वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब आम बजट पेश किया तो तुरंत ही चैनलों पर उसका पोस्टमार्टम शुरू हो गया। विशेषज्ञों ने फॉरेंसिक एक्सपर्टों की तरह अपनी रायशुमारी की बारिश कर दी। किसी ने बजट को बहुत अच्छा तो किसी ने औसत तो किसी ने बहुत खराब बताया। इन रायचंदों के चक्रव्यूह में फंसकर बेचारे दर्शक इतने कन्फ्यूज हो गए कि उन्हें समझ में आया ही नहीं कि आखिर बजट में उनके लिए क्या अच्छा और क्या खराब है। टीवी देखते-देखते जब मैं कन्फ्यूज हो गया तो घर से बाहर निकल आया। बाहर मुझे पड़ोसी खन्ना जी सिर खुजाते हुए मिल गए। मैंने बजट में उनका नजरिया जानना चाहा तो बोले भाई बहुत कन्फ्यूजन है। मैंने पैदा होने से लेकर अभी तक जो भी बजट देखे हैं उनमें परंपरागत इनकम टैक्स में छूट, टैक्स दरों में रियायत, एसी, टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रानिक आइटम का सस्ता होना, तंबाकू-सिगरेट का महंगा होना और आम आदमी का नाम का ढोल पीटकर नई योजनाओं के ऐलान ही सुने हैं। सच कहूं तो हर बार बजट से पहले ही हम मान लेते हैं कि कम से कम ये तो होगा ही। यार लेकिन इस बार तंबाकू-सिगरेट वाले ऐलान को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। मैंने पहला चैनल लगाया तो उसमें एक विशेषज्ञ चीखता हुआ बोला कि ये बजट आम आदमी का है। अच्छे दिन लाने वाला है। भले ही इस बार आयकर में छूट का दायरा न बढ़ा हो, टीवी, फ्रिज और मोबाइल सस्ते न हुए हो लेकिन सरकार ने अपनी दूरदर्शी नीतियों से साबित कर दिया है कि वो बहुत दूर का सोच रही है। कई साल आगे तक की योजनाएं अभी से उतार दी गई है। अब बताओ भाई जरूरत अभी है और बात पांच साल बाद की कही जा रही है। इसे मैं कैसे अच्छा मान लूं। अरे यार जो कुछ करना है अभी करो इतना आगे क्यों जा रहे हो भाई। मैंने जब दूसरा चैनल बदला तो एक बहुत बूढ़ा सा समीक्षक टीचर वाले अंदाज में बजट पर चर्चा कर रहा था। उसके हिसाब से ये बजट औसत दर्जे का है। वह कह रहे थे पेंशन, बीमा, दुर्घटना बीमा और इपीएफ स्कीम के अलावा इस बजट में कुछ भी अच्छा नहीं है। बाकी चीजें औसत दर्जे की है। मैंने घबरा कर दूसरा चैनल बदला तो वहां एक तेजतर्रार नौजवान एंकर चीख-चीख कर कह रहा था कि इस बजट ने आपकी जेब का बोझ बढ़ा दिया है। सरकार ने सर्विस टैक्स 12.36 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया है। इससे रेस्टोरेंट में खाना, होटल में रहना और सर्विस टैक्स से जुड़ी सभी सेवाएं महंगी हो जाएगी। लुट जाएगी आपकी जेब....फिर आएगी महंगाई। सरकारी कर्मचारियों को भी राहत नहीं मिली है। मैं ये सुनकर डर गया भाई। ऐसा लगा मानों कई साल बाद दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। मैंने हड़बड़ाहट में चैनल बदला तो एक सुंदर सी एंकर कह रही थी...घबराइए नहीं सरकार डेबिट-क्रेडिट कार्ड से लेनदेन को बढ़ावा देगी। अब आप अपने सोने को बैंक में जमा कर ब्याज भी पा सकेंगे। युवाओं को रोजगार के लिए दक्ष बनाया जाएगा। मनेरगा बंद नहीं होगी...पैसा मिलता रहेगा। जीएसटी 2016 में लागू हो जाएगा। वगैरह-वगैरह...। फिर वह बोली अच्छा होता यदि इनकम टैक्स छूट का दायरा बढ़ाकर तीन लाख कर दिया जाता। खैर मैं इस बजट को दस में छह नंबर दूंगी। मैं सुनकर चौंक गया यार इतनी खूबियां गिनाने के बाद सिर्फ पासिंग नंबर वाली प्रथम श्रेणी। जरूर कॉपी चेंकिग में गड़बड़ी हुई है। मैं टीवी बंद करके बाहर आ गया। तुम ही बताओ तुम्हारे हिसाब से बजट कैसा है। मैं बोला जब आप जैसा उम्रदराज बीते कई बसंत से बजट देखने वाला कन्फ्यूज है तो फिर मेरी बिसात क्या है। सहीं मायने में मैं भी इस बजट को अच्छा या फिर खराब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं। हिच्च बड़ा कन्फ्यूज है भाई...।
Saturday 28 February 2015
हिच्च...इस बजट ने कन्फ्यूज कर दिया भाई
