Monday, 11 January 2016

कंप्यूटर की वंशावलि



झुमाऊपुरवा  गांव के एक प्राइमरी स्कूल में बीएसए  औचक निरीक्षण करने पहुंचे तो उनकी आंखें खुली रह गईं। एक पेड़ के नीचे पूरा स्कूल सिमटा नजर आया। बीएसए ने मोबाइल पर मुन्नी बदनाम हुई....गाना  सुन रहे एक बच्चे से पूछा बेटा गुरुजी  कहां है...तो  जवाब  मिला...काहे  परेशान हो....गुरुजी  अभी अहिए...अभई  खाना खाए घरे गए हैं....एक  घंटा बाद अहिए...। बीएसए  ने पूछा अच्छा बेटा बताओ....यहां  और कोई नहीं हैं। जवाब मिला नाही...हमरे  गुरुजी  ही प्रिंसिपल हैं,  वहीं टीचर हैं और वही चपरासी...।  और कउनो नाही है....। बीएसए ने पूछा तो फिर तुम लोग कैसे पढ़ते हो....बच्चे ने जवाब दिया....अरे पूरी मौज से पढ़ाई होत है....अब  हमई का ही लइलो....पिछले   साल कक्षा चार मा था.... हमरे पिताजी  गुरुजी का दुई बोरा गेहूं दई आए राहे...इसे  वुई बड़े खुश हुई गए और हमका कक्षा छह मा दाखिला दे दिया। बीएसए  ने कहा बेटा एक महीना पहले सरकार ने यहां एक कंप्यूटर भेजा था....।  वो कहां है...। बच्चा बोला...वुई  कंप्यूटर तो गुरुजी  अपनी लड़की के दहेज मा दई दीन....। हम लोगन का ओकी वंशावलि समझाईन राहे...।    बीएसए ने गुस्से में पूछा क्या समझाया था...। बच्चा बोला...हड़का  काहे रहे हो...जानत  नाही हो का कि हमार बप्पा ई गांव के सबसे बड़े पहलवान  है... उनसे कह देब तो तुम्हरी टांग तोड़कर हाथ मा धर देहे...।  बीएसए ने प्यार से पूछा अच्छा बेटा बताओ तुम लोगों को कंप्यूटर के बारे में गुरुजी  ने क्या समझाया  था....।  बच्चा सिर खुजाते हुए बोला...गुरु जी कहत हते....मुसटंडो  ई देखो कंप्यूटर....ससुरा  ई एक विलायती  के दिमाग की खुराफात है। आज हम तोका ईकी वंशावलि  बतावत हूं। कंप्यूटर के दुई लरिकवा  हुए। एक का नाम राहे इंटरनेट  और एक नाम गूगल....।  गूगल जो राहे उइके बहुत संतानें हुईं। उइमा साइट  सबसे बड़ा राहे, फिर ब्लॉग और फिर सोशल मीडिया  अपने बप्पा का नाम खूब रोशन कर रहे हैं। साइट और ब्लॉग वालन के कउनो बच्चा नाही हुआ। वहीं पहले जहां राहे...आज  भी वही हैं...। गुरुजी बतावत हते की वुई दोनों शादी नाही कीन...।  हां सोशल मीडिया का खानदान  जरूर  बाढ़ि  गवा। फेसबुक...व्हाट्सएप ...टिवट् र जैसे लरिकवा अब उनका नाम रोशन कर रहे हैं। सुना है कि ई लरकिवा  कउनो फोटो और बात हो...सर्र...सर्र भेज देत हैं। इनकी बदौलत  पूरी दुनिया मौज कर रही है....। ई ससुरे डाकियन की नौकरी खा गए...। गुरुजी   काहत हते...कंप्यूटर पर फिल्म, गाना और गेम खेले के अलावा और कउनो अच्छा काम नाही होत है....। ई कारण वुई ई कंप्यूटर अपनी बिटिया के दहेज मा दे रहे हैं....। और कुछ पूछे का हो तो पूछ लो बाबूजी...।  इतना सुनते ही बीएसए  कोमा में चले जाते हैं....। सुना है अभी तक वह कोमा से बाहर नहीं निकले हैं। गुरुजी सब काम छोड़कर दिन-रात उनकी सेवा में जुटे हुए हैं।

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