरस बाद एक दिन एकलव्य के रिकॉर्ड खेल से दुनिया  में तहलका  मच जाता  है। हर कोई  उसकी वाहवाही  करने लगता है। यह बात सिरफारिशाचार्य  को मालूम पड़ती है तो उन्हें बड़ा दुख होता है। फिर उन्हें एक आइडिया  क्लिक करता है। वो एक प्रेस वार्ता बुलाते हैं और बयान जारी करते हैं...भाइयों  आपको यह जानकार  हैरत होगी कि आज दुनिया  में जिस महान खिलाड़ी  की चर्चा हो रही है..उसका  महान गुरु मैं हूं... (अपनी ओर गर्व से अंगुली करते हुए) । पत्रकार पूछते हैं...पर  एकलव्य ने तो कभी आपकी  एकेडमी  से ट्रेनिंग ली नहीं...।  सिफारिशाचार्य  कहते हैं यहीं  तो मेरी रियल ट्रेनिंग थी। वह मेरी एकेडमी  में दाखिले  के लिए आया था...मैंने  पहली ही नजर में उसकी प्रतिभा को पहचान  लिया था और उसे अपने यहां ट्रेनिंग देने से मना कर दिया था...ताकि   वह अपनी  सेल्फ प्रैक्टिस से अपनी  प्रतिभा उभार  सके...।  और देखिए  उस दिन के मेरे फैसले से आज वह आसमान  पर है। मेरा प्यारा शिष्य एकलव्य...। इस बीच एक पत्रकार खड़ा होता है और कहता है हमने आपके बारे में पूरी जानकारी  कर ली है...आप  निहायत  ही घटिया  दर्जे के आदमी है। आपने अपने पूरे खेल जीवन में एक भी बार मेडल नहीं जीता....उल्टा  हार-हारकर  रिकॉर्ड बनाते रहे  और देश का नाम बदनाम करते रहे। मैंने तो यहां तक सुना है कि आप चयनकर्ताओं के घर की सब्जी और खाने-पीने का सामान  लाते थे...इसलिए  आप को कई मौके  मिले। खुद को रिटायर  करने  के बाद आपने मंत्रियों और अफसरों  की चापलूसी  शुरू  कर दी। और सरकार  से भारी  रकम  लेकर  एकेडमी  खड़ी कर ली। बहुत माल अंदर कर लिया। बिना सिफारिश  के आपने एक भी एडमिशन  नहीं दिया। बीते  पांच  साल में आपने एक भी स्टार देश को नहीं दिया।  आपके  यहां जितने बच्चे खेलते हैं उससे  कई गुना अच्छा गली-मोहल्ले में खेलने वाले बच्चे हैं। बेचारा... एकलव्य आया तो उसे आपने ताना देकर भगा दिया।  वो तो भला हो उस लगनशील  गुरु का जिसने  उसे सहारा  दिया  और निखारा।  आज उसका  नाम दुनिया  में लिया जा रहा है तो चले आए अपना नाम छपवाने। ...चलो भाइयों  कल के अखबार  में इसकी पोल पट्टी खोलते हैं।  सिफारिशाचार्य हाथ जोड़कर  ऐसा  न करने की प्रार्थना करते हैं...और  वादा  करते हैं कि अब किसी  एकलव्य को वह नहीं लौटाएंगे  और पूरी लगन से सिखाएंगे।  पत्रकार एक बार मौका देकर लौट जाते हैं।

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