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब आम बजट पेश किया तो तुरंत ही चैनलों पर उसका पोस्टमार्टम शुरू हो गया। विशेषज्ञों ने फॉरेंसिक एक्सपर्टों की तरह अपनी रायशुमारी की बारिश कर दी। किसी ने बजट को बहुत अच्छा तो किसी ने औसत तो किसी ने बहुत खराब बताया। इन रायचंदों के चक्रव्यूह में फंसकर बेचारे दर्शक इतने कन्फ्यूज हो गए कि उन्हें समझ में आया ही नहीं कि आखिर बजट में उनके लिए क्या अच्छा और क्या खराब है। टीवी देखते-देखते जब मैं कन्फ्यूज हो गया तो घर से बाहर निकल आया। बाहर मुझे पड़ोसी खन्ना जी सिर खुजाते हुए मिल गए। मैंने बजट में उनका नजरिया जानना चाहा तो बोले भाई बहुत कन्फ्यूजन है। मैंने पैदा होने से लेकर अभी तक जो भी बजट देखे हैं उनमें परंपरागत इनकम टैक्स में छूट, टैक्स दरों में रियायत, एसी, टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रानिक आइटम का सस्ता होना, तंबाकू-सिगरेट का महंगा होना और आम आदमी का नाम का ढोल पीटकर नई योजनाओं के ऐलान ही सुने हैं। सच कहूं तो हर बार बजट से पहले ही हम मान लेते हैं कि कम से कम ये तो होगा ही। यार लेकिन इस बार तंबाकू-सिगरेट वाले ऐलान को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। मैंने पहला चैनल लगाया तो उसमें एक विशेषज्ञ चीखता हुआ बोला कि ये बजट आम आदमी का है। अच्छे दिन लाने वाला है। भले ही इस बार आयकर में छूट का दायरा न बढ़ा हो, टीवी, फ्रिज और मोबाइल सस्ते न हुए हो लेकिन सरकार ने अपनी दूरदर्शी नीतियों से साबित कर दिया है कि वो बहुत दूर का सोच रही है। कई साल आगे तक की योजनाएं अभी से उतार दी गई है। अब बताओ भाई जरूरत अभी है और बात पांच साल बाद की कही जा रही है। इसे मैं कैसे अच्छा मान लूं। अरे यार जो कुछ करना है अभी करो इतना आगे क्यों जा रहे हो भाई। मैंने जब दूसरा चैनल बदला तो एक बहुत बूढ़ा सा समीक्षक टीचर वाले अंदाज में बजट पर चर्चा कर रहा था। उसके हिसाब से ये बजट औसत दर्जे का है। वह कह रहे थे पेंशन, बीमा, दुर्घटना बीमा और इपीएफ स्कीम के अलावा इस बजट में कुछ भी अच्छा नहीं है। बाकी चीजें औसत दर्जे की है। मैंने घबरा कर दूसरा चैनल बदला तो वहां एक तेजतर्रार नौजवान एंकर चीख-चीख कर कह रहा था कि इस बजट ने आपकी जेब का बोझ बढ़ा दिया है। सरकार ने सर्विस टैक्स 12.36 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया है। इससे रेस्टोरेंट में खाना, होटल में रहना और सर्विस टैक्स से जुड़ी सभी सेवाएं महंगी हो जाएगी। लुट जाएगी आपकी जेब....फिर आएगी महंगाई। सरकारी कर्मचारियों को भी राहत नहीं मिली है। मैं ये सुनकर डर गया भाई। ऐसा लगा मानों कई साल बाद दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। मैंने हड़बड़ाहट में चैनल बदला तो एक सुंदर सी एंकर कह रही थी...घबराइए नहीं सरकार डेबिट-क्रेडिट कार्ड से लेनदेन को बढ़ावा देगी। अब आप अपने सोने को बैंक में जमा कर ब्याज भी पा सकेंगे। युवाओं को रोजगार के लिए दक्ष बनाया जाएगा। मनेरगा बंद नहीं होगी...पैसा मिलता रहेगा। जीएसटी 2016 में लागू हो जाएगा। वगैरह-वगैरह...। फिर वह बोली अच्छा होता यदि इनकम टैक्स छूट का दायरा बढ़ाकर तीन लाख कर दिया जाता। खैर मैं इस बजट को दस में छह नंबर दूंगी। मैं सुनकर चौंक गया यार इतनी खूबियां गिनाने के बाद सिर्फ पासिंग नंबर वाली प्रथम श्रेणी। जरूर कॉपी चेंकिग में गड़बड़ी हुई है। मैं टीवी बंद करके बाहर आ गया। तुम ही बताओ तुम्हारे हिसाब से बजट कैसा है। मैं बोला जब आप जैसा उम्रदराज बीते कई बसंत से बजट देखने वाला कन्फ्यूज है तो फिर मेरी बिसात क्या है। सहीं मायने में मैं भी इस बजट को अच्छा या फिर खराब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं। हिच्च बड़ा कन्फ्यूज है भाई...।
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