Friday 8 January 2016

सच्चा पड़ोसी...!


भूलने की बीमारी से ग्रसित शौकीनचंद्र जी के पड़ोसी  नया मोबाइल  लाए तो अचानक तेज जलन की पीड़ा उन्हें अंदर से जलाने लगी। ये बात वे भूल नहीं पा रहे थे। पत्नी के ताने आग पर घी का काम करने लगे। ऐसा लाजिमी भी है। एक सच्चे पड़ोसी का कर्तव्य भी यही हैं, यदि कोई पड़ोसी नई वस्तु लाए तो दिन-रात पूरी लगन से जलना चाहिए  और ईर्ष्या के साथ उसे तब तक कोसना चाहिए जब तक खुद कोई नई वस्तु न ले आओ या फिर पड़ोसी की लाई हुई वस्तु नष्ट न हो जाए। शौकीनजी  ने कैसे तैसे उधार लेकर रकम जुटाई और अपने पड़ोसी से कई गुना अच्छा मोबाइल ले आए। नया मोबाइल  लेकर शौकीनजी पड़ोसी के घर शान से पहुंचे और धमक के साथ सीना फुलाते हुए ऐसे बोले मानो अपने परम शत्रु को सरेंडर करने के लिए ललकार  रहे हो...।  रौंब के साथ मोबाइल दिखाते हुए शौकीन जी ने पड़ोसी से पूछा आप कितने में मोबाइल लाए थे, जवाब मिला 25000  शौकीनजी बोले भई मेरा मोबाइल तो 50,000 का है। (मुंह बनाकर पड़ोसी के मोबाइल की ओर देखते हुए...) सस्ते मोबाइल रखना हमें अच्छा नहीं लगता है। यह कहकर वह विजयी मुद्रा में घर को लौट आए। पत्नी से उन्होंने माथे पर विजयी तिलक लगवाया और कहा देख भाग्यवान आज कर दी उसकी ऐसी-तैसी। फोन देखकर श्रीमति जी ऐसे हर्षित हुईं मानो अब पूरे मोहल्ले में उनसे बड़ी कोई सेठानी न होगी। अचानक फोन की घंटी बजी....शौकीन  जी पत्नी से बोले....जरा  फोन उठाकर देखो तो किसकी कॉल है....।  पत्नी फोन ले आई और बोली खुद ही बात कर लो मुझे फोन उठाना नहीं आता। शौकीन जी फोन निहारते रहे और अचानक बोले....फोन  तो मुझे भी उठाना नहीं आता। पत्नी चिल्लाई...क्या जरूरत  थी ऐसा फोन लाने की जो खुद ही नहीं उठा पा रहे हो...जाओ  दुकानदार से पूछकर आओ...। शौकीन जी दुकानदार के पास जाते हैं और पूरा सिस्टम समझकर घर को लौटते हैं। अचानक फिर फोन की घंटी बजती है... पत्नी फोन उठाने को कहती है तो भुलक्कड़ शौकीनचंद्र दुकानदार द्वारा समझाया गया सिस्टम ही भूल जाते हैं और फोन नहीं उठा पाते हैं। उधर, बगल से पड़ोसी चिल्लाता है...अबे  कौन है...जो  इतनी रात में फोन नहीं उठा पा रहा है....। रात में नींद हराम किए हुए हैं....। अब घंट बजी तो समझ लेना बेटा....सीधे पुलिस लेकर घर आऊंगा। बेचारे शौकीन जी ये सुनते हैं तो घबरा जाते हैं। फोन को तकिया और कंबल में बांधकर जैसे-तैसे रात गुजारते हैं। अगले दिन सुबह वह फोन दुकानदार के पास ले जाते हैं और कहते हैं भाई इसको वापस कर लो....। दुकानदार हंसते हुए कहता है मेरी दुकान से बिकने के बाद कोई भी चीज वापस नहीं होती है। आप बाहर किसी और को बेच दीजिए। शौकीनजी  कई लोगों से फोन बेचने के लिए संपर्क करते हैं लेकिन महंगा फोन खरीदने को कोई राजी नहीं होता है। अंत में कोई सलाह देता है कि आप ऐसे किसी शख्स से संपर्क करिए जो इस तरह का फोन चला रहा हो। अंत में थकहार कर शौकीन जी वह फोन लेकर अपने उस पड़ोसी के पास जाते हैं जिसको सबक सिखाने के लिए वह फोन लाए थे। पड़ोसी हंसते हुए पूछता है क्या हुआ शौकीन जी...। महंगा फोन चला नहीं पा रहे हैं क्या। शौकीन सर झुकाकर कहते हैं अब आप ही कोई रास्ता निकालो।  पड़ोसी उस महाजन के अंदाज में बात करने लगता है जिसके पास मानो कर्ज में डूबा किसान जमीन गिरवी रखने आया हो...। वह कहता है कि देखिए...मेरे  पास वैसे तो एक सस्ता फोन है...आपके महंगे फोन को खरीदने की मेरी हैसियत नहीं है। फिर भी मैं इसके पांच हजार रुपए लगा रहा हूं....। शौकीनजी  को झटका लगता है...क्या 50,000 के फोन की कीमत सिर्फ पांच हजार। पड़ोसी कहता है ज्यादा कीमत लगाई है...न...क्या  करूं  आपकी परेशानी देखकर मेरा दिल नम हो गया....।  और कोई मेरे पास आता तो मैं सिर्फ एक हजार रुपए ही लगाता। अब आप सोच लीजिए....। बेचारे शौकीन जी मरता क्या न करता वाली पोजीशन में आ गए और फोन बेचकर लौट आए....। अब सुना है उस पड़ोसी की पत्नी वो मोबाइल लेकर पूरे इलाके  में ये गाते हुए फिर रही हैं कि मेरे पति ने मुझे बर्थडे पर 50,000 रुपए का ये फोन गिफ्ट किया है। हर कोई उस फोन को हैरत के साथ देखने पहुंच रहा है...। हर जगह उसकी रईसी की जय-जयकार हो रही है। बेचारे शौकीनजी  फोन के लिए उधार लिए रुपए भर रहे हैं और उस घड़ी को कोस रहे हैं जब उन्होंने इस तरह का फैसला लिया था। शौकीनजी  की श्रीमति अब ये कहती नहीं थकती  कि कभी पड़ोसी और उसकी चीज से मत जलो...जितनी  चादर हो उतने ही पैर फैलाओ...।

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