एक बार मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर प्रतियोगिता के लिए दुनिया के जाने-माने कंजूसों को आमंत्रित किया गया। मंच पर कंजूसों ने एक-एक कर अपना परिचय देना शुरू किया। एक कंजूस ने कहा कि मैंने जीवन भर नहाया नहीं ताकि पानी और साबुन का खर्च बचाया जा सके। साथ ही एक बार भी दाढ़ी और बाल नहीं बनवाए ताकि नाई का खर्च बचा सकूं। ये जो कपड़े आप देख रहे हैं ये मेरी ससुराल की ओर से दिए गए हैं। मैंने आज तक एक भी जोड़ी नया कपड़ा भी नहीं खरीदा है। (जोर से चिल्लाते हुए )...है कोई मुझसे बड़ा कंजूस। तभी एक कंजूस चिल्लाते हुए आया...हुह ये तो कुछ भी नहीं है। मैं तीन पीढ़ियों से कंजूसी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। मेरे बाप दादा ने कभी मकान नहीं खरीदा। हम सड़क किनारे तंबू लगाकर रहते हैं। नहाना, बाल कटवाना तो दूर की बात है....हम दिन में एक बार ही खाना खाते हैं ताकि हमारा रिकॉर्ड कोई तोड़ न सके। इस बीच एक कंजूस तेजी से उछलता हुआ मंच पर आया और बोला ये तो कुछ भी नहीं है....। कंजूसी के चलते मेरे पिता जी तो मुझे इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहते थे। वो तो मेरे नाना जी पसीज गए और पूरा खर्च खुद उठा लिया और मैं आज आपके सामने हूं। आज मैं अपने पिताजी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। इस बीच एक कंजूस आता है और कुछ भी बोलता नहीं है....लोग हैरत में पड़ जाते हैं...आखिर ये बोल क्यों नहीं रहा है। इस बीच एक शख्स आता है और कहता है इनसे बड़ा कंजूस इस पूरी दुनिया में नहीं है....। मालूम हो क्यों....। क्योंकि ये बोलना भी फिजूलखर्ची समझते हैं....। इनका मानना है कि बोलने से ऊर्जा खर्च होती है...इससे ज्यादा खाने की जरूरत पड़ती है। इसलिए ये चुप रहते हैं और दो-तीन दिन में एक बार रोटी का एक टुकड़ा खाते हैं। कंजूसों की सभा में जोरदार तालियां बजने लगती है। हर कोई ताली बजाकर खुले दिल से तारीफ करने लगता है और कहता है भाई कंजूस हो तो ऐसा....। इस बीच एक जोरदार आवाज गूंजती है...ठहरिए... । सभागार में बैठे लोग मुड़कर पीछे देखते हैं....तो एक लड़का एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बैठाए हुए नजर आता है। लड़का कहता है ये मेरे दादाजी... इनसे बड़ा कंजूस इस धरती पर नहीं है...। अभी तक जितने भी गुण यहां बताए गए हैं वह सब गुण तो इनमें है ही...इसके अलावा इनका एक गुण ऐसा जो सबपर भारी है। वह गुण है पैदल न चलने का। इनका मानना है कि बोलने के अलावा पैदल चलने से भी ऊर्जा खत्म होती है। इसलिए ये पैदल ही नहीं चलते हैं...वो तो यह कंप्टीशन था इसलिए मैं एक मरीज से यह व्हीलचेयर उधार लेकर इन्हें यहां ले आया...। सभागार में फिर से जोरदार तालियां बजती हैं। लोग कहते हैं...क्या गजब कंजूस है...। दर्शन करने मात्र से ही हम कंजूस धन्य हो गए। इनकी कंजूसी वाली शिक्षा को हमें विश्व में फैलाना चाहिए ताकि कंजूसों को आदर्श पुरुष मिल सके। एनाउंसर विजेता का ऐलान करने ही वाला था...