कई हजार साल पहले की बात है। किसी देश में पगलापन पर रिसर्च कर रहे एक स्कॉलर को सूचना मिली की एक पागलखाने में रहने वाले पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो रहे हैं। यह किसी डॉक्टर की वजह से नहीं बल्कि हाल में ही आए एक लेटेस्ट पागल की वजह से हो रहा है। स्कॉलर तुरंत वहां निरीक्षण करने पहुंचे तो उन्हें चुनावी माहौल दिखा। उन्होंने डॉक्टर से पूछा तो वह उन्हें एक मैदान में ले गया। वहां एक चुनावी जनसभा चल रही थी। सभी पागल शांति के साथ कतारों में बैठ हुए थे। चबूतरे पर खड़ा एक शख्स जोर-जोर से नेताओं की तरह भाषण दे रहा था। वह कह रहा था भाइयों इतने वर्षों तक हमारे अधिकारों की अनदेखी होती रही। हमें पागल कहकर समाज की मुख्य धारा से किनारे लगा दिया। सरकार ने कभी हमारी बेहतरी के लिए नहीं सोचा। हमारे लिए आज तक कोई नई योजना नहीं बनी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं आ गया हूं...देखता हूं आपको अधिकारों से कौन वंचित करता है। अभी एक घंटे बाद वोटिंग शुरू होनी है। आप अपना वोट देकर मुझे जिताइए....। मैं वादा करता हूं कि मेरे हर पागल भाई के पास अपना रोजगार और घर होगा। सरकारी योजनाओं में आपको प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण मिलेगा। सरकारी बड़े पदों पर भी आप ही सुशोभित होंगे। (जोरदार तालियां बजती हैं) वह शख्स हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकारता हुआ आगे बढ़ जाता है। स्कॉलर डॉक्टर से पूछता है यह कौन है। डॉक्टर बताता है ये पगलालाल है। एक महीने पहले ये यहां आया था। इसके आने के बाद करीब 50-60 बड़े पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गए। उनमें से कई तो ऐसे केस थे, जिनके ठीक होने की उम्मीद ही हमने छोड़ दी थी। स्कॉलर ने पूछा इनका ऊपरी माला (पागलपन) किस वजह से ढह गया। जेलर ने हंसते हुए बताया कि किसी जमाने में वह अपने इलाके के बहुत बड़े नेता थे। उन्होंने जनता को कई बार पागल किया। वादे किए कि मैं जीता तो ये दिला दूंगा..वो बनवा दूंगा...। इसको उखाड़ फेकूंगा...बदलाव ले आऊंगा। वगैरह-वगैरह...। जनता ने इन्हें दो बार कुर्सी दिलाई। जीतने के बाद ये जनता को ही भूल गए। खूब माल अंदर किया। बड़े-बड़े घोटालों में नाम आया...। तीसरी बार जब ये चुनाव लड़ने चले तो जनता ने इन्हें सबक सिखा दिया। मतगणना के दौरान जैसे-जैसे मतपेटियां खुलती गईं वैसे-वैसे इनके पागलपन का स्तर बढ़ता गया। इन्हें पूरे चुनाव में सिर्फ एक वोट मिला..वो वोट इनका ही था। इनके घर वालों ने भी इन्हें वोट नहीं दिया। उधर, फाइनल रूप से चुनाव परिणाम घोषित हुए, इधर फाइनली इनका मेंटल फ्यूज उड़ गया। बस, भइया इसके बाद इनके शुभ चरण यहां पड़े और इनके चुनावी भाषण सुनकर कई पागल अचानक ठीक हो गए। इस बीच दो-तीन पागल हल्ला मचाते हुए गुजरे पगलालाल फिर हार गए हैं...। डॉक्टर और स्कॉलर दौड़ते हुए देखने पहुंचे तो पगलालाल चिल्लाते हुए मिले...बेईमानी हुई है...मैं पुर्नमतदान की मांग उठाऊंगा। मामला आयोग तक ले जाऊंगा...। मैं नहीं हार सकता....। पागलखाने में फिर चुनाव करवाऊंगा...।
Tuesday, 5 January 2016
पागलखाने में चुनाव
