Sunday 22 February 2015

नाथूराम जी, मुच्छ नहीं तो कुच्छ नहीं...


बचपन में मैंने जब फिल्म शराबी देखी थी तब उसके एक डॉयलॉग ने मेरे दिमाग पर बड़ा असर डाला था। उस डॉयलॉग में अमिताभ बच्चन नाथूराम की मूछों की तारीफ करते हुए कहते हैं कि भाई मूछे हो तो नाथूराम जैसी...। यह डॉयलॉग समाज में एक जुमले के रूप में बड़ी तेजी से बदल गया। किसी की भी शानदार घनी और चमचमाती मोटी मूछों को देखकर मेरे मुंह से बरबस निकल जाता था कि भाई मूछों हो तो नाथूराम जैसी...। मुझे पता चला कि हमारे देश के राजा-रजवाड़े अपनी मूछों के लालन पालन में बहुत गंभीर रहते थे। शत्रु उनकी मूछों को चुनौती देता तो वे  पूरे फौज़-फाटे के साथ मूछे ऐंठते हुए युद्ध के मैदान में कूद जाते थे। न जाने कितने युद्ध मूछ को लेकर लड़े गए इसके अभी कोई प्रमाण नहीं मिल सके हैं हां एक बात जरूर पता चली है कि भारत में जितने भी युद्ध हुए उनमें कहीं न कहीं मूछ बचाने की ललक थी। मैंने पहली बार मूछों के साथ फिल्म में जिसे देखा था वो थे पृथ्वीराज कपूर। शहजादे सलीम को हड़काते वक्त उनकी मूछों का रौंब कुछ और ही अंदाज बयां करता था। फिल्म शोले में ठाकुर, गब्बर, असरानी, हरिराम नाई और सूरमा भोपाली की मूछों ने तो मेरा दिल ही जीत लिया था। इसके बाद मुझे किसी की फिल्म में मुछे अच्छी लगी तो वो थी अपने जैकी भाई यानी जैकी श्राफ की। क्या शानदार और गहरी मूछ थी उस जमाने में उनकी। उन्हे मैं मूछों की यूनिविसिर्टी का डीन मानता हूं. भारी-भरकम मूछों को तलाशने के बाद मैंने दुनिया की सबसे छोटी मूछों पर अपनी रिसर्च शुरू की तो पता चला कि हिटलर और चार्ली चैपलिन से छोटी मूछ आज तक इस दुनिया में कोई नहीं रख सका है. उनका यह रिकार्ड अभी तक सुरक्षित है. अब कोई एक बाल उगाकर ही ये रिकार्ड तोड़ सकता है।  जब भारतीय मूछों से अन्य देशों की तुलना की तो पता चला कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मुच्छड़ तो हमारी ही धरती पर पाए जाते हैं। हमारी रौबीली, चमकदार, मोटी, ऊपर की ओर ऐठी हुई मूछों का आज भी दुनिया में कोई सानी नहीं हैं। सबसे आश्चर्यजनक मूछे मुझे चाइना वालों की लगी। बीच की मुछे गायब और किनारे की मुछे जमीन की ओर बढ़ती हुई। इसके पीछे मुझे लगा कि हमारे मुच्छड़ आकाश छूने को बेताब नजर आते हैं और चाइना वाले धरती। रुचि के हिसाब से उन्होंने अपनी मूछो का रूट डाइवर्ट कर रखा है। विश्वकप में भारत और साउथ अफ्रीका का मैच देखते हुए मेरी निगाहें अचानक शिखर धवन की रौबीली मूछों पर चली गई। शिखर को लेकर मेरे मन में श्रद्धाभाव बढ़ गया। क्या शानदार मूछे हैं। पतली, नुकीली, चमकदार और ऐंठी हुई। बोले तो एकदम झक्कास...। जब मैंने सोशल मीडिया पर मूछों की पड़ताल की तो पता चला कि शिखर ने नाथूराम की मूछों को रिपलेस कर दिया है। इस समय मुच्छड़ों की दुनिया में शिखर से बड़ा कोई ब्रांड अंबेसडर नहीं है। क्या युवा क्या बूढ़े हर कोई शिखर का दीवाना है। मैं तो उन्हें कपिल देव का सच्चा उत्तराधिकारी मानता हूं। मैं जब सन् 1983 के विश्व कप का रीकैप देखता था तो मुझे लाडर्स के मैदान में विश्वकप की चमचमाती ट्रॉफी और चमकदार मूछों के साथ चमकता हुआ कपिल देव का चेहरा काफी भाता था। उनके बाद मुझे अजहर और सौरव गांगुली की मूछे उतना प्रभावित नहीं कर सकी। दो दशक के बाद अब मुझे शिखर की मुछे भायी हैं...मै तो उसकी मूछो का दीवाना हो गया हूं। वाकई मूछों के लिए क्या-क्या त्याग और तपस्या नहीं की है लोगों ने। मुझे तो अब मुछ में ही सारी दुनिया का सार नजर आता है. किसी ने सही कहा है मुच्छ नहीं तो कुच्छ नहीं...।

1 comment:

  1. Sahi kaha sr aap ne moochein nahi to kuch nahi
    Mooch ek mard ke chehre ki shaan ko badhati hain iss liye mai to kahta hoon har koi mooch rakhna suru karo.

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