तभी एक शख्स तेजी से रोते हुए आया और मंच पर चढ़ गया...। बोले भाइयों और बहनों परिणाम घोषित करने से पहले जरा मेरी भी सुन लीजिए। अभी तक यहां पर जितने भी गुण है वो सब मेरे पिताजी में थे। उनका एक गुण ऐसा निकला जो आप सब पर भारी है। मेरे पिताजी कुछ दिन पहले बीमार पड़ गए थे...बिना दवा के उन्होंने कई दिन गुजार लिए। तबियत ज्यादा बिगड़ी तो मैं जबरन डॉक्टर लेकर पहुंच गया। पिताजी ने पूछा इलाज पर कितना खर्च आएगा...डॉक्टर ने कहा पांच लाख रुपए बाबूजी बस...यह सुनते ही उन्होंने मुझे बुलाया और कहा बेटा...मुझे रुपए प्राण से प्यारे हैं....इन्हें मैं किसी भी हाल में खर्च नहीं कर सकता। इसलिए मैं प्राण त्यागने जा रहा हूं...तो कंजूसों वाली प्रतियोगिता में जाकर मेरा पक्ष रख देना। इसके बाद पिताजी गुजर गए....। यह कहकर युवक फूटफूट कर रोने लगा। कंजूसों ने उन्हें सराहना शुरू कर दिया।... कहा क्या महान कंजूस थे, प्राण दे दिए...लेकिन टेट से फूटी फूटी कौड़ी नहीं निकाली। भई वाह...कंजूस हो तो ऐसा...मजा आ गया। आई लाइक इट...। कोई बोला एक आदर्श कंजूस महापुरुष ऐसा ही होना चाहिए। उनके इस त्याग को सदियां याद रखेंगी। कंजूसी के क्षेत्र में उनका एवरेस्ट सरीखा कीर्तिमान शायद ही इस दुनिया का कोई कंजूस तोड़ सके। सचमुच वो इस दुनिया की महान विभूति थे। जोरदार तालियों के साथ उन्हें मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर घोषित किया जाता है। युवक इनाम मांगता है तो आयोजक जवाब देते हैं इतने महान कंजूस को इनाम देकर हम उसकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते हैं। ...जाओ...यहां हम कंजूसी कर रहे हैं।
Wednesday, 6 January 2016
मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर...
एक बार मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर प्रतियोगिता के लिए दुनिया के जाने-माने कंजूसों को आमंत्रित किया गया। मंच पर कंजूसों ने एक-एक कर अपना परिचय देना शुरू किया। एक कंजूस ने कहा कि मैंने जीवन भर नहाया नहीं ताकि पानी और साबुन का खर्च बचाया जा सके। साथ ही एक बार भी दाढ़ी और बाल नहीं बनवाए ताकि नाई का खर्च बचा सकूं। ये जो कपड़े आप देख रहे हैं ये मेरी ससुराल की ओर से दिए गए हैं। मैंने आज तक एक भी जोड़ी नया कपड़ा भी नहीं खरीदा है। (जोर से चिल्लाते हुए )...है कोई मुझसे बड़ा कंजूस। तभी एक कंजूस चिल्लाते हुए आया...हुह ये तो कुछ भी नहीं है। मैं तीन पीढ़ियों से कंजूसी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। मेरे बाप दादा ने कभी मकान नहीं खरीदा। हम सड़क किनारे तंबू लगाकर रहते हैं। नहाना, बाल कटवाना तो दूर की बात है....हम दिन में एक बार ही खाना खाते हैं ताकि हमारा रिकॉर्ड कोई तोड़ न सके। इस बीच एक कंजूस तेजी से उछलता हुआ मंच पर आया और बोला ये तो कुछ भी नहीं है....। कंजूसी के चलते मेरे पिता जी तो मुझे इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहते थे। वो तो मेरे नाना जी पसीज गए और पूरा खर्च खुद उठा लिया और मैं आज आपके सामने हूं। आज मैं अपने पिताजी की परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। इस बीच एक कंजूस आता है और कुछ भी बोलता नहीं है....लोग हैरत में पड़ जाते हैं...