कई हजार साल पहले की बात है। किसी देश में पगलापन पर रिसर्च कर रहे एक स्कॉलर को सूचना मिली की एक पागलखाने में रहने वाले पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो रहे हैं। यह किसी डॉक्टर की वजह से नहीं बल्कि हाल में ही आए एक लेटेस्ट पागल की वजह से हो रहा है। स्कॉलर तुरंत वहां निरीक्षण करने पहुंचे तो उन्हें चुनावी माहौल दिखा। उन्होंने डॉक्टर से पूछा तो वह उन्हें एक मैदान में ले गया। वहां एक चुनावी जनसभा चल रही थी। सभी पागल शांति के साथ कतारों में बैठ हुए थे। चबूतरे पर खड़ा एक शख्स जोर-जोर से नेताओं की तरह भाषण दे रहा था। वह कह रहा था भाइयों इतने वर्षों तक हमारे अधिकारों की अनदेखी होती रही। हमें पागल कहकर समाज की मुख्य धारा से किनारे लगा दिया। सरकार ने कभी हमारी बेहतरी के लिए नहीं सोचा। हमारे लिए आज तक कोई नई योजना नहीं बनी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं आ गया हूं...देखता हूं आपको अधिकारों से कौन वंचित करता है। अभी एक घंटे बाद वोटिंग शुरू होनी है। आप अपना वोट देकर मुझे जिताइए....। मैं वादा करता हूं कि मेरे हर पागल भाई के पास अपना रोजगार और घर होगा। सरकारी योजनाओं में आपको प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण मिलेगा। सरकारी बड़े पदों पर भी आप ही सुशोभित होंगे। (जोरदार तालियां बजती हैं) वह शख्स हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकारता हुआ आगे बढ़ जाता है। स्कॉलर डॉक्टर से पूछता है यह कौन है। डॉक्टर बताता है ये पगलालाल है। एक महीने पहले ये यहां आया था। इसके आने के बाद करीब 50-60 बड़े पागल आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गए। उनमें से कई तो ऐसे केस थे, जिनके ठीक होने की उम्मीद ही हमने छोड़ दी थी। स्कॉलर ने पूछा इनका ऊपरी माला (पागलपन) किस वजह से ढह गया। जेलर ने हंसते हुए बताया कि किसी जमाने में वह अपने इलाके के बहुत बड़े नेता थे। उन्होंने जनता को कई बार पागल किया। वादे किए कि मैं जीता तो ये दिला दूंगा..वो बनवा दूंगा...। इसको उखाड़ फेकूंगा...बदलाव ले आऊंगा। वगैरह-वगैरह...। जनता ने इन्हें दो बार कुर्सी दिलाई। जीतने के बाद ये जनता को ही भूल गए। खूब माल अंदर किया। बड़े-बड़े घोटालों में नाम आया...। तीसरी बार जब ये चुनाव लड़ने चले तो जनता ने इन्हें सबक सिखा दिया। मतगणना के दौरान जैसे-जैसे मतपेटियां खुलती गईं वैसे-वैसे इनके पागलपन का स्तर बढ़ता गया। इन्हें पूरे चुनाव में सिर्फ एक वोट मिला..वो वोट इनका ही था। इनके घर वालों ने भी इन्हें वोट नहीं दिया। उधर, फाइनल रूप से चुनाव परिणाम घोषित हुए, इधर फाइनली इनका मेंटल फ्यूज उड़ गया। बस, भइया इसके बाद इनके शुभ चरण यहां पड़े और इनके चुनावी भाषण सुनकर कई पागल अचानक ठीक हो गए। इस बीच दो-तीन पागल हल्ला मचाते हुए गुजरे पगलालाल फिर हार गए हैं...। डॉक्टर और स्कॉलर दौड़ते हुए देखने पहुंचे तो पगलालाल चिल्लाते हुए मिले...बेईमानी हुई है...मैं पुर्नमतदान की मांग उठाऊंगा। मामला आयोग तक ले जाऊंगा...। मैं नहीं हार सकता....। पागलखाने में फिर चुनाव करवाऊंगा...।
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