Wednesday 16 December 2015

ये झूठ बोलया...हां जी...



सत्यनगर स्थित सत्यभान डिग्री कॉलेज में सत्य के साथी संस्था की ओर से सत्य बड़ा बलवान विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। कॉलेज के प्रिंसिपल सत्यप्रकाश के आग्रह पर जाने-माने विद्वान सत्यवादी जी  गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप  में पहुंचे। गोष्ठी के  शुभारंभ पर अतिथियों का परिचय कराया गया। संयोजक सत्यराम ने कहा कि मित्रों आज हम सत्य की महत्ता जानने के लिए इकट्ठा हुए हैं। सत्य में बड़ी ताकत होती है। चाहे जैसी परिस्थिति हो हमें सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हमारे बीच में जाने-माने विद्वान सत्यवादी मौजूद हैं। अब वे आपके समक्ष अपने विचार रखेंगे। जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सत्यावादी जी माइक संभालते हैं और दार्शनिक वाले अंदाज में कुछ देर ऊपर निहारते हैं। (ताकि लोग सोचे की सत्यवादी जी रूहानी  ताकतों से बात कर रहे हैं) वे कहते हैं मित्रों आज बड़ा ही सुंदर विषय रखा गया है। सत्य बड़ा बलवान...। आहा...(ये कहकर कुछ देर के लिए वह रुक जाते हैं)...वाह। इस दौरान श्रोताओं के बीच से आवाज आती है, अरे आगे भी कुछ कहोगे या फिर ये ही सुनाते रहोगे। इतना टाइम नहीं है...। सभी श्रोता हंसने लगते हैं। अचानक हुए इस हमले से सत्यवादी जी सकपका जाते हैं। वह कहते हैं...आज तक मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। आज मैं जो कुछ हूं सिर्फ इसी सत्य की वजह से हूं। इस बीच श्रोताओ के बीच से एक तेज आवाज गूंजती है। ये झूठ बोलया है...हां जी। सभी की निगाह गेट पर जाकर टिक जाती है। एक शख्स तेजी से मंच की ओर बढ़ता हुआ चला आता है। ये झूठ बोलया है....भाइयो...। अब मैं आपको बताता हूं इस मुए की हकीकत। तीन महीने पहले इसने मुझसे दो हजार रुपए उधार लिए थे। तब इसने मुझसे कहा था कि बच्चे की तबीयत बहुत खराब है, मुझे अस्पताल में उसे भर्ती कराना पड़ेगा। मैंने मुसीबत के समय इसकी मदद कर दी। एक महीना बीता तो मैं पैसे लेने के लिए इसके घर पहुंचा तो ताला लटका मिला। मैंने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि सत्यवादी की कोई औलाद ही नहीं है। वो तो ऐसे ही फ्राड करके लोगों को ठगता है। मुझे फिर भी विश्वास नहीं हुआ तो मैं किसी तरह पता करते हुए इनकी ससुराल पहुंच गया। वहां मेरी मुलाकात इसके ससुर से हुई। मैंने जैसे ही उनसे सत्यवादी के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरी ऊपर बंदूक तान दी। वो बोले नाम न ले उस मुए का...। मेरी बेटी से शादी से पहले उसने मुझे किसी और का घर दिखाकर अपना बताया। साथ ही एक गांव ले जाकर सैकड़ों बीघा जमीन खुद के पास होने का दावा किया। मैंने सोचा अच्छा-खासा घर है। सो मैंने कर्जा लेकर धूमधाम से बेटी की शादी उससे कर दी। दहेज में कार, नकदी, फ्रिज, एसी, कूलर, बेड, सोफा समेत सबकुछ दिया। मुएं ने दहेज का सामान घर पर न उतारकर सीधे दुकानों पर उतरवा दिया। एवज में सारा कैश समेट लिया। पैसा खत्म हुआ तो मेरी बेटी को यहां छोड़कर ये कहकर चला गया कि सत्य की तलाश में जा रहा हूं, लौटते ही अपनी पत्नी को ले जाऊंगा...। तीन महीने हो गए लौटकर आया ही नहीं। उसने जिन लोगों से कर्जा लिया, उल्टा अब वो लोग मेरे घर के चक्कर लगा रहा हैं। भइया ये सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं काफी समय से इसकी तलाश में था। वो तो भला हो इस संस्था के एक सदस्य का। जिसने मुझे आज यहां का पता दे दिया। मंच पर चढ़कर युवक ने सत्यवादी के कुर्ते का कॉलर पकड़ा तो संयोजक सत्यराम बीच में आ गए। उन्होंने धीरे से युवक के कान में कहा कि भाई सत्यवादी को मारो पर कुर्ता मत फाड़ना। ये कुर्ता मैं किराए पर लाया हूं। मेरा नुकसान हो जाएगा। अभी पूरा चंदा नहीं मिला है। युवक बोला, अच्छा तो आप भी इन्ही की कैटगिरी के हैं। इस बीच श्रोताओ के बीच से मारो...मारो की आवाज आने लगती है। युवक माइक संभालते हुए कहता है मित्रों कृपया शांत हो जाएं। इन्हें मारने से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला। हमें सोचना पड़ेगा आखिर सत्य इतना हल्का विषय है जिसे किसी व्यक्ति मात्र के कहने और उसके विचारों से जाना जा सकता है। नहीं...। ये हमारी मूर्खता है कि हम सदाचार, सत्य आदि विषयों को जानने के लिए इधर-उधर मारे फिरा करते हैं। हमारी इसी गलती का लाभ सत्यवादी जैसे लोग उठाते हैं। अरे सत्य तो हमारे अंदर हैं। बेहतर होगा कि किसी के कहने के बजाए हम खुद ही अपने भीतर छिपे सत्य को तलाशें और उसे अपने जीवन में लागू करें। मेरा यहां आने का मकसद पैसा वापस नहीं लेना था बल्कि आपकी आंखों पर पड़ा परदा हटाना था। जोरदार तालियों के साथ गोष्ठी खत्म हो जाती है। सत्यवादी किराए का कुर्ता उतारकर फटी कमीज पहनकर युवक के साथ विदा हो जाते हैं।

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