आखिर ये बोल क्यों नहीं रहा है। इस बीच एक शख्स आता है और कहता है इनसे बड़ा कंजूस इस पूरी दुनिया में नहीं है....। मालूम हो क्यों....। क्योंकि ये बोलना भी फिजूलखर्ची समझते हैं....। इनका मानना है कि बोलने से ऊर्जा खर्च होती है...इससे ज्यादा खाने की जरूरत पड़ती है। इसलिए ये चुप रहते हैं और दो-तीन दिन में एक बार रोटी का एक टुकड़ा खाते हैं। कंजूसों की सभा में जोरदार तालियां बजने लगती है। हर कोई ताली बजाकर खुले दिल से तारीफ करने लगता है और कहता है भाई कंजूस हो तो ऐसा....। इस बीच एक जोरदार आवाज गूंजती है...ठहरिए... । सभागार में बैठे लोग मुड़कर पीछे देखते हैं....तो एक लड़का एक बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर बैठाए हुए नजर आता है। लड़का कहता है ये मेरे दादाजी... इनसे बड़ा कंजूस इस धरती पर नहीं है...। अभी तक जितने भी गुण यहां बताए गए हैं वह सब गुण तो इनमें है ही...इसके अलावा इनका एक गुण ऐसा जो सबपर भारी है। वह गुण है पैदल न चलने का। इनका मानना है कि बोलने के अलावा पैदल चलने से भी ऊर्जा खत्म होती है। इसलिए ये पैदल ही नहीं चलते हैं...वो तो यह कंप्टीशन था इसलिए मैं एक मरीज से यह व्हीलचेयर उधार लेकर इन्हें यहां ले आया...। सभागार में फिर से जोरदार तालियां बजती हैं। लोग कहते हैं...क्या गजब कंजूस है...। दर्शन करने मात्र से ही हम कंजूस धन्य हो गए। इनकी कंजूसी वाली शिक्षा को हमें विश्व में फैलाना चाहिए ताकि कंजूसों को आदर्श पुरुष मिल सके। एनाउंसर विजेता का ऐलान करने ही वाला था...तभी एक शख्स तेजी से रोते हुए आया और मंच पर चढ़ गया...। बोले भाइयों और बहनों परिणाम घोषित करने से पहले जरा मेरी भी सुन लीजिए। अभी तक यहां पर जितने भी गुण है वो सब मेरे पिताजी में थे। उनका एक गुण ऐसा निकला जो आप सब पर भारी है। मेरे पिताजी कुछ दिन पहले बीमार पड़ गए थे...बिना दवा के उन्होंने कई दिन गुजार लिए। तबियत ज्यादा बिगड़ी तो मैं जबरन डॉक्टर लेकर पहुंच गया। पिताजी ने पूछा इलाज पर कितना खर्च आएगा...डॉक्टर ने कहा पांच लाख रुपए बाबूजी बस...यह सुनते ही उन्होंने मुझे बुलाया और कहा बेटा...मुझे रुपए प्राण से प्यारे हैं....इन्हें मैं किसी भी हाल में खर्च नहीं कर सकता। इसलिए मैं प्राण त्यागने जा रहा हूं...तो कंजूसों वाली प्रतियोगिता में जाकर मेरा पक्ष रख देना। इसके बाद पिताजी गुजर गए....। यह कहकर युवक फूटफूट कर रोने लगा। कंजूसों ने उन्हें सराहना शुरू कर दिया।... कहा क्या महान कंजूस थे, प्राण दे दिए...लेकिन टेट से फूटी फूटी कौड़ी नहीं निकाली। भई वाह...कंजूस हो तो ऐसा...मजा आ गया। आई लाइक इट...। कोई बोला एक आदर्श कंजूस महापुरुष ऐसा ही होना चाहिए। उनके इस त्याग को सदियां याद रखेंगी। कंजूसी के क्षेत्र में उनका एवरेस्ट सरीखा कीर्तिमान शायद ही इस दुनिया का कोई कंजूस तोड़ सके। सचमुच वो इस दुनिया की महान विभूति थे। जोरदार तालियों के साथ उन्हें मिस्टर कंजूस ऑफ द ईयर घोषित किया जाता है। युवक इनाम मांगता है तो आयोजक जवाब देते हैं इतने महान कंजूस को इनाम देकर हम उसकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते हैं। ...जाओ...यहां हम कंजूसी कर रहे हैं।
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