बात जून की है। अखबार के दफ्तर में लगातार काम और तनाव भरे पलों ने मन में थोड़ी बेचैनी सी पैदा कर दी थी। जी करता था सबकुछ छोड़कर हिमालय की कंदराओं में तपस्या के लिए चला जाऊं। एक दिन नेट पर सर्च करते हुए मैंने हरिद्वार की एक फोटो देखी। मन की जिज्ञासा बढ़ी तो मैंने चटपट हरिद्वार से जुड़ी जानकारियां खंगालनी शुरू कर दी। पता चला कि हिन्दी में हरिद्वार का अर्थ हरि "(ईश्वर)" का द्वार होता है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। 3139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैं:-उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग| आज ये वें स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति तीन वर्षों में और १२वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुंभ आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थ यात्री यहां दर्शन को आते हैं। वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है। यहां हिन्दू त्योहारऔर पर्वों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन को आते हैं। मैंने तय किया हो न हो मुझे वहां जाना चाहिए। मैंने 23 जून को दफ्तर में चार दिन छुट्टी की अरजी दे दी। संयोगवश छुट्टी तुरंत मंजूर भी हो गई। मैं अगले दिन सुबह 4.30 बजे बस से पत्नी और पांच साल के बेटे आयुष्मान के साथ हरिद्वार को रवाना हो गया। 24 जून की रात 8.30 बजे हमारी बस हरिद्वार पहुंची। ठंडी हवा के झोंकों और भक्तों की भारी भीड़ ने हमारा स्वागत किया। होटल में सामान रखने के बाद मन ने कहा चलो गंगा मइया के दर्शन कर लिए जाए। हमारा होटल स्टेशन के पास था और हर की पौडी की वहां से दूरी करीब 2-3 किमी. थी। हम पैदल ही निकल पड़े। मैंने सड़क के दोनों किनारों की दुकानों पर नजर मारी तो मुझे अतुल्य भारत की झलक नजर आई। कहीं डोसा, इडली, उत्पम की दुकान साउथ का अहसास करा रही थी तो कहीं भुने भुट्टों के ठेले यूपी और दिल्ली का। कहीं, रंगबिरंगी साड़ियां और दुपट्टे रंगीले राजस्थान की ओर ध्यान खींच रहे थे तो कहीं लकड़ी की छड़ी और खिलौने सहारनपुर से जोड़ रहे थे। वाह क्या अद्भुत नजारा था। हम आश्चर्य से चीजों को देखते हुए धीरे-धीरे हर की पौडी की ओर बढ़ रहे थे। हाथी दांत की अंगूठी और हार, लकड़ी और चमड़े के हाथी और घोड़े, नक्काशीदार छड़ियां, रत्नों से जड़ी सिंदूरदानी, दक्षिणावर्ती शंख, सीप, कौड़िया, पद्म चक्र और गंगा जल ले जाने के लिए खूबसूरत गंगाजल पात्र मन को ललचा रहे थे। सभी की फरमाइशो को जैसे-तैसे पूरा करते हुए हम आखिर रात 10.15 बजे हर की पौडी पहुंच गए।
(क्रमश